स्वागत सुनीता
आखिरकार नासा की बहुचर्चित अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अपने सहयोगी बुच विलमोर के साथ सकुशल पृथ्वी पर आ ही गई। अमेरिका ही नहीं भारत में करोड़ों लोग उनकी फिक्र कर रहे थे। दरअसल, आठ दिन के मिशन के लिये बीते साल 6 जून को स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट के जरिये वे अमेरिका के स्पेस स्टेशन पहुंचे थे, लेकिन स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी खामी आने के कारण उनकी वापसी नौ महीने तक टलती रही। जिसको लेकर भारत व अमेरिका समेत पूरी दुनिया में चिंता व्यक्त की जाती रही है। देर आए दुरुस्त आए, इस देरी से सुनीता दुनिया में सबसे अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहने वाली महिला का रिकॉर्ड बना चुकी हैं। कुल 286 दिन स्पेस में रहने के दौरान सुनीता ने नौ सौ घंटे का शोधकार्य किया और डेढ़ सौ वैज्ञानिक प्रयोग किए। नासा ने विश्वास जताया है कि इस लंबे अनुभव का लाभ अमेरिका के इस दशक के अंत तक मंगल पर मनुष्य को उतारने के अभियान में मिलेगा। आमतौर पर यात्रियों के अंतरिक्ष में रुकने का समय अधिकतम छह माह होता है, लेकिन जब सुनीता को नौ महीने तक रुकना पड़ा है तो चिंता उनके शरीर में पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर होती रही है। आशंका है कि अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहने से उनके शरीर पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा होगा। जिसको सामान्य होने में काफी समय लग सकता है। दरअसल, अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण के न होने से भारहीनता की स्थिति पैदा होती है, जो शरीर की सामान्य प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर डालती है। इस भारहीनता की स्थिति में हड्डियों व मांसपेशियों को कमजोर होने से बचाने के लिये करीब प्रतिदिन चार घंटे का व्यायाम करना पड़ता है। इस दौरान जहां खून का प्रवाह भी बाधित होता है, वहीं भारहीनता में मांसपेशियां व हड्डियां शिथिल हो जाती हैं, साथ ही रेडिएशन का भी खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि आंखों पर भी बुरा असर पड़ता है। जिसके चलते सुनीता व उनके सहयात्री को गहन चिकित्सा देखरेख में रखा जा रहा है।
दरअसल, भारत में सुनीता विलियम्स को लेकर जो अनुराग व चिंता दिखी, उसकी वजह उनका भारत व भारतीय संस्कारों से जुड़ा रहना ही है। अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान वे अंतरिक्ष में गीता-उपनिषद् व समोसे लेकर गई थीं। वे भारतीय खाने की मुरीद रही हैं। बहरहाल, उन्हें विश्वास था कि वे भविष्य में इतिहास रचेंगी। वर्ष 2012 में दिल्ली के नेशनल साइंस सेंटर में छात्रों से उन्होंने कहा भी था कि रिकॉर्ड टूटने के लिये ही बनते हैं। संयोग देखिए कि अपनी तीसरी अंतरिक्ष यात्रा में वे सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाली पहली महिला बन गई हैं। भले ही सुनीता का जन्म अमेरिका के ओहायो प्रांत में हुआ हो लेकिन वे गुजरात के मेहसाणा स्थित पैतृक गांव झूलासन का दो बार दौरा कर चुकी हैं। अहमदाबाद से डॉक्टरी की पढ़ाई करके अमेरिका बसने वाले पिता दीपक पंडया उनकी प्रेरणा रहे हैं। उनकी मां के कैथोलिक धर्म अनुयायी होने के बावजूद पिता ने उन्हें भगवद्गीता आदि पौराणिक ग्रंथों से परिचित कराया। उन्हें सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाया। एक समय पशुओं से लगाव के कारण पशु चिकित्सक बनने का सपना देखने वाली सुनीता कालांतर अमेरिकी नौसेना में शामिल हुईं। बचपन से तैराकी का शौक रखने वाली सुनीता ने कई तैराकी प्रतियोगिताएं जीती। नौसेना पायलट के दौरान उन्होंने ढाई हजार घंटे तक की उड़ान भरी और अंतरिक्ष में जाने को लक्ष्य बनाया। ह्यूस्टन स्थित जॉनसन स्पेस सेंटर ने उन्हें अंतरिक्ष में जाने का सपना दिखाया। हालांकि, नासा ने उनके पहले आवेदन को खारिज कर दिया था। उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के सपने को पूरा करने के लिए नासा में आवेदन किया, लेकिन नासा ने पहली बार में इसे स्वीकार नहीं किया। फिर उन्होंने अंतरिक्ष में जाने के लिए ही 1995 में इंजीनियरिंग प्रबंधन में मास्टर डिग्री हासिल की। दुबारा नासा ने उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया। कालांतर वर्ष 2006 में उन्हें अंतरिक्ष में जाने का पहला मौका मिला। वे भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री बनीं। निस्संदेह, धरती पर लौटने के बाद वातावरण में ढलने में उन्हें कुछ वक्त लगेगा। लेकिन वह एक उत्साही फाइटर हैं और जल्दी ही सामान्य जीवन जीने लगेंगी।