डॉ. मोनिका शर्मा
बात-बात में मन में कड़वाहट उतर आने से लेकर, भावनात्मक रूप से उद्वेलित महसूस करने और सहज सी स्थितियों में भी क्रोध को काबू ना कर पाने का बर्ताव अब आम हो चला है। रिश्तों में जरा असहज और अप्रशंसित महसूस करने की बात हो या सड़क चलते किसी से बहसबाजी करने का व्यवहार, हर कोई आग बबूला हुए जा रहा है। छोटी-छोटी बातों से चिढ़ने और मनचाहा न होने पर परेशान होने के कारण गलतियां ही नहीं, क्राइम तक कर बैठने के मामले गली-मुहल्लों से लेकर सिनेमाघर, मॉल और मेट्रो तक हर कहीं दिख रहे हैं। दुखद है कि इस मनोदशा के चलते गम्भीर अपराध भी हो रहे हैं।
आक्रोश से बढ़ते अपराध
अनजाने हुई गलती से भी किसी को चोट पहुंचे तो मानवीय मन अपराधबोध से भर उठता है। आकस्मिक हुआ कोई हादसा किसी परिचित-अपरिचित का जीवन छीन ले तो इंसान जीवनभर सहज नहीं रह पाता। दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब नियोजित रूप से अपने आक्रोश दिखाने के लिए लोगों का जीवन छीनने का दुस्साहस किया जा रहा है। मामूली सी बहस या मन को न सुहाने वाली किसी की आम सी गतिविधि भी हत्या का कारण बन रही है। हिंसक सोच की यह विभीषिका गांवों से लेकर महानगरों तक, मानवीय मूल्यों को कुचलते हुए तेज गति से विस्तार पा रही रही है। जिसके चलते योजनाबद्ध रूप से जानलेवा आपराधिक घटना को अंजाम देने की यह प्रवृत्ति चिंता ही नहीं, चिंतन का भी विषय है। राजधानी दिल्ली के नांगलोई क्षेत्र में युवा पुलिस कांस्टेबल ने एक कार चालक को तेज रफ्तार और लापरवाही से गाड़ी चलाते देख रोका और गति कम करने को कहा। इस बात पर आक्रोशित कार चालक ने अचानक अपनी गति बढ़ा दी और कॉन्स्टेबल की मोटरसाइकिल को पीछे से टक्कर मारकर गिरा दिया। इतना ही नहीं, कॉन्स्टेबल को मोटरसाइकिल सहित सड़क पर करीब दस मीटर तक घसीटा। राजस्थान के भरतपुर जिले में बड़ों के आपसी विवाद के चलते घर के बाहर खेल रहे तीन बच्चों पर टैक्टर चढ़ा दिया गया। घटना में एक बच्चे की मौत और दो बच्चे घायल हो गए। इन्हीं दिनों सीवान के लक्ष्मणचक गांव के पास छेड़खानी का विरोध करने वाले वृद्ध की चार मोटरसाइकिल सवारों ने कुचल कर हत्या कर दी। ऐसी अनगिनत घटनाएं देशभर में हो रही हैं जिनका कारण अर्थहीन आक्रोश ही है।
बढ़ रहा अहंकार का घेरा
पल भर के इस आक्रोश का परिणाम कभी सुखद नहीं होता। बावजूद इसके लोग हद दर्जे तक अहंकारी बन ऐसी वाकयों को अंजाम दे रहे हैं। राजस्थान की घटना में तो आपसी विवाद के बाद बाकायदा धमकी दी गई कि ‘इन्हें ट्रैक्टर से कुचलना पड़ेगा।’ दिल्ली की हृदय विदारक घटना में तेज रफ्तार से गाड़ी चला रहे शख्स का कॉन्स्टेबल से कहना कि ‘तेरी औकात क्या है?’ और कार में सवार दूसरे शख्स द्वारा द्वारा तेज गति से गाड़ी चला रहे साथी को बोलना कि ‘भाई आज इस बीट वाले को गाड़ी चढ़ाकर खत्म कर दो’ शब्द भर नहीं हैं। असल में इन शब्दों में खुद को विशेष समझने की नकारात्मक सोच है। ‘गलती करने पर भी हमें कोई कुछ नहीं कह सकता’ का उन्मादी बर्ताव है। यही कारण है कि ऐसे विचारों से उपजा व्यवहार आक्रोश बनकर ही बाहर आता है। समय रहते सही-गलत की सूझ-बूझ रहने की स्थितियां ही नहीं बन पातीं। ऐसी बड़ी गलती करने के बाद लोग अफसोस भी करते हैं, पर किसी को नुकसान पहुंचाने के बाद आई सुध का कोई अर्थ नहीं।
आवेश का हासिल कुछ नहीं
ऐसी सभी घटनाएं मानवीय व्यवहार का सबसे दुर्दांत पक्ष लिए होती हैं। ऐसे आपराधिक मामलों को अंजाम देने से पहले गुस्से के धरातल पर बना कुटिल सोच का खाका इनका सबसे डरावना पहलू है। हालांकि तार्किक सोच से परे बेवजह उपजे इस रोष के बदले स्वयं को भी अपराधबोध के सिवा कुछ नहीं मिलता। बेवजह की इस दुर्भावना के बहाव का परिणाम नकारात्मक ही होता है। साथ ही ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया के रूप में अपराध करने से कानूनी सजा तो मिलनी ही है। लोग आत्म नियंत्रण और संयम की बुनियाद पर क्रोध के इस कहर को थामें। इतनी समझ तो रखें कि जब स्वयं ही गलती कर रहे हैं, तो किसी भी अपने-पराये पर आक्रोश दिखाने-जताने का का क्या अधिकार है? नागरिक पलभर में सदा के लिए जीवन को दिशाहीन कर देने वाले इस बर्ताव से बचें। आवेश भरे ऐसे व्यवहार से कभी कभी सब कुछ खो जाता है जबकि हासिल कुछ नहीं।
परिजन भी चेतें
घर-परिवार में किसी सदस्य का बर्ताव हद से ज्यादा आक्रोशित होने की स्थिति में परिजन भी सजग रहें। बच्चे हों या बड़े -थोड़ा ठहराव बरतने को कहें। न केवल आवेश में कुछ भी कहने या कर बैठने की आदत को बदलने का परिवेश बनाएं बल्कि उग्रता और चिड़चिड़ेपन के खमियाजे भी समझाएं। देखने में आता है कि सार्वजनिक रूप से ऐसा व्यवहार करने वाले अपनों के सामने और ज्यादा आक्रोशित हैं। स्वयं को विशेष समझने का रंग-ढंग अपनों के बीच भी दिखाते हैं। कई परिवारों के सदस्य ही इस बर्ताव को बढ़ावा देते है। जबकि समय रहते रोक-टोक करना आवश्यक है। बच्चों को तो शुरुआत से ही अहंकार और आक्रोश के इस जाल में न फंसने दें। घर के एक सदस्य द्वारा क्रोध में की गई आपराधिक-असभ्य हरकत का नतीजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है।