मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

संतुलित दिनचर्या देगी स्वस्थ-प्रफुल्लित जीवन

07:23 AM Jun 25, 2024 IST
Advertisement

दिनभर की गतिविधियों में संतुलन रहना जरूरी है। अच्छी दिनचर्या के लिए करीब 4 घंटे घर में रोजमर्रा के कामों में सक्रिय रहें यानी हल्की शारीरिक गतिविधि। वहीं ऑफिस में ब्रेक लेकर स्ट्रैचिंग आदि करें। बैठने, खड़े होने, चलने और लेटने-सोने की अवधि का भी तय अनुपात हो। शोधकर्ताओं का मानना है कि दिन में पांच घंटे खड़े रहना व छह घंटे बैठना चाहिए।

डॉ. मोनिका शर्मा

Advertisement

खानपान और व्यायाम ही नहीं, हमारी रोजाना की सहज गतिविधियां भी तनावरहित जीवन व सेहत की देखभाल के मामले में अहम भूमिका निभाती हैं। खासकर इन एक्टिविटीज़ को दिया जाने वाला समय। जैसे बहुत समय बैठना भी सेहत के लिए घातक है तो बहुत ज्यादा चलना-दौड़ना भी। नींद की कमी भी परेशानी का सबब बनती है और सोने-जागने की कोई सधी समय सारिणी न होना भी। दिनभर की गतिविधियों में एक संतुलन आवश्यक है। अच्छे स्वास्थ्य को लेकर किए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों द्वारा शारीरिक गतिविधियों के समय को लेकर कहा गया है कि दिनभर में खड़े रहने और बैठने के समय में भी एक बैलेंस होना चाहिए।


संतुलन आवश्यक
ऑस्ट्रेलिया में स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि लोगों को दिन में पांच घंटे खड़े रहना चाहिए और छह घंटे बैठना चाहिए। इसके अलावा प्रतिदिन चार घंटे हल्की और मध्यम शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए। हल्की-फुलकी सहज फिजिकल एक्टिविटी का अर्थ चलने से लेकर खाना पकाने और घर के कामकाज पूरा करने तक से है। अध्ययन के अनुसार, नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां करने से हार्ट हेल्थ भी बेहतर होता है। असल में आज की बदली हुई जीवनशैली में बैठने-चलने का यह संतुलन हर उम्र के लोगों के लिए जरूरी हो गया है। मौजूदा लाइफस्टाइल में मनोरंजन से लेकर कामकाज और आसपास की आवाजाही तक, गाड़ी हो, आरामदायक कुर्सी हो या सोफा- अधिकतर समय बैठने तक सिमट गया है। यह गतिहीन जीवनशैली हर तरह से घातक है। पहले की पीढ़ी की तरह काम के बीच कुछ समय के आराम या ब्रेक के बजाय अब बैठना ही जीवनचर्या बनकर रह गया है। यह निष्क्रियता हड्डियों, मांसपेशियों में जकड़न और मानसिक रूप से थकावट लाने वाली भी है। थोड़े समय के लिए भी चलने-फिरने का ब्रेक न लेकर लगातार बैठे रहना हर मोर्चे पर स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम बढ़ा रहा है ।
बैठने का समय बढ़ा
घर, दफ्तर हो या स्कूल, कालेज- हर आयुवर्ग के लोगों का लंबा समय एक ही जगह बैठे बीत रहा है। घंटों बैठे रहना आजकल के लाइफस्टाइल में आम बात है। यूं देर तक बैठे रहना सही-गलत पोश्चर का ख्याल भी नहीं रहने देता। साथ ही फिजिकल एक्टिविटी की कमी से डायबिटीज़, हार्ट प्रॉब्ल्म्स, कैंसर वैरिकॉज़ नर्व, कमर दर्द की परेशानी भी बढ़ रही है। मोटापा और आलस्य जैसी तकलीफ़ें तो आती ही आती हैं। इतना ही नहीं, लगातार बैठे रहने से तनाव और अवसाद भी बहुत बढ़ता है। अध्ययन बताते हैं कि बैठे रहने की आदत जीवन का जोखिम तक बढ़ाती है।


काम के बीच में ब्रेक
आमतौर पर कामकाजी और घरेलू दोनों ही मोर्चों पर गतिहीन जीवनशैली जी रहे लोग कुछ समय निकालकर सुबह-शाम तेज गति से की गई एक्सरसाइज़ जैसे साइकिलिंग, जॉगिंग या वॉक को ही महत्वपूर्ण मानते हैं। ज़्यादातर लोग लंबे समय तक बैठे रहने के दौरान बीच-बीच में ब्रेक लेकर कुछ कदम चलने या शरीर को स्ट्रैच करने की ओर ध्यान नहीं देते। जबकि नियमित रूप से ऐसे छोटे-छोटे विराम और हल्की-फुलकी मूवमेंट्स शरीर और मन-मस्तिष्क के लिए बेहद जरूरी हैं। इतना ही नहीं, सहज सी चहलकदमी हो या ब्रेक लेकर खिड़की से बाहर झांकने के लिए कुछ पल निकालना। सब कुछ अच्छी नींद, मन के सुकून और शरीर की सेहत के साथ गहराई से जुड़ा है।
सजग रहना आवश्यक
ऑस्ट्रेलिया में स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा 2000 लोगों को लेकर किए गए इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए लोगों को रोजाना आठ घंटे की बेहतर नींद लेनी चाहिए। आमतौर पर गतिहीन जीवनशैली वाले लोगों में अच्छी नींद न ले पाने से परेशानी भी देखने को मिलती है। निष्क्रिय बैठे रहना यूं तो शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है पर गहरी नींद न आना एक बड़ी परेशानी बन जाती है। ठीक से आराम न कर पाने की स्थिति में शारीरिक ही मानसिक सेहत भी प्रभावित होती है। एक और गतिशील न रहना मोटापा बढ़ाता है तो दूसरी ओर पर्याप्त नींद नहीं ले पाने के कारण भी वजन बढ़ने की स्थिति बन जाती है। साथ ही रोग -प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है। नींद इंसानी शरीर में दो हार्मोन्स, लेप्टिन और घ्रेलिन के स्तर को प्रभावित करती है। ध्यान रहे कि ये दोनों हार्मोन्स भूख लगने और पेट भरे होने की फीलिंग को नियंत्रित करते हैं। साथ ही नींद पूरी न होने से संतुलित भावनात्मक प्रतिक्रिया देने, त्वरित निर्णय लेने और सधा संवाद करने जैसे फ्रंट्स पर भी उलझनें बढ़ जाती हैं। ऐसे में समग्र रूप से सकारात्मक और स्वस्थ जीवनशैली में नियमित गतिशील रहने के प्रयास आवश्यक हैं।

Advertisement
Advertisement