कहीं रिलों और तस्वीरों में ही न रह जाए
के.पी. सिंह
गोल-मटोल चेहरा, चमकदार आंखें, छोटे बच्चों की तरह लड़खड़ाकर चलना। इतना पढ़ते ही आप समझ गए न? जी हां, हम उड़ न सकने वाले पेंग्विन पक्षी की ही बात कर रहे हैं। लेकिन बात अच्छी नहीं, बुरी है। दरअसल, पेंग्विन पक्षी के अस्तित्व पर जबर्दस्त पारिस्थितिकीय संकट मंडरा रहा है। अगर इस संकट से जल्द से जल्द न निपटा गया तो एक दिन हमें पेंग्विन पक्षी किताबों में, रीलों में और पर्यावरणीय डॉक्यूमेंट्रीज में ही देखने को मिलेंगे। जबकि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में पेंग्विन का जीवित रहना केवल उनके अस्तित्व के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। पेंग्विन समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण भाग हैं, और उनके व्यवहार व संख्या में बदलाव गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन का संकेत है।
कैसे कैसे संकट
जलवायु परिवर्तन और उसके चलते पैदा हुआ पारिस्थितिकीय संकट के चलते पेंग्विन पर एक नहीं कई तरह के संकट मंडरा रहे हैं। मसलन ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और समुद्री तापमान में वृद्धि होने से बड़े पैमाने पर इनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। इससे विशेषकर समुद्री बर्फ पर निर्भर प्रजातियां जैसे-एडेली और एम्परर पेंग्विन, बहुत प्रभावित हुई हैं। इसके साथ ही इनके भोजन में भी जलवायु परिवर्तन से फर्क पड़ा है। क्रिल, जो पेंग्विन का मुख्य भोजन है, जलवायु परिवर्तन और अधिक मछली पकड़ने के कारण कम हो रहा है। मानव गतिविधियां भी इनके लिए कम खतरनाक नहीं हैं। तेल रिसाव, समुद्री प्रदूषण, और गैर-जिम्मेदार पर्यटन से भी इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पेंग्विन के शिकारियों से भी इन्हें बहुत खतरा है। इसके साथ ही नई-नई बीमारियों का खतरा भी इनमें बढ़ चला है।
जागरूकता दिवस की पहल
पेंग्विन पर मंडराते इन्हीं संकटों के कारण साल 2000 से 20 जनवरी को पेंग्विन जागरूकता दिवस मनाया जाता है क्योंकि दुनियाभर में पेंग्विन की जो 18 से ज्यादा अलग-अलग प्रजातियां दुनिया में मौजूद हैं, उनमें से 72 फीसदी प्रजातियों की संख्या में घटोतरी हो रही है। दुनिया में 6.5 करोड़ साल से भी ज्यादा समय से मौजूद पेंग्विन धरती के प्राचीनतम बाशिंदों में से एक है। इन्हें बचाना इसलिए जरूरी है क्योंकि इंसान से लाखों गुना ज्यादा धरती से संबंधित जानकारियां इनके पास हैं।
बचाने की हो पहल
पेंग्विन के आवासों को बचाने की ज़रूरत है। इनके बारे में इंसान को ज्यादा जानकारी हासिल करना ज़रूरी है। पेंग्विन के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में हर नागरिक को जागरूक होना ज़रूरी है। क्योंकि पेंग्विन का संरक्षण, समुद्री जीवन और जलवायु संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। पेंग्विन के अस्तित्व पर खतरा पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक चेतावनी है। पेंग्विन के आवास को सुरक्षित रखने के लिए मानव गतिविधियों को नियंत्रित करना आवश्यक है।
क्या करे सरकार
स्कूलों, कॉलेजों, और पर्यावरण संगठनों में पेंग्विन जागरूकता दिवस के दिन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तब उनका संरक्षण होगा। सरकार इनके लिए समुद्री अभ्यारण्य बनाएं और मछली पकड़ने की सीमा भी तय की जाय। इसके साथ ही अंटार्कटिका और अन्य पेंग्विन निवास क्षेत्रों में पर्यटकों के लिए नियम लागू किये जाएं।
हम क्या करें
प्लास्टिक और समुद्री प्रदूषण को अपने स्तर पर रोकें। पेंग्विन संरक्षण संगठनों को सहयोग करें। इनके बारें में हम सब खूब पढ़ें। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से प्रयास करें।
कुछ लोग पेंग्विन को गोलमोल तरीके से लुढ़कते देखकर सोचते हैं यह पक्षी नहीं है, लेकिन पेंग्विन पक्षी ही है। लेकिन यह उड़ने में सक्षम नहीं होता। इसे उड़ानहीन पक्षी की श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि पेंग्विन के पंख होते हैं, भले ये दूसरे पक्षियों की तरह उड़ने के लिए अनुकूलित नहीं हैं। मगर इनके पंख फ्लिपर्स की तरह काम करते हैं, जो तैरने और पानी में तेज़ गति से चलने में मदद करते हैं।
ये पक्षियों की तरह ही अंडे देते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों की देखभाल करते हैं, जो पक्षियों का सामान्य व्यवहार है। पेंग्विन के शरीर पर छोटे-छोटे और घने पंख होते हैं, जो इन्हें ठंड से बचाते हैं। इसी तरह पेंग्विन की चोंच होती है, जिसका उपयोग वे शिकार पकड़ने (मछलियां, क्रिल) और भोजन खाने के लिए करते हैं। अन्य पक्षियों की तरह, पेंग्विन की हड्डियां हल्की होती हैं। हालांकि, उनके पास घनी हड्डियां भी होती हैं, जो उन्हें तैरने के दौरान पानी में गहराई तक जाने में मदद करती हैं। यही नहीं, पेंग्विन को पक्षियों के वर्ग एव्स में रखा गया है। पेंग्विन मुख्य रूप से अंटार्कटिका और समुद्री क्षेत्रों में रहते हैं, जहां उन्हें तैरने और शिकार करने के लिए पानी में अधिक समय बिताना पड़ता है। उड़ान की आवश्यकता वहां नहीं होती। इ.रि.सें.