संतान के सौभाग्य के लिए प्यार और समर्पण का व्रत
आर.सी.शर्मा
जीवित्पुत्रिका व्रत एक ऐसा व्रत है, जिसमें मांएं अपनी संतानों की लंबी उम्र के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूरे दिन बिना पानी के रहकर उपवास करती हैं। यह व्रत इसलिए कठिन है; क्योंकि इसे करते हुए न तो सोया जाता है और न ही कुछ खाया-पीया जाता है। यह व्रत आश्विन अष्टमी यानी 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से शुरू होगा और 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक चलेगा।
धार्मिक मान्यताएं
धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत करने से संतान को किसी तरह का रोग नहीं लगता, वह तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी होता है। इस व्रत के कारण संतान पर आने वाली हर विपत्ति दूर हो जाती है तथा वह लंबी, सामाजिक सम्मान वाली जिंदगी बिताता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यह व्रत करने से महिलाएं मृतवत्सा दोष से मुक्त होती हैं तथा नवविवाहिताओं को सुंदर और शिष्ट संतानांे की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यह निर्जला व्रत करने वाली महिलाएं भगवान श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय होती हैं, उन्हें भगवान कृष्ण की कृपा मिलती है तथा उनके घर में सुख शांति बनी रहती है। जीवित्पुत्रिका व्रत में गंधर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा होती है और पूजा के क्रम में व्रत रखने वाली महिलाएं उनकी कथा का पाठ करती हैं। यह व्रत एक तरह से तीन दिनों तक का होता है। पहले दिन नहा खाय के व्रत की शुरुआत की जाती है। दूसरे दिन एक निश्चित समय तक इस कठिन व्रत का पालन किया जाता है। इसके बाद तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। आमतौर पर ज्यादातर जगहों पर इस व्रत का पारण मडुआ की रोटी और तोरी की सब्जी के साथ किया जाता है।
जीमूतवाहन की कहानी
पौराणिक काल में जीमूतवाहन नामक एक बुद्धिमान गंधर्व राजा थे। लेकिन उन्हें खुद अपने शासन पर संतुष्टि नहीं थी। इसलिए वह अपना राजपाट अपने भाइयों और मंत्रियों को सौंप दिया और पिता की सेवा के लिए जंगल की तरफ चले गये।
एक दिन उन्हें जंगल में रोती हुई एक बुढ़िया मिली। गंधर्व राजा ने उससे पूछा कि आखिर वह क्यों रो रही है? इस पर बुढ़िया ने कहा कि दरअसल वह नागवंशी है। एक समझौते के मुताबिक हर दिन जंगल के पक्षीराज गरुड़ को एक सर्प भोजन के लिए उपलब्ध कराया जाता है। इस क्रम में आज उसके बेटे की बारी है। इसलिए वह रो रही है। बुढ़िया की समस्या सुनने के बाद जीमूतवाहन ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर बुढ़िया को सांत्वना देते हुए कहा कि मैं तेरे बेटे को मरने नहीं दूंगा। मैं उसे पक्षीराज गरुड़ से आज जीवित वापस ले आऊंगा। यह कहकर गंधर्व राजा जीमूतवाहन खुद गरुड़ के लिए भोजन बनने हेतु लाल कपड़े में लिपटकर उस चट्टान पर लेट गये, जिस चट्टान पर हर दिन अपना दैनिक भोजन पाने के लिए गरुड़ वहां आता था।
हर दिन के मुताबिक उस दिन भी पक्षीराज गरुड़ आये और अपने अंगुलियों से लाल कपड़े से ढके जीमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ गये। लेकिन जब गरुड़ ने लाल कपड़े के भीतर सर्प की बजाय एक मनुष्य को देखा, तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा। इस पर जीमूतवाहन ने गरुड़ को ईमानदारी से कारण बता दिया। इस पर गरुड़राज जीमूतवाहन की वीरता और परोपकारिता से बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि आज से कोई भी गरुड़ किसी भी सांप को नहीं खायेगा।
संतान के कल्याण का प्रतीक
इस प्रकार, बच्चों के कल्याण और लंबे जीवन के लिए माताएं हर साल जीमूतवाहन का व्रत रखती हैं, जो मातृत्व की महानता और समर्पण का प्रतीक है।
इ.रि.सें.