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संगम के अलावा बहुत कुछ दर्शनीय

04:00 AM Jan 17, 2025 IST
Prayagraj: 'Naga sadhus' of 'Juna Akhada' and other devotees take a holy dip at the Sangam on the occasion of 'Makar Sankranti' festival, during the Maha Kumbh Mela 2025, in Prayagraj, Uttar Pradesh, Tuesday, Jan. 14, 2025. (PTI Photo/Arun Sharma)(PTI01_14_2025_000281A)

संगम त्रिवेणी के पास स्थित इलाहाबाद किला 1583 में मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था। इस किले के अंदर कुछ खास स्थान लोगों के लिए खुले हैं, जैसे सरस्वती कूप और अक्षय वट। किले का वास्तुकला और यहां स्थित अशोक स्तंभ और पातालपुरी मंदिर को देखना एक अनूठा अनुभव है।

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समीर चौधरी
महाकुंभ के अलौकिक, धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव के लिए प्रयागराज, की यात्रा एक अद्भुत अनुभव है। प्रयागराज, जो अब सड़क और रेल मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, देश के किसी भी कोने से आसानी से पहुंचा जा सकता है। महाकुंभ के आयोजन के कारण यातायात सुविधाओं को और बेहतर बना दिया गया है, जिससे श्रद्धालुओं और पर्यटकों को कोई परेशानी नहीं होती।

संगम की अनूठी छटा
संगम त्रिवेणी वह पवित्र स्थल है जहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों का संगम होता है। यहां गंगा और यमुना के पानी का मिलन अद्भुत रूप से दिखाई देता है, जहां दोनों नदियां समानांतर बहती हुई प्रतीत होती हैं। यह दृश्य अत्यंत मनोहर और चमत्कारी है। संगम पर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करने के बाद यमुना पुल पर चढ़कर, वहां से त्रिवेणी संगम का दृश्य एक नई दिशा में नजर आता है। विशेषकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यह दृश्य अत्यधिक आकर्षक होता है।

अकबर द्वारा बनवाया किला
महाकुंभ के कारण प्रयागराज का यह धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि यहां के अन्य ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं। संगम त्रिवेणी के पास स्थित इलाहाबाद किला 1583 में मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था। इस किले के अंदर कुछ खास स्थान लोगों के लिए खुले हैं, जैसे सरस्वती कूप और अक्षय वट। किले का वास्तुकला और यहां स्थित अशोक स्तंभ और पातालपुरी मंदिर को देखना एक अनूठा अनुभव है।
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आनंद भवन की विरासत
अगर आप प्रयागराज में हैं और आपने आनंद भवन नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा। आनंद भवन आज तो एक म्यूजियम है, लेकिन देश की आज़ादी से पहले यह नेहरू परिवार का पैतृक निवास था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन व संघर्षों को समझने के लिए आनंद भवन सबसे अच्छी जगह है। आनंद भवन में जवाहर प्लैनेटेरियम भी है, जिसका उद्देश्य अवाम में साइंटिफिक टेम्पर विकसित करना है, खगोलशास्त्र व विज्ञान के शोज़ के ज़रिये। इस भवन को मोतीलाल नेहरू ने 1930 में खरीदा था और 1970 में उनकी पोती व तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे भारत सरकार को दान कर दिया था।

खुसरो बाग का संदेश
प्रयागराज में एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल खुसरो बाग है। इस बाग में शहज़ादा खुसरो, उनकी राजपूत मां और बहन के मकबरे हैं। खुसरो सम्राट जहांगीर के सबसे बड़े पुत्र थे। खुल्दाबाद में प्रयागराज रेलवे जंक्शन के निकट 40 एकड़ में फैले इस बाग़ का भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी संबंध है, इसलिए इसे राष्ट्रीय महत्व की भारतीय साइट के तौर पर लिस्ट किया गया है। इसका आर्किटेक्चर ग़ज़ब का है। इसके शांत वातावरण में बैठे हुए अंग्रेज़ी के कवि थॉमस ग्रे की कालजयी कविता ‘स्टेनज़ा रिटन इन ए कंट्री चर्चयार्ड’ याद आ जाती है, जो उन्होंने एक गांव के कब्रिस्तान में बैठकर लिखी थी और जीवन व मृत्यु पर मंथन करते हुए बताया था कि आप दुनिया में रहते हुए कितने ही अच्छे या बुरे काम कर लीजिये, लेकिन यह जीवन इतना छोटा है कि सबको आखि़रकार अपनी कब्रों में सोना ही पड़ता है और फिर केवल यादें ही शेष रह जाती हैं। इसलिए इंसान को जो छोटा-सा जीवन मिला है, उसमें बेहतर है कि वह अच्छे कर्म करे और लालच व हवस को त्याग दें।

अलोपी देवी मंदिर
धीरे-धीरे चलते हुए अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए प्रयागराज के अलोपीबाग स्थित अलोपी देवी मंदिर पहुंच जाइए। यह मंदिर सती की पौराणिक कथा से संबंधित है, जिस वजह से यह शक्तिपीठ है। इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि लकड़ी का एक पालना है जिसके प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है।
मान्यता यह है कि जिस जगह मंदिर है वहां पर मां सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरा था। गिरने के बाद वह विलुप्त हो गया था, जिस वजह से मंदिर का नाम अलोप शंकरी पड़ा। स्थानीय लोग इस अलोपी देवी मंदिर के नाम से जानते हैं। बताया जाता है कि पालने की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। आप पालने पर जल चढ़ाने के बाद मंदिर की परिक्रमा और सभी इंसानों के लिए अमन, चैन व खुशियों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। नवरात्र के दौरान यहां मेला लगता है और जिस व्यक्ति की मनोकामना पूरी हो जाती है वह मां को हलवा पूड़ी का भोग अर्पित करता है और कड़ाही भी चढ़ाता है। इ.रि.सें.

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