2025 : दुनिया की गति और हमारी प्रगति
देश-दुनिया के लिए नया साल कैसा रहेगा, सटीक नहीं जान सकते लेकिन घटनाक्रम को समझने की कोशिश कर सकते हैं। परिदृश्य को राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरण के साथ ही विदेशी भागों में बांटें तो राजनीति में 2025 में जोर-आजमाइश के दो बड़े मौके बनेंगे- दिल्ली और बिहार चुनाव। दिल्ली में बीजेपी बनाम खंडित ‘इंडिया गठबंधन’ होगा। वहीं वक्फ विधेयक, ‘एक देश, एक चुनाव’ , परिसीमन व जनगणना चर्चा के मुद्दे रहेंगे। साल भारत-चीन, भारत-अमेरिका रिश्तों के लिहाज से अहम हो सकता है। पर्यावरणीय मुद्दों पर गंभीर बैठकें एजेंडा में हैं। विश्व में मंदी का जोखिम बेशक हो लेकिन भारत की वृद्धि दर 6.6 फीसदी रहने के अनुमान हैं।
प्रमोद जोशी/लेखक वरिष्ठ संपादक रहे हैं।
देखते ही देखते इक्कीसवीं सदी का 24वां साल गुज़र गया और 25वां आ गया। जिस सदी को लेकर बड़े-बड़े सपने थे, उसके एक चौथाई साल 2025 में पूरे हो जाएंगे। किधर जा रही है दुनिया और कहां खड़े हैं हम? देश की करीब 145 करोड़ की आबादी में पांच से दस करोड़ लोगों ने 31 की रात नए साल का जश्न मनाकर स्वागत किया। शायद इतने ही लोगों को नए साल के आगमन की जानकारी थी, पर वे जश्न में शामिल नहीं थे। इतने ही लोगों ने सुना कि नया साल आ गया और उन्होंने यकीन कर लिया। फिर भी 100 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे होंगे, जिन्हें किसी के आने और जाने की खबर नहीं थी। उनकी वह रात भी वैसे ही बीती जैसे हमेशा बीतती है-सर्द और अंधेरी।
नया साल आपके लिए और मेरे लिए कैसा होगा, इसका पता लगाने के दो तरीके हैं। या तो किसी ज्योतिषी की शरण में जाएं या वैश्विक घटनाक्रम की गुत्थियों को समझने की कोशिश करें कि हम पर उनका क्या असर होने वाला है। 2020 में जनवरी माह में हमें पता नहीं था कि हम खतरे से घिरने वाले हैं। ज्यादा से ज्यादा कुछ लोगों को खबर थी कि चीन में कोई बीमारी फैली है। लेकिन दो-तीन महीनों के भीतर हमने उस बीमारी को भारत में, और फिर अपने आसपास प्रवेश करते देख लिया।
मौसम, हवा, जलवायु, युद्ध और बीमारियों का जब असर होता है, तब सबके सर चढ़कर बोलता है। अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, गोरे-काले व सारे धार्मिक-सांस्कृतिक भेद एक साथ मिट जाते हैं। बहरहाल बदलते साल की बैलेंस-शीट पर कुछ बातें दर्ज होती जाती हैं, जिनसे पता लगता है कि गुजरे वक्त ने हमें क्या दिया व क्या छीना, और नया साल हमारे लिए क्या लेकर आ रहा है।
भारतीय राजनीति
देश की खोज-खबर बताने वाले मीडिया की मानें, तो सबसे बड़ा मसला राजनीतिक है। राष्ट्रीय राजनीति में करीब दस साल तक कहानी एकतरफा रहने के बाद पिछले साल सीधे मुकाबलों की ओर मुड़ी। देश में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों के रूप में एक तीसरी राजनीतिक ताकत और है। बीजेपी के विजय-रथ से कांग्रेस के अलावा इन्हें भी अपने अस्तित्व की फिक्र होने लगी। साल 2023 में ‘इंडिया गठबंधन’ बन जाने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में काफी जगहों पर सीधे मुकाबले हुए।लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में वापसी करके ‘इंडिया गठबंधन’ को राजनीतिक जवाब दे दिया है। अब 2025 में जोर-आजमाइश के दो बड़े मौके बनेंगे। इस साल दिल्ली और बिहार विधानसभाओं के चुनाव हैं। दिल्ली का चुनाव पहली तिमाही में ही हो जाएगा और बिहार में साल के आखिर में।
दिल्ली और मुंबई
