हिमाचल के 52 वीरों ने दी थी कुर्बानी, 18 ग्रेनेडियर्ज का योगदान रहा था महत्वपूर्ण
पुरुषोत्तम शर्मा/निस
मंडी, 25 जुलाई
कारगिल युद्ध में 26 जुलाई को भारतीय सेना ने आखिरी चोटी पर तिरंगा लहराया था और शत्रु सेना को खदेड़ने के बाद देश में युद्ध विजय पर जश्न मनाया गया था। 26 जुलाई को पिछले 25 वर्षों से कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। संयोग से देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस वक्त हिमाचल प्रदेश के भाजपा प्रभारी थे और प्रदेश की कमान मुख्ययमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पास थी। तत्कालीन पार्टी प्रभारी नरेंद्र मोदी की जिद पर दोनों नेता अपनी टीम के साथ विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए कारगिल पहुंचे थे और श्रीनगर के रास्ते वापस हिमाचल लौट आए थे। कारगिल वार हीरो के नाम से जाने जाने वाले युद्ध सेवा मेडल विजेता ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर इसका जिक्र करते हुए बताते हैं कि देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और स्वयं रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस हमारा मनोबल बढ़ाने के लिए कारगिल आए थे।
अपनी युद्ध स्मृतियों को ताजा करते हुए मंडी जिले के नगवाईं निवासी सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने कहा कि कारगिल युद्ध विजय में भारतीय सेना के 18 ग्रेनेडियर्ज का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा। 18 ग्रेनेडियर्ज ने इस युद्ध में न केवल अपने दो जांबाज आॅफिसर खोए बल्कि 34 सैनिक और 2 जेसीओ ने भी देश की खातिर प्राण न्योछावर किए। यही नहीं, 18 ग्रेनेडियर्ज के 95 सैनिकों और आफिसर्ज के सीने गोलियों से छलनी हुए थे लेकिन बावजूद इसके दो महत्वपूर्ण चोटियों तोलोलिंग व टाइगर हिल को फतेह करने में 18 ग्रेनेडियर्ज कामयाब रही और कारगिल युद्ध जीत में सबसे ज्यादा योगदान दिया।
खास बात यह रही कि इस पूरी प्लाटून की कमान तत्कालीन कर्नल खुशहाल ठाकुर के पास थी, जो युद्ध में कंमांडिंग आफिसर थे। 18 ग्रेनेडियर्ज को इस युद्ध में 52 शौर्य पुरस्कार मिले, जो किसी भी युद्ध में सबसे ज्यादा पुरस्कार थे और सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र भी 18 ग्रेनेडियर्ज के ग्रेनेडियर योगिंद्र यादव को मिला। इसी प्लाटून के कैप्टन सचिन निबलेकर को वीरचक्र व लेफ्टिनेंट बलबान सिंह को महावीर चक्र से नवाजा गया। प्लाटून के सराहनीय योगदान के चलते खुशहाल ठाकुर को कर्नल से ब्रिगेडियर बनाया गया और उन्हें कारगिल हीरो का नाम दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने स्वयं इस कामयाबी के लिए ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर व उनकी टीम की पीठ थपथपाई थी।
खुशहाल ठाकुर का कहना है कि इस पूरे युद्ध में भारतीय सेना ने 527 सैनिक और 26 आफिसर खोए और 1363 सैनिक तथा 66 आफिसर जख्मी हुए जबकि एक सैनिक को पाकिस्तानी पकड़ कर ले गए। उनका कहना है कि 1939 के बाद पहली बार कारगिल युद्ध में सेना अधिकारियों के शहीद होने की रेशो बढ़ी। देश की आजादी के बाद 24 सैनिक पर एक आफिसरशहीद होता रहा लेकिन कारगिल युद्ध में 16 सैनिक पर एक आफिसर ने अपने प्राणों की आहुति दी। कारगिल वार हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशहाल पर अब उनके दक्षिण अफ्रीका में भारतीय सेना दल का नेतृत्व करने के लिए खुखरी नाम से फिल्म बन रही है।
प्रदेश को मिले थे दो परमवीर चक्र
इतिहास में पहली बार किसी युद्ध में हिमाचलियों का सबसे यादा रोल रहा था। ‘दिल मांगे मोर’ का नारा देने वाले कैप्टन विक्रम बतरा को मरणोपरांत व सैनिक संजय कुमार को परमवीर च्रक से नवाजा गया था। इस युद्ध में जिला कांगड़ा से 15, हमीरपुर से 7, बिलासपुर से 7, मंडी से 11, शिमला से 4, ऊना से 2, सोलन से 2, सिरमौर से 2, चंबा व कुल्लू से 1-1 सहित कुल 52 जवान शहीद हुए थे।