ब्रिक्स देशों की पहल से बढ़ी अमेरिकी बेचैनी
ऋतुपर्ण दवे
अभी अमेरिका में नए राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प ने शपथ नहीं ली है। लेकिन तेवर इतने घबराए हुए और अलग से हैं कि सारी दुनिया की निगाहों में हैं। वैसे भी अपनी निजी जिन्दगी में ट्रम्प को लेकर किस्से-कहानियां कम नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ट्रम्प से पहले चुनौतियां नहीं हैं। शपथ से पहले ही बड़ी-बड़ी चुनौतियों का अंबार है। एक ओर किंम जोंग के सख्त तेवर तो दूसरी ओर यूक्रेन और रूस जंग। वहीं ताइवान और फिलीपींस में चीन का दखल, तो तेहरान के तीखे स्वर। मिडिल ईस्ट में एक और नयी जंग की संभावना से रूस और अमेरिका के बीच संभावित प्रॉक्सी वॉर की आहट भी क्योंकि यहां पिछले दिनों अमेरिका समर्थित आतंकवादी समूह ने देश के दूसरे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया है।
यह सभी डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के लिए मुश्किलों से ज्यादा कुछ नहीं होगा। इन चुनौतियों के बावजूद ट्रम्प की हालिया चेतावनी भी कुछ बड़ा संकेत दे रही है। उन्होंने भारत, चीन समेत ब्रिक्स देशों को सीधे-सीधे धमकी भी दे दी है। डॉलर का विकल्प तलाशने की कोशिश करने वाले देशों पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की चेतावनी बताती है कि अमेरिका डॉलर के विकल्प को लेकर खासा चिंतित है।
ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि डॉलर से दूर होने की ब्रिक्स देशों की कोशिश में वो मूकदर्शक बने रहें ऐसा नहीं होगा क्योंकि यह दौर अब ख़त्म हो गया है। इतना ही नहीं उन्होंने लिखा है कि हमें इन देशों से प्रतिबद्धता की ज़रूरत है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही ताक़तवर अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए कोई अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे। यह ट्रम्प का डर है। यदि ब्रिक्स देश ऐसा करेंगे तो उन्हें बेहतरीन अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपने उत्पाद बेचने को विदा कहना होगा। निश्चित रूप से डोनॉल्ड ट्रम्प की यह धमकी हल्की नहीं है और न ही इसे उनकी तुनक मिजाजी कहा जा सकता है। यह बहुत ही सोची-समझी रणनीतिक सोच है।
ध्यान देना होगा कि 30 अक्तूबर को यूक्रेन में रूस के युद्ध प्रयासों में मदद करने के आरोप में 19 भारतीय कंपनियों और दो भारतीय नागरिकों सहित करीब 400 कंपनियों और व्यक्तियों पर पहले ही अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है। ऐसा पहली बार नहीं है कि अमेरिका ने भारतीय कंपनियों को निशाना बनाया हो। नवंबर, 2023 में भी एक भारतीय कंपनी रूस की सेना को मदद के आरोप में प्रतिबंधित हुई थी।
ट्रम्प की इस धमकी के मायने गहरे हैं। श्रीलंका का उदाहरण सामने है। वहीं उनका यह ऐलान कि अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता छोड़ना, विकासशील देशों के साथ एक तरह से आर्थिक युद्ध ही होगा। इधर आंकड़े बताते हैं कि विश्व में 62 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय ऋण अमेरिकी डॉलर मे हैं तो वैश्विक लेन-देन भी अमेरिकी डॉलर में हैं जो 88 प्रतिशत है। डोनॉल्ड ट्रम्प की मंशा कहें या एकाधिकार या दादागीरी कुछ भी वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था की जड़ों को किसी भी कीमत पर कमजोर या चुनौती से गुजरते नहीं देखना चाहते।
साल 2006 में ब्राजील, रूस, भारत, चीन को मिलाकर ब्रिक्स समूह बना। साल 2010 में इसमें दक्षिण अफ्रीका शामिल हुआ। सभी देशों के अंग्रेजी के पहले अक्षर को लेकर ब्रिक्स बना। इस समूह के गठन का उद्देश्य ही दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण विकासशील देशों को एकसाथ लाना था। इसके पीछे मंशा साफ थी कि उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के रईस देशों की राजनीतिक और आर्थिक ताक़त को चुनौती दी जा सके। इस समूह की बढ़ती ताकत निश्चित रूप से दुनिया के दारोगा को चुभ रही होगी। इसी साल की शुरुआत में मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ आने से दुनिया को ब्रिक्स समूह की ताकत का अहसास होने लगा था।
कहां इस समूह का नाम ब्रिक्स प्लस करने की चर्चाएं जोरों पर थीं कि ट्रम्प की धमकी सामने आ गई। मौजूदा ब्रिक्स समूह की संयुक्त जनसंख्या फिलहाल 3.5 अरब है जो दुनिया की कुल जनसंख्या का 45 प्रतिशत है। यदि संयुक्त अर्थव्यवस्था की बात करें तो 28.5 लाख करोड़ डॉलर की हैसियत है जो दुनिया की अर्थव्यवस्था का 28 प्रतिशत है।
ट्रंप की नाराजगी की वजह समझ आती है क्योंकि इसी साल अक्तूबर में रूस के कजान में हुए ब्रिक्स सम्मेलन व्यापार के लिए न केवल डॉलर की वैकल्पिक करेंसी की बात हुई बल्कि एक प्रतीकात्मक ब्रिक्स बैंक नोट का अनावरण भी हुआ। इस बैंक नोट पर ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के झंडे भी हैं। निश्चित रूप से इसे ही सीधे-सीधे अमेरिकी डॉलर के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा होगा। ऐसे में ट्रम्प को नए कार्यकाल में इससे अकल्पनीय आर्थिक चुनौतियां भी झलकने लगी होंगी जिससे उनकी चिंता और बढ़ी होगी।
फिलहाल डॉलर ही वो मुद्रा है जो विश्व के लगभग 58 प्रतिशत विदेशी मुद्रा भंडार की प्रतिनिधि है तथा तेल जैसी प्रमुख वस्तुओं के व्यापार का अहम हिस्सा है। ट्रम्प को लगता होगा कि इससे अमेरिका का आर्थिक तिलिस्म टूट जाएगा।