दिल्ली में बीजेपी के सामने खंडित ‘इंडिया गठबंधन’ होगा। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक-दूसरे से टकराने को तैयार हैं। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली का प्रतीकात्मक महत्व है। यहां हार-जीत से बीजेपी को नफा-नुकसान नहीं होगा, पर यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी चौथी बार जीतकर आई, तो वह राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण ताकत बनकर उभरेगी। वहीं यह कांग्रेस के लिए हैसियत बढ़ाने का एक अवसर है।
इस साल कुछ महानगरों के पालिका चुनाव होंगे, जिनमें देश की सबसे अमीर महापालिका बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) का होगा। यहां महायुति और महाविकास अघाड़ी का एक और मुकाबला है। यह भी मूलतः शिवसेना (उद्धव) और एकनाथ शिंदे के बीच होगा, क्योंकि अभी तक यहां शिवसेना (उद्धव) का प्रभुत्व है। बीजेपी इस चुनाव में पूरी ताकत से उतरेगी, क्योंकि वह महाराष्ट्र में स्थायी असरदार बनकर रहना चाहती है।
75 के मोदी
इस साल 17 सितंबर को नरेंद्र मोदी 75 साल के हो जाएंगे। चूंकि बीजेपी ने 75 साल से ऊपर के लोगों को ‘मार्गदर्शक’ बनाना शुरू कर दिया है, इसलिए मोदी-विरोधी सवाल करेंगे। अरविंद केजरीवाल पूछ चुके हैं कि क्या मोदी जी मार्गदर्शक मंडल में जाएंगे? फिलहाल मोदी के बगैर बीजेपी की कल्पना संभव नहीं है। नए साल में बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी होगा। कई नाम उभर रहे हैं, पर माना जा रहा है कि जो भी होगा संघ का विश्वस्त होगा। अफवाहें हैं कि संघ और बीजेपी के बीच खिंचाव है, पर सच यह है कि हरियाणा और महाराष्ट्र की विजय के पीछे संघ का सक्रिय सहयोग रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के कुछ बयान मुख्यधारा के हिंदुत्व से मेल नहीं खा रहे, पर यह इतना अविचारित नहीं है, जितना लोग समझ रहे हैं।
संघ के 100 साल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का यह शताब्दी वर्ष है। 1925 में विजया दशमी के दिन डॉ. केशव हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी। उस साल विजया दशमी 27 सितंबर को थी। इस साल 26 दिसंबर को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भी 100 वर्ष पूरे होंगे। संघ ने शताब्दी-वर्ष में अपनी शाखाओं की संख्या एक लाख करने का लक्ष्य रखा है, जिसका असर राजनीति में दिखेगा। संघ के 2025 के एजेंडा में सामाजिक समरसता भी शामिल है।
‘इंडिया’ की चुनौती
‘इंडिया गठबंधन’ के सामने नए साल में अपने आप को बचाए रखने और सहयोगियों को जोड़े रखने की चुनौती है। इसकी धुरी कांग्रेस को भी अपने आप को संगठनात्मक रूप से मजबूत करना होगा। पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली विफलताओं के बाद गठबंधन के कुछ सहयोगियों ने कहना शुरू कर दिया है कि नेतृत्व हमें सौंपो। यह मांग करने वालों में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सबसे आगे हैं। इन बातों से बिहार चुनाव के दौरान सीट बंटवारे में कांग्रेस दबाव में रहेगी।
कानूनी बहसें
इस साल दो कानूनों पर राष्ट्रीय बहस शिद्दत से चलेगी। एक, वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक और दूसरा, ‘एक देश, एक चुनाव कानून’। दोनों संसदीय समितियों के पास हैं। पर सबसे बड़ा कार्यक्रम है जनगणना का। लंबे समय से विलंबित जनगणना इस साल शुरू होने की संभावना है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में महत्वपूर्ण डेटा अंतराल दूर करना चाहेंगे। एक दशक में एक बार होने वाली जनगणना 2021 में पूरी होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसमें देरी हो गई। जनगणना से आर्थिक आंकड़ों, मुद्रास्फीति और रोज़गार अनुमानों सहित कई अन्य सांख्यिकीय सर्वेक्षणों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इनमें से ज्यादातर डेटा सेट 2011 में जारी जनगणना पर आधारित हैं।
जातीय सवाल
