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बेटियों की कामयाबी को संबल मजबूत दिलो-दिमाग से भी

04:05 AM Jan 21, 2025 IST
बेटियों की कामयाबी को संबल मजबूत दिलो दिमाग से भी
बैडमिंटन मैच के दौरान एक खिलाड़ी
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बेटियां हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। सामाजिक-पारिवारिक दायित्वों के अलावा शिक्षा, खेलों से लेकर कैरियर के फ्रंट तक। सफलता का कारण जहां समाज के बदले नजरिया है वहीं शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक तौर पर पुरुषों से मजबूत होना भी है। दिक्कतों से जूझने, नया सीखने,मल्टीटास्किंग, सहन करने और नये हालात में एडजस्टमेंट की शक्ति और जिजीविषा उन्हें कामयाब बनाती हैं।

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डॉ. मोनिका शर्मा
हमारे सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में बेटियों की जिजीविषा और प्रतिबद्धता के उदाहरण दिये जाते हैं। पढ़ाई-लिखाई में बेहतर प्रदर्शन करने की बात हो या परिस्थितियों से जूझने और जिम्मेदारियां निभाने की। बेटियां हर मामले में चकित करती हैं, हर साल परीक्षाओं में टॉप करती बेटियां भी हैरान करती हैं और देश-विदेश में खुद को साबित कर नाम कमाती लाडलियां भी। असल में हर मोर्चे पर खुद को साबित करती बेटियों के पीछे सोशल बदलाव और पारिवारिक सोच का नयापन तो है ही, बहुत से साइंटिफिक कारण भी हैं।
मन की मजबूती
जिन बेटियों की खिलखिलाहट हर आंगन की रौनक होती है। जिनके बिना किसी भी परिवार में रीति-रिवाज, तीज-त्योहार का इन्द्रधनुष नहीं सजता। जो बेटियां मुश्किल से मुश्किल क्षेत्र में भी अपनी मौजूदगी दर्ज़ करवा रही हैं। उन्हें आमतौर पर शरीर ही नहीं, मन से भी कमजोर मान लिया जाता है। जबकि बेटियों का दिलो-दिमाग के धरातल पर सधा और सबल होना ही उनकी सफलता की बुनियाद पक्की करता है। हर परिस्थिति से जूझने के लिए मानसिक बल जुटा लेना उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। हर क्षेत्र ने सफलता का परचम लहराती बेटियों को लेकर विज्ञान भी मानता है कि उनमें हर हाल में सामंजस्य बैठाने की सोच होती है। मेंटली ही नहीं, बायोलॉजिकली भी परिवेश के मुताबिक ढलने का भाव होता है। साथ ही सामाजिक दिक्कतों को बर्दाश्त करने की शक्ति भी लड़कियों में अधिक होती है। असल में, आज के कठिन दौर में हालातों से जूझने के लिए यह लचीला रुख बेहद आवश्यक है। ऐसा न होने पर भावनात्मक टूटन घेर लेती है। मन-जीवन उलझनों से घिर जाता है। मंजिलों तक पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है। यूं भी हमारे यहां तो अपनों ही नहीं, परायों की भी मान-मनुहार का जिम्मा उठाने वाली बेटियों को हर फ्रंट पर जद्दोजहद भरे हालात ही मिलते हैं। हमारे सोशल सिस्टम में बहुत सी बेटियों के लिए जिंदगी का संघर्ष कोख से ही शुरू हो जाता है। बावजूद इसके हर परिस्थिति से जूझते हुए आगे बढ़ने का भाव उनके सशक्त मन से ही मिलता है। मन की यही मजबूती बेटियों को सशक्त व्यक्तित्व और सुलझे विचारों की धनी भी बनाती है।
सर्वाइवल स्ट्रेंथ
विज्ञान तो यहां तक कहता है कि प्राकृतिक आपदाओं से लेकर सोशल समस्याओं और घरेलू परेशानियों तक, स्त्रियों की सर्वाइवल स्ट्रेंथ पुरुषों से अधिक होती है। ग्लोबल जेरोंटोलॉजी रिसर्च समूह के मुताबिक, दुनिया में 43 लोगों ने 110 साल की उम्र पार की है। इनमें 42 महिलाएं थीं। ज्ञात हो कि जेरोंटोलॉजी एक मल्टीडिस्पलेनेरी फील्ड है, जिसमें प्रमुख रूप से बुढ़ापे से जुड़े शारीरिक, मानसिक और सामाजिक पहलुओं पर रिसर्च की जाती है। वृद्ध व्यक्तियों की देखभाल और उपचार से जुड़े इस क्षेत्र के अध्ययन भी बताते हैं कि स्त्रियां जीवन से जूझने की अधिक ताकत रखती हैं। अध्ययन बताते हैं कि बीमारियों से जूझने के लेकर बेहतर इम्यूनिटी तक, स्त्रियां पुरुषों से आगे ही हैं। यही कारण है कि महिलाओं में डिप्रेशन की संभावना पुरुषों की तुलना में दोगुनी होने के बावजूद पुरुषों की तुलना में सुसाइड करने की संभावना एक चौथाई ही होती है। इमोशन जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, महिलाएं अपने दुख-दर्द ज्यादा बेहतर तरीके से संभाल पाती हैं। आज की बेटियां आत्मविश्वासी हैं। खूब मेहनती हैं। अपने सपनों को पूरा करने के प्रति जी-जान से समर्पित रहते हुए मानवीय संवेदनाओं से भरा मन भी रखती हैं।
सहनशीलता और सीखने की शक्ति
कामकाज के साथ घर-परिवार संभालने की भागदौड़ करती बेटियां दोनों मोर्चों पर संतुलन बनाए रखती हैं। लड़कियां शिकायतों के बजाय सहनशीलता से एक साथ अपने दायित्वों को निभाने में जुटी दिखती हैं। दरअसल, उनकी इस ठहराव भरी भूमिका के पीछे फ़ीमेल हार्मोन्स भी हैं। करीब 4000 ट्रॉमा मरीजों के अध्ययन में यह सामने आ चुका है कि रजोनिवृत्ति से पहले यानि कि हार्मोनल रूप से सक्रिय महिलाओं में पुरुषों की तुलना में सदमे और आघात सहने की क्षमता ज्यादा होती हैं। फ़ीमेल हार्मोन्स के रूप में कुदरत से मिली यह शक्ति ही बेटियों को हर हाल में भीतर से मजबूत रखती है। आईक्यू लेवल में भी बेटियां आगे हैं। असल में फ़ीमेल्स के दिमाग में कॉर्टिकल मोटाई ज़्यादा होती है जो उनकी इंटेलीजेंस और परफॉर्मेंस बेहतर करता है। लड़कियों का मस्तिष्क करीब 11 साल की उम्र में अपने सबसे बड़े आकार तक पहुंच जाता है। वहीं लड़कों का दिमाग करीब 14 साल की उम्र में अपने सबसे बड़े आकार तक पहुंचता है। शोधकर्ताओं के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स और लिम्बिक सिस्टम में ब्लड फ्लो की अधिकता से फ्लूइड की मात्रा भी ज्यादा होती है। नतीजतन, उनका दिमाग ज्यादा सक्रिय होता है। इसी के चलते लड़कियां ना केवल किसी भी स्किल को जल्दी सीखती हैं बल्कि काम को एकाग्रता के साथ भी करती हैं। इसी के चलते उनमें इंट्यूशन और सेल्फ कंट्रोल भी अधिक है। स्वयं को आंकने और साधने की सोच के चलते लड़कियां बुरी लत के जाल में कम ही फंसती हैं। समाज और परिवार से जुड़ाव की सोच रखती हैं। स्पष्ट है कि सोशल हों या साइंटिफिक, ऐसी सभी बातें बेटियों को सफल बनाती हैं।

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