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शुचिता की राजनीति के ‘अटल’ सत्य

04:00 AM Dec 25, 2024 IST

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

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नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं... लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहस भरे हैं... कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे... उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे-जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कूच है.. कौन जानता किधर सवेरा...। आज अगर वे हमारे बीच होते, तो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंक में भर लिया था और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वह स्नेह, अपनत्व... वह प्रेम मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।
आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनके नेतृत्व में एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। साल 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। नौ साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।
वे ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वे भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी और टेलीकम्यूनिकेशन की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासनकाल में ही एनडीए ने टेक्नोलॉजी को आम आदमी की पहुंच में लाने का काम शुरू किया। दूरदराज इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वह आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके कार्यकाल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने न सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूरदराज क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।
जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वे चाहते थे भारत के हर वर्ग, यानी ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला समेत सभी के लिए शिक्षा सहज-सुलभ बने। उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए जिनके कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की आर्थिकी को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका उद्देश्य आम आदमी के जीवन को बदलना ही रहा। उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहस भरे उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते हैं। देश को अब भी 11 मई, 1998 का वह गौरव दिवस याद है, जब एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। उस 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो अलग मिट्टी से बना है।
उन्होंने दुनिया को संदेश दिया कि यह पुराना भारत नहीं है। दुनिया जान चुकी थी, भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं। परमाणु परीक्षण की वजह से प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया। वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा चुनौतियां आईं। कारगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायराना प्रहार किया। हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।
जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वे लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वे चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं। कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी वे कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया कि ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है। संसद में कहा गया उनका ये वाक्य- सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए- आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।
वे जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरूरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। एनडीए की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। अनेक दलों को साथ लाए और एनडीए को विकास और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया। पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वे ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। उनमें सत्ता की लालसा नहीं थी। तभी तो 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। बेशक 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।
संविधान के मूल्यों के संरक्षण में भी उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा था। वे आपातकाल के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि यह निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा संविधान था। अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने पूरे देश को हिंदी से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। आम भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया। राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वे साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वे एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में आशा और सृजन की प्रेरणा देते थे। वे हर उम्र व वर्ग के भारतीय के प्रिय थे। मेरे जैसे भाजपा के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिस पर ये दृढ़ संगठन खड़ा है। उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनके नेतृत्व, सियासी दक्षता ने बीजेपी की राह लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त की। लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता तक पहुंचाया।
जब भी सत्ता और विचारधारा में से एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने विचारधारा को चुना। वे देश को समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे।

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