जनगणना के प्रश्न ने राजनीतिक शक्ल भी धारण कर ली है। विरोधी दल जाति-जनगणना की बात कर रहे हैं, वहीं बीजेपी विपक्ष के इस एजेंडे को विभाजनकारी बताते हुए अपनी मुहिम जारी रख सकती है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने देशभर में जाति जनगणना की मांग उठाई और आरक्षण के लिए ‘50 फीसदी की कृत्रिम-सीमा’ को तोड़ने का आह्वान किया था। इस बीच, भाजपा ने अपने मूल वैचारिक मुद्दों में सामाजिक न्याय को भी जोड़ लिया है। पहले जातिगत मुद्दे क्षेत्रीय दलों जैसे बसपा, सपा, जेडीयू, राजद, लोजपा, रिपब्लिकन पार्टी आदि के अधिकार क्षेत्र में थे। इस मुद्दे पर कांग्रेस का फोकस बढ़ने के कारण पिछले एक साल में इसमें निर्णायक बदलाव आया है। जाति, आरक्षण और बीआर अंबेडकर की विरासत जैसे मुद्दों का वैचारिक दायरा इस साल और बढ़ेगा।
संसदीय परिसीमन
2023 में संसद ने महिला आरक्षण विधेयक को मंज़ूरी देकर एक बड़ा कदम उठाया है। इस साल से उसे लागू करने के बारे में प्रक्रियाएं शुरू होंगी, जो जनगणना और विधानसभाओं और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन से जुड़ी हैं। लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय की जाती हैं। पिछला देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था। इसे 2008 में लागू किया गया था, पर सीटें नहीं बढ़ीं। साल 1976 में संवैधानिक संशोधन के बाद लोकसभा में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या का विस्तार वर्ष 2001 तक के लिए रोक दिया गया था। फिर 2001 में संविधान संशोधन करके इसे 2026 तक फ़्रीज़ कर दिया। परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लोकसभाओं के चुनाव होने पर महिला आरक्षण लागू हो सकता है। बदलती आबादी के हिसाब से यह सतत प्रक्रिया है। इसके लिए क़ानून बनाकर परिसीमन आयोग की स्थापना की जाती है।
उत्तर-दक्षिण
भविष्य में परिसीमन के साथ देश में उत्तर बनाम दक्षिण का झगड़ा भी खड़ा हो सकता है। जनसंख्या किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की सीमा तय करने का मापदंड है। प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुपात में लोकसभा सीटें मिलती हैं। दक्षिण के लोगों का कहना है कि जनसंख्या-नियंत्रण में हमारी भूमिका बड़ी है, पर संसद में प्रतिनिधित्व भी हमारा ही कम होगा, ऐसा क्यों? इस साल जनगणना हो जाए, फिर भी उसके आंकड़े लाने में कुछ समय लगेगा। क्या ऐसा संभव है कि 2026 के एकाध साल बाद परिसीमन हो जाए और 2029 के चुनावों में सीटें बढ़ जाएं? यह पेचीदा सवाल है, जो इस साल पूछा जाएगा।
विदेश नीति
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गत 18 दिसंबर को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। इस बैठक के परिणामों से लगता है कि दोनों देश पिछले चार साल से चले आ रहे गतिरोध को दूर करके सहयोग के नए रास्ते तलाश करने पर राजी हो गए हैं। यह साल भारत-चीन, भारत-अमेरिका और भारत-रूस रिश्तों के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित होगा। 20 जनवरी को अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ लेंगे। इस साल वे क्वाड के शिखर सम्मेलन में संभवतः भारत आएंगे। उनके कुर्सी संभालने से पहले अमेरिका में एच-1बी वीज़ा को लेकर बहस चल रही है। क्या ट्रंप उसे जारी रखेंगे? यह वीज़ा कुशल विदेशी कर्मियों को अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है। भारत के लिए यह बड़ा सवाल है, क्योंकि सबसे ज्यादा वीज़ा अब भारत के लोगों को मिलते हैं। ट्रंप ने हाल में इसे 'शानदार कार्यक्रम' कहा है।
