12 सितंबर से पहले सत्र जरूरी, नहीं तो विस हो भंग
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 27 अगस्त
हरियाणा में विधानसभा का मानसून सत्र नहीं बुलाने की स्थिति में प्रदेश पर बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। नियमों के तहत छह महीनों की अवधि के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाया जाना अनिवार्य है। बेशक, हरियाणा में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है। लेकिन सत्र बुलाने की बाध्यता अभी भी बनी हुई है। अगर सरकार सत्र नहीं बुलाती तो इस संवैधानिक संकट को मौजूदा यानी 14वीं विधानसभा को भंग करके टाला जा सकता है।
इससे पहले विधानसभा का एक दिन का सत्र 13 मार्च को हुआ था। दरअसल, 12 मार्च को उस समय मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी दिन नायब सिंह सैनी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी।
नई सरकार का गठन होने की वजह से नायब सिंह सैनी को बहुमत साबित करना था। इसी के चलते एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था। इस हिसाब से 12 सितंबर से पहले विधानसभा का सत्र बुलाया जाना जरूरी है। सत्र की अवधि भले ही एक दिन की ही क्यों ना हो।
2020 में जब पूरा देश कोविड-19 की चपेट में था तो उस समय भी ऐसी ही संवैधानिक मजबूरी सरकार के सामने आई थी। इससे बचने के लिए अगस्त-2020 में एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर इस संवैधानिक संकट को टाला गया था। इसी मजबूरी के चलते 2009, 2014 और 2019 में भी विधानसभा चुनावों की घोषणा से कुछ रोज पहले ही विधानसभा का सत्र बुलाया गया था ताकि छह माह की शर्तों को पूरा किया जा सके।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता व विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि 12 सितंबर से पहले मौजूदा विधानसभा का सत्र बुलाना संवैधानिक तौर पर जरूरी है। हेमंत कुमार ने इस संदर्भ में राष्ट्रपति द्रौपर्दी मुर्मूू को एक याचिका भी भेजी है। इसमें उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 174(1) का हवाला देते हुए कहा है कि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर तक है। आखिरी सत्र 13 मार्च को हुआ था। ऐसे में 12 सितंबर से पहले सत्र बुलाना जरूरी है।
आचार संहिता के बीच रोक नहीं
बताया गया है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता के दौरान सत्र बुलाने पर किस तरह की रोक नहीं है। अगर सरकार सत्र नहीं बुलाना चाहती है तो कैबिनेट की मीटिंग में विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की जा सकती है। कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल की मुहर के बाद विधानसभा भंग हो जाएगी। ऐसी स्थिति में सत्र बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हेमंत कुमार ने कहा कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था – अगर समय पूर्व विधानसभा को भंग कर दिया जाता है तो छह महीने में सत्र बुलाने की संवैधानिक बाध्यता नहीं रहेगी।
अध्यादेश भी बने रहेंगे
यहां बता दें कि नायब सरकार ने पिछले कुछ दिनों में कैबिनेट में पांच अध्यादेश जारी किए हैं। इनमें कच्चे कर्मचारियों को रिटायरमेंट उम्र तक रोजगार की गारंटी, शहरी स्थानीय निकायों व पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में बीसी-बी को पांच प्रतिशत आरक्षण व हरियाणा शामलात (साझा) भूमि विनियमन (संशोधन) आर्डिनेंस शामिल हैं। अगर सरकार सत्र बुलाती है तो इस सभी आर्डिनेंस को विधानसभा में पास करना होगा। विधानसभा भंग करने की सूरत में इनकी वैधता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।