मानवीय नज़रिया
एक दिन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्रीजी का ड्राइवर निश्चित समय पर नहीं पहुंचा। शास्त्री जी ने अपनी फाइल उठाई और पैदल ही दफ्तर की ओर चल दिए। जैसे ही यह सूचना सचिवालय में पहुंची, वहां पर भगदड़ मच गई। ड्राइवर को जैसे ही यह ज्ञात हुआ वह परेशानी भरे स्वर में बोला, ‘मुझसे बहुत भारी भूल हो गई। दरअसल, मेरा बच्चा गंभीर रूप से बीमार हो गया। बच्चे की चिंताजनक हालत देखकर मैं कुछ सोच-समझ ही नहीं पाया। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।’ विभाग ने सख्त कार्रवाई की सिफारिश की। ड्राइवर की फाइल शास्त्रीजी के पास पहुंची। कुछ देर स्वयं से विचार-विमर्श कर शास्त्री ने फाइल पर टिप्पणी लिखी— ‘ड्राइवर एक पिता भी है और एक पिता के लिए अपने बच्चे की जिंदगी का महत्व अन्य सभी कार्यों से अधिक है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में किसी का भी मानसिक संतुलन खोना सामान्य-सी बात है। इसलिए ड्राइवर पर कोई भी कार्रवाई न की जाए और उसे माफ कर दिया जाए।’ जब फाइल शास्त्री जी के पास से विभाग के पास पहुंची तो विभाग के कर्मचारी यह टिप्पणी पढ़कर दंग रह गए।
प्रस्तुति : रेनू सैनी