वैश्विक-राजनीति में भारत एक नई भूमिका की ओर बढ़ रहा है। यह भूमिका है ‘ग्लोबल साउथ’ और विकसित देशों के बीच सेतु की। वैश्विक परिदृश्य में इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की भूमिका एक कदम और आगे बढ़ेगी। यह भूमिका कज़ान में ब्रिक्स के सम्मेलन, रियो में जी-20 सम्मेलन और इंग्लैंड के कॉर्नवाल में हुए जी-7 के सम्मेलन में दिखाई पड़ी थी।
दुनिया की दिशा
दुनिया के सामने सबसे ज़्यादा दबाव वाले मुद्दे तेज़ी से विकसित हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के पर्यावरणीय प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहे हैं और लाखों लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका को ख़तरा पैदा कर रहे हैं। तकनीकी विकास के बावजूद, उनके लिए कोई सुरक्षा कवच नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) रखा है। उसकी समय-सीमा से पांच साल पहले, दुनिया लक्ष्य से काफ़ी दूर है। एक नज़र 2025 के लिए निर्धारित सबसे प्रतीक्षित शिखर सम्मेलनों पर डालें कि क्या इस साल हम बेहतर दुनिया बनाने की दिशा में बढ़ पाएंगे। जनवरी में दावोस के विश्व आर्थिक मंच की बैठक में बिजनेस, सरकारों और नागरिक समाज के वैश्विक नेता मिल-बैठकर इन सवालों पर विचार करेंगे। दूसरी तरफ दुनिया के सात अमीर देशों के ग्रुप ऑफ सेवन (जी-7) का शिखर सम्मेलन कनाडा के रॉकीज में होगा।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागर अत्यधिक मात्रा में गर्मी सोख रहे हैं, जो जैव विविधता के लिए एक गंभीर खतरा है। इस सिलसिले में भूमध्यसागर के तट पर फ्रांस और कोस्टा रिका की सह-मेजबानी में 2025 का संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (यूएनओसी3) होगा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा
सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की 80वीं बैठक होगी। दुनिया के इस सबसे बड़े वार्षिक सम्मेलन में विस्थापन, संघर्ष, गरीबी, भुखमरी और सतत विकास के 2030 एजेंडा पर बातें भी होंगी, जो बुरी तरह से पटरी से उतर गए हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की तीसवीं बैठक, जिसे कॉप-30 के नाम से जाना जाएगा, ब्राजील में होगी। कॉप-29 के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद यहां काफी उम्मीदें होंगी। ऊर्जा भंडारण और कार्बन बाजारों पर किए गए समझौतों के बावजूद, विकासशील देशों को धनी देशों की ओर से धन देने का आश्वासन पूरा हुआ नहीं है। जी-20 का शिखर सम्मेलन इस साल पहली बार अफ्रीकी देश में होगा। पिछले साल अफ्रीकी संघ के इसमें शामिल होने के बाद यह शिखर सम्मेलन जोहानेसबर्ग में होगा। साल 2024 में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने वाला ब्राज़ील इस साल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा। शिखर सम्मेलन में अपने चार नए सदस्यों और तेरह भागीदार देशों का दूसरी बार स्वागत किया जाएगा और संभवतः इस समूह का और विस्तार करने पर विचार किया जाएगा।
विज्ञान और तकनीक
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का इस साल भी बोलबाला रहेगा। ऐसे स्वचालित-वाहन बड़ी तादाद में आएंगे, जो एआई, सेंसर और मशीन लर्निंग के सहारे चलेंगे। जेनरेटिव एआई की मदद से टेक्स्ट और फोटो से लेकर ऑडियो और जटिल सिमुलेशन नए रूप में आएंगे। क्वांटम कंप्यूटर का विकास चल रहा है, पर माना जा रहा है कि क्रिप्टोग्राफी जैसे सुरक्षित कोड को भी क्वांटम कंप्यूटिंग क्रैक कर देगी। यह कंप्यूटिंग आज के सुपर कंप्यूटरों से सैकड़ों गुना ज्यादा तेज होगी। मोबाइल नेटवर्क की पांचवीं पीढ़ी यानी 5-जी का दुनियाभर में विस्तार होगा। उन्नत वर्चुअल रियलिटी उपकरण सामने आएंगे। वीआर गेमिंग, ट्रेनिंग और चिकित्सा के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता बढ़ेगी। जैव प्रौद्योगिकी ऐसी फसलों के बीज तैयार करेगी, जो सूखे और पर्यावरणीय खतरों का सामना कर सकें।
