20 साल पहले तीनों लाल के ‘युवराज’ थे आमने-सामने
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
भिवानी, 21 अप्रैल
भिवानी का नाम आते ही प्रदेश के भूतपूर्व सीएम चौ़ बंसीलाल का नाम जुबान पर आना स्वाभाविक है। बरसों तक बंसीलाल का गढ़ रहे ओल्ड भिवानी में अब राजनीतिक हालात बदले हुए हैं। सबसे अधिक बदलाव 2008 के परिसीमन की वजह से आया। जिस भिवानी पार्लियामेंट में बंसीलाल के नाम का डंका बजता था, वहां भिवानी-महेंद्रगढ़ बनने के बाद राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गईं। जाटलैंड से यह संसदीय सीट दो हिस्सों में बंट गई।
दरअसल, 1973 में अस्तित्व में आए भिवानी पार्लियामेंट में 2004 तक के लोकसभा चुनाव पुरानी संसदीय सीट के हिसाब से हुए। भिवानी के अंतर्गत भिवानी, बवानीखेड़ा, दादरी, तोशाम, लोहारू, बाढ़डा, मुंढाल, हांसी और आदमपुर विधानसभा क्षेत्र आते थे। चौटाला सरकार के समय 2004 में आए परिसीमन के दौरान इस सीट को तोड़ दिया गया। भिवानी की बजाय भिवानी-महेंद्रगढ़ नई संसदीय सीट अस्तित्व में आई। ओल्ड भिवानी जिला के पांच हलकों के अलावा महेंद्रगढ़ जिला के चार हलके इसमें शामिल हो गए।
हरियाणा की यह अपनी तरह की पहली ऐसी लोकसभा सीट है, जिस पर राज्य की राजनीति के तीनों लाल परिवारों के युवराज एक समय एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी रण में उतर चुके हैं। इतना ही नहीं, अलग-अलग समय पर तीनों ही लाल परिवारों के युवराजों ने लोकसभा में भिवानी का प्रतिनिधित्व भी किया। बंसीलाल पुत्र सुरेंद्र सिंह को चुनाव में शिकस्त देने का सपना भिवानी-महेंद्रगढ़ के मौजूदा सांसद धर्मबीर सिंह कभी पूरा नहीं कर सके लेकिन उनकी बेटी श्रुति चौधरी को जरूर लगातार दो बार चुनाव में शिकस्त दी है। 1977 में भिवानी से पहला चुनाव जनता पार्टी की चंद्रावती ने जीता। इसके बाद 1980 और 1984 में लगातार दो बार चौ़ बंसीलाल भिवानी से कांग्रेस टिकट पर सांसद बने। 1987 में हुए उपचुनाव में लोकदल के चौ़ राम नारायण सिंह चुनाव जीते। 1989 में कांग्रेस टिकट पर लड़े बंसीलाल ने लोकदल से यह सीट छीनते हुए जीत हासिल की। प्रदेश में बदले हुए राजनीतिक हालात के चलते बंसीलाल ने कांग्रेस छोड़ दी और हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) का गठन किया। इसके बाद लगातार तीन चुनाव हविपा ने जीते। 1991 में बंसीलाल ने हविपा टिकट पर जंगबीर सिंह को चुनावी रण में उतारा और वे कांग्रेस को शिकस्त देते हुए चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
1996 में बंसीलाल के पुत्र सुरेंद्र सिंह ने जीत हासिल की। सुरेंद्र सिंह ने 1998 में भी भिवानी से चुनाव जीता। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद हुए आमचुनाव इनेलो और भाजपा ने मिलकर लड़े। अजय सिंह चौटाला ने 1999 का चुनाव गठबंधन में लड़ा और हविपा के सुरेंद्र सिंह को शिकस्त देकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे।
चौटाला परिवार की भिवानी में जीत के बाद भूतपूर्व सीएम चौ़ भजनलाल का भी इस ओर रुझान हुआ। उनका खुद का निर्वाचन क्षेत्र आदमपुर और हिसार जिला का हांसी हलका भी भिवानी में था। ऐसे में 2004 के चुनावों में भजनलाल ने अपने बेटे कुलदीप बिश्नोई को कांग्रेस टिकट पर भिवानी से चुनावी मैदान में उतारा।
लगभग 20 साल पहले यही वह चुनाव था, जिस पर पूरे देश की नजरें लगी थी। इनेलो टिकट पर उस समय मौजूदा सांसद अजय चौटाला और हविपा टिकट पर सुरेंद्र सिंह चुनाव लड़ रहे थे। कुलदीप बिश्नोई ने सुरेंद्र सिंह और अजय चौटाला को शिकस्त देते हुए पहली बार संसद में दस्तक दी।
हैट्रिक के लिए उतरे धर्मबीर सिंह
भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से 2014 में भाजपा टिकट पर धर्मबीर सिंह ने चुनाव लड़ा और 1 लाख 29 हजार 394 मतों के अंतर से जीत हासिल की। धर्मबीर सिंह को 4 लाख 4 हजार 542 वोट मिले। वहीं इनेलो के राव बहादुर सिंह 2 लाख 75 हजार 148 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस की श्रुति चौधरी 2 लाख 68 हजार 115 मतों के साथ तीसरे पायदान पर रहीं। 2019 में धर्मबीर सिंह ने श्रुति चौधरी को 4 लाख 44 हजार 463 मतों के अंतर से लगातार दूसरी बार चुनाव हराया। अब भाजपा ने धर्मबीर सिंह पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है। यानी धर्मबीर सिंह इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के लिए चुनावी रण में डटे हैं।
टिकट पर बड़ी दुविधा
लगातार तीन बार श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ से चुनाव लड़ चुकी हैं। इस बार इस सीट पर टिकट को लेकर कांग्रेस में बड़ा संग्राम देखने को मिल रहा है। श्रुति चौधरी जहां खुद चुनाव लड़ना चाहती हैं वहीं हुड्डा खेमा यहां से महेंद्रगढ़ विधायक राव दान सिंह को टिकट दिलवाने के मूड में हैं। दिल्ली में पूरी लॉबिंग चल रही है। बात गांधी परिवार तक भी पहुंच चुकी है। यह भी कहा जा रहा है कि जिन संसदीय क्षेत्रों में विवाद के चलते टिकट आवंटन लटका हुआ है, उसमें भिवानी-महेंद्रगढ़ भी टॉप पर है। श्रुति की माता और पूर्व मंत्री किरण चौधरी किसी भी हालत में चौ. बंसीलाल के इस गढ़ को अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती। वहीं राव दान सिंह को मैदान में लाकर हुड्डा कैम्प चुनावी मुकाबले को कांटे का बनाने की कोशिश में है।
2009 तक बदल गए हालात
2004 में चौटाला सरकार के समय परिसीमन आया। 2008 में इसका नोटिफिकेशन जारी हुआ और 2009 के चुनावों से परिसीमन लागू हुआ। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट के अंतर्गत महेंद्रगढ़ जिला के चार हलके – महेंद्रगढ़, नारनौल, नांगल-चौधरी व अटेली शामिल हो गए। वहीं ओल्ड भिवानी जिला के दादरी, बाढ़डा, लोहारू, तोशाम व भिवानी शहर इस पार्लियामेंट का हिस्सा बने रहे। बवानीखेड़ा हिसार पार्लियामेंट में शामिल हो गया। वहीं मुंढाल हलका खत्म हो गया।