भाई शीत ऋतु आई, उठने न दे रजाई
शमीम शर्मा
आज हरियाणवी में यह शे’र सुनने को मिला :-
लूटा हमको सौड़ ने गूदड़ में कहां दम था
जाड्डा उड़ै तै लाग्या जित लोगड़ कम था।
श्ाहरी बच्चों को तो पता ही नहीं होगा कि सौड़-गूदड़-लोगड़ किस बला का नाम है। बने-बनाये गद्दे मिलते हैं। रंग-बिरंगे कंबलों से बाजार अटे पड़े हैं। पर रूई पिनवा कर रजाई में भरवाना, फिर तागे डलवाना और फिर उस पर गिलाफ चढ़ा कर ओढ़ने का स्वाद ही अलग हुआ करता। उस गर्माहट का क्या मुकाबला? अब तो बिस्तरों का रूप ही बदल गया है। पहले यह एक धमकी थी कि एक मिनट लगेगा तेरा बोरिया बिस्तरा बांध दूंगा। निकम्मे बच्चों को घरों में यह कहना आम था कि अपना बोरिया बिस्तरा लेकर निकल जा घर से। आजकल कितनी ही लड़कियां ऐसी हैं जो विवाह को सात दिन पुराना भी नहीं होने देती और बोरिया-बिस्तरा उठाकर दोबारा उसी आंगन में डेरा डाल लेती हैं जहां अग्नि के समक्ष फेरे लिये थे। अब वे मेहमान भी नहीं रहे जो कभी बोरिया-बिस्तरा बांध कर डेरा डालने आ जाया करते।
वो भी समय था जब बड़े-बूढ़े, बहन-भाई अर आदमी-लुगाई जाड्डे में रजाई में दुबके पड़े रहते थे। कोयलों की अंगीठी का जमाना था। इस अंगीठी के सामने घंटों एक ही बुक्कल में बच्चे सिमटे-दुबके बैठे रहा करते। कभी-कभार यह अंगीठी जानलेवा भी हो जाया करती। अब अंगीठी की जगह हीटर-ब्लोअर आ गये हैं पर थरथराने वाली सर्दी में रजाई ही एकमात्र सहारा है। वैसे रजाई की गिनती निर्जीव पदार्थों में आती है परन्तु सुबह बिस्तर से उठते समय लगता है जैसे रजाई हाथ पकड़ कर कह रही हो- यार बैठो, लेटो ऐसी भी क्या जल्दी है। अब रजाई में कोई संगी-साथी हो न हो बस मोबाइल होना जरूरी है। अब सारी गर्मी मोबाइल की है। मरते हुए आदमी का सीना भी कुछ न कुछ गर्माहट लिये रहता है पर बिना मोबाइल के आदमी के ठंडा पड़ने का भय होने लगा है। इस ठंडक का उपचार आज की तारीख में बड़े से बड़े डॉक्टर-वैद्य के पास भी नहीं है। एक विरही मनचले का कहना है :-
मत ढूंढ़ो मुझे इस दुनिया की तन्हाई में,
मैं मोबाइल गैल पड्या हूं अपनी रजाई में।
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एक बर की बात है अक नत्थू का नया-नया ब्याह होया था अर वो सवेरै उठते ही अपणी लुगाई रामप्यारी के मुंह पै ठंडा पाणी छिड़क दिया करता। दो-तीन दिन तो रामप्यारी चुपचपाती रजाई मैं दुबकी पड़ी रही पर हारकै एक दिन उसका गुस्सा फूट पड्या- इस ठंड म्हं यो ठंडा पाणी फैंकन का रोज का के मजाक है? नत्थू बोल्या- तेरे बाप नैं कही थी अक म्हारी छोरी फूल की कली है, उस तांई मुरझाण ना देणा।