पीड़ा का सौंदर्य
जब लियोनार्डो दा विंची युवा थे, तब वे फ्लोरेंस की गलियों में घूमते हुए अक्सर बीमार और विकलांग लोगों के चेहरों का अध्ययन करते। लोग उन्हें देखकर आश्चर्य करते कि इतना प्रतिभाशाली व्यक्ति ऐसे दृश्यों को क्यों देखता है। एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति ने पूछा, ‘हे युवक, तुम इन कुरूप चेहरों को क्यों देखते हो? क्या तुम्हें सुंदर चीजें नहीं दिखतीं?’ लियोनार्डो ने विनम्रता से उत्तर दिया, ‘मैं मानव भावनाओं को समझना चाहता हूं। प्रत्येक चेहरा एक कहानी कहता है। पीड़ा में भी सौंदर्य छिपा होता है। जब तक मैं दुख को नहीं समझूंगा, सुख को कैसे चित्रित कर सकूंगा?’ वृद्ध व्यक्ति ने कहा, ‘लेकिन यह तुम्हारी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।’ लियोनार्डो मुस्कुराए, ‘प्रतिष्ठा क्षणिक है, लेकिन ज्ञान शाश्वत है। मैं जीवन के हर पहलू से सीखना चाहता हूं।’ यह संवाद सुनकर कई युवा कलाकार भी उनके साथ जुड़ गए। धीरे-धीरे लियोनार्डो ने मानवीय भावनाओं की इतनी गहरी समझ विकसित की कि उनके चित्र जीवंत लगने लगे। मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान इसी समझ का परिणाम थी।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार