प्राकृतिक आपदा के बावजूद बची है समृद्ध विरासत
लखपत, गुजरात के कच्छ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जिसे राव लाखा के नाम पर रखा गया था। यह शहर कभी एक महत्वपूर्ण तटीय व्यापारिक केंद्र था, लेकिन 1819 में आए भूकंप के बाद इसकी समृद्धि में भारी गिरावट आई। आज लखपत किला और कुछ अन्य ऐतिहासिक स्थल इसके गौरवपूर्ण अतीत की गवाही देते हैं, जबकि यह शहर अब एक वीरान और भूतिया स्थल के रूप में जाना जाता है।
राजेंद्र कुमार शर्मा
लखपत भारतीय राज्य गुजरात के कच्छ जिले में कोरी खाड़ी के मुहाने पर स्थित एक शहर है। जिसका नामकरण राव लाखा के नाम पर किया गया था। राव लाखा ने तेरहवीं शताब्दी में सिंध में शासन किया था।
लखपत शहर लगभग 7 किमी लंबी किले की दीवारों से घिरा हुआ है, जो अब कहीं कहीं से जीर्णशीर्ण हो चली है। ऐतिहासिक लेख बताते हैं कि लखपत गुजरात और सिंध के बीच पड़ने वाला एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक और तटीय व्यापारिक केंद्र रहा है। इस समय सिंधु नदी का पानी लखपत और आगे देसलपार गुंथली तक बहता था। लखपत ने समृद्धि का एक बहुत छोटा काल जिया है। लखपत के राजस्व का मुख्य स्रोत धान की खेती और समुद्री व्यापार था।
लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत में फ़तेह मुहम्मद ने इसकी दीवार का विस्तार और पुनर्निर्माण किया था। कुछ समय के लिए यह सिंध में व्यापार का केंद्र रहा था।
माना जाता है कि 1818 में, लखपत में 15,000 लोग थे और अच्छा वार्षिक राजस्व प्राप्त होता था। 1819 के भूकंप के बाद, एक प्राकृतिक बांध बनने के कारण सिंधु नदी ने अपना प्रवाह उतर की ओर अरब सागर की तरफ कर लिया। इस बांध को अल्लाहबंद के रूप में जाना जाता था। इस प्रकार लखपत ने एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में अपना महत्व खो दिया। माना जाता हैं कि 1820 तक यहां की जनसंख्या घटकर 6000 रह गई। उनमें भी ज्यादातर अन्य देशों के व्यापारिक सट्टेबाज और सिंध प्रांत से पलायन करके आए हिंदू परिवार शामिल थे। उस समय तक दीवारें अच्छी हालत में रही होंगी, लेकिन घर बर्बाद हो चुके थे। बहुत कम क्षेत्र में आबादी रहती थी।
स्थानीय जानकारों और ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं 1851 तक, यहां का लगभग सारा व्यापार ठप्प हो चुका था, चारों ओर गरीबी से त्रस्त लोग थे, आधा शहर बिना आबादी के पूरी तरह से वीरान और भूतहा नज़र आने लगा था। आंकड़ों की माने तो 1880 तक पहुंचते-पहुंचते, यहां की जनसंख्या घटकर मात्र 2500 रह गई।
आज का लखपत
आज लखपत एक एक विरल आबादी वाला भूतिया शहर से अधिक कुछ नहीं है। लखपत शहर ने अपने जीवन काल में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। आज की स्थिति देख कर नहीं लगता कि यह कभी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र भी रहा होगा। किले आज भी इसकी भव्यता की गवाही देते हैं। परंतु इमारतें खंडहर और भूतहा बन चुकी है। 2001 की जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार यहां 87 घरों में जनसंख्या मात्र 463 थी जो 10 वर्षों के अंतराल के बाद 2011 में कुछ बढ़कर 108 घरों में 566 हो गई।
किले की बड़ी दीवारें, आज भी एक छोटे, लेकिन गौरवशाली अतीत की गवाही देती हैं। किले की एकमात्र बची हुई प्राचीर पर चढ़ सकते हैं और शांत समुद्र को देख सकते हैं। किले की प्राचीरें अभी भी अरब महासागर को इससे दूर रखती हैं। ऐसा कहा जाता है कि किले का नाम राव लाखा के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सिंध पर शासन किया था। 1801 में फतेह मुहम्मद द्वारा किला का पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया था। किला एक एक अनियमित बहुभुज है, जिसे गोल टावर संरक्षण प्रदान करते हैं। किले का निर्माण कठोर भूरे पत्थर से हुआ है। 7 किमी लंबी दीवारें काफी ऊंची हैं, लेकिन इसकी मोटाई कम है। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी अपनी दूसरी और चौथी धार्मिक यात्रा के दौरान यहाँ रुके थे। गुरुद्वारा में यात्रियों को अनुभूति होती है। यात्री इस प्राचीन सिख धार्मिक स्थल पर संरक्षित लकड़ी के जूते, पालकी, पांडुलिपियां और उदासी संप्रदाय के प्रमुखों के चिह्नों जैसे अवशेषों को देखने के लिए आते हैं।
पीर गौस मुहम्मद, एक सूफी संत और लखपत के सैयद हुए हैं। जिनके रीति-रिवाज मुस्लिम और हिंदू से मिलते-जुलते थे। मान्यता है कि उनके पास अलौकिक शक्ति थी। 1855 में मरते समय, उनके भाई बावा मिया यासा साहेब ने, गोश मुहम्मद के अनुयायियों के सहयोग से एक मकबरा बनाना शुरू किया था, जो पूरा नहीं हो सका। शंक्वाकार गुंबद पर बना, अष्टकोणीय मकबरा, काले पत्थर से निर्मित है, जिसके चारों तरफ मेहराबदार और समृद्ध नक्काशी वाले दरवाजे हैं। दीवारों को फूलों और पत्तियों के पैटर्न से सजाया गया है। अंदर, फर्श सफेद और काले संगमरमर से बना है और कब्र सफेद संगमरमर की छतरी से ढकी हुई है। दीवारों पर कुरान की कुछ आयतें लिखी गई हैं।
बीएसएफ पोस्ट
किले के समुद्री किनारे की सुरक्षा भारत के सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सैनिकों द्वारा की जाती है क्योंकि यह नमक दलदली भूमि में भारत और पाकिस्तान के बीच चिन्हित अंतर्राष्ट्रीय सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। किले की किलेबंदी और पास की सीमा चौकी पर बीएसएफ गार्ड हमेशा तैनात रहते हैं। हिंदी फिल्म ‘रिफ्यूजी’ में लखपत किले को पड़ोसी देश पाकिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पार स्थित एक काल्पनिक शहर के रूप में दिखाया गया था।
अन्य आकर्षण
सैय्यद पीर शाह दरगाह, पुराने शहर में नानी माई दरगाह, हाटकेश्वर मंदिर सहित अन्य मंदिर पर्यटकों का अतीत से साक्षात्कार करवाते प्रतीत होते हैं। कैसे प्रकृति आपदाएं, एक समृद्ध, वैभवशाली शहर को वीराना और भूतहा बना सकती हैं, इसका जीता जागता उदाहरण है लखपत शहर। इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक शानदार ऐतिहासिक, पर्यटन स्थल है लखपत।Advertisement