खेल का मैदान
भारतीय क्रिकेट टीम इन दिनों ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर है। इसके बाद फरवरी में यूएई में चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय टीम जाएगी। फिर 28 जनवरी से 14 फरवरी तक नेशनल गेम्स उत्तराखंड में होंगे। जनवरी में बैडमिंटन इंडिया ओपन प्रतियोगिता होगी। इन दिनों राउरकेला में पुरुषों की हॉकी इंडिया लीग चल रही है, इसके बाद महिलाओं की लीग होगी। फरवरी में महिला और पुरुष एफआईएच हॉकी प्रो लीग के मैच भुवनेश्वर में होंगे। मार्च में सीनियर महिला और अप्रैल में सीनियर पुरुष हॉकी इंडिया राष्ट्रीय चैंपियनशिप होंगी। मई में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में और जुलाई में शतरंज के महिला विश्व कप में भारतीय टीम भाग लेगी। नवंबर में विश्व मुक्केबाजी कप और दिसंबर में जूनियर हॉकी विश्व कप प्रतियोगिता भारत में होगी।
अंतरिक्ष में भारत इसरो ने गत 30 दिसंबर को स्पेडैक्स मिशन की सफल लॉन्चिंग के साथ भारत की अंतरिक्ष यात्रा को नई ऊंचाई दी है। इसके तहत जो दो उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं, उनकी डॉकिंग संभवतः 7 जनवरी को होगी। यह मिशन खासतौर से चंद्रयान-4 के लिए जरूरी है। नासा और इसरो के संयुक्त सहयोग से 2025 में निसार मिशन लॉन्च किया जाएगा। इस साल इसरो ने गगनयान के मानवरहित परीक्षण लॉन्च की योजना भी बनाई है। ये मिशन न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं को प्रदर्शित करेंगे, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को और मजबूत करेंगे। अब भारत अंतरिक्ष में कई बड़े और महत्वाकांक्षी मिशनों को देखेगा। इनमें चंद्रयान-4, गगनयान, लूपेक्स, और शुक्रयान जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं।
भारतीय-अर्थव्यवस्था
रिज़र्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण और सरकारी खपत के साथ निवेश में वृद्धि से अर्थव्यवस्था की रफ्तार इस साल बढ़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास के अलावा मजबूत सेवा निर्यात से 2025 में अर्थव्यवस्था की संभावनाएं बेहतर हैं। चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.6 फीसदी रहने का अनुमान है। पहली छमाही में सुस्ती के बाद घरेलू जीडीपी के दूसरी छमाही में रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है। आगे चलकर बंपर खरीफ और रबी फसल से खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में नरमी की उम्मीद है। महंगाई में गिरावट जारी रहेगी और आगामी वर्ष में यह लक्ष्य के अनुरूप होगी, जिससे खरीद क्षमता में सुधार होगा।
वैश्विक-अर्थव्यवस्था
2025 में दुनिया के सामने मंदी का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नए आयात शुल्क लागू करेंगे, तो व्यापार युद्ध छिड़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति और वैश्विक मंदी दोनों के खतरे हैं। विश्व बैंक के अनुसार, सबसे गरीब देश पिछले दो दशकों में अपनी सबसे खराब आर्थिक स्थिति में हैं। महामारी के बाद वे रिकवरी से चूक गए हैं। यूरोपीय सेंट्रल बैंक की अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने ईसीबी की वर्ष की अंतिम बैठक के बाद अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 2025 में अनिश्चितता ‘बहुत अधिक’ होगी। दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन पर दबाव है। उसकी संवृद्धि धीमी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने नवीनतम विश्व आर्थिक-परिदृश्य में संकेत दिया है: अनिश्चित समय के लिए तैयार रहें।