पुरुषार्थ से ताजगी
04:00 AM Jan 02, 2025 IST
एक व्यक्ति अपने बचपन के साथी के पुत्र रामजी के यहां आया। रामजी ने अपने पिता के मित्र का स्वागत-सत्कार किया और उन्हें भोजन परोसा। उन्होंने जैसे ही भोजन का एक कौर मुंह में रखा तो वे बोले, ‘बेटा! यह भोजन तो बासी है।’ रामजी बोला, ‘यह भोजन तो अभी बनाकर आपको परोसा गया, फिर आप इसे बासी कैसे कह रहे हैं?’ वृद्ध बोले, ‘बेटा! मेरे मित्र ने कितने कष्ट से पैसा कमाया। उन्हें गुजरे एक वर्ष ही बीता है, इसी बीच तुमने आधी संपत्ति उड़ा दी, अब आगे क्या करोगे? तुम अपने परिश्रम से कमाये धन से भोजन बनवाते तो मैं उसे ताजा कहता।’ रामजी की समझ में उनकी बात आ गई। उसने कहा, ‘मैं शपथपूर्वक कहता हूं कि अब मैं श्रम करके धन कमाऊंगा और उसी से अपना व परिवार का पालन-पोषण करूंगा।’
Advertisement
प्रस्तुति : नीता देवी
Advertisement
Advertisement