पाठकों को आमंत्रण
जन संसद की राय है कि नेताओं को मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। अभद्र, भड़काऊ बयान देने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि लोकतंत्र और समाज की गरिमा बनी रहे।
मर्यादा और जवाबदेही
पहलगाम में शहीद हुए नरवाल की पत्नी हिमांशी हों या वरिष्ठ अधिकारी विक्रम मिसरी—एक खास विचारधारा से जुड़ी ट्रोल गैंग ने उनकी निजी ज़िंदगी पर अभद्र टिप्पणियां कीं। कर्नल सोफिया कुरैशी के प्रति भी एक मंत्री द्वारा की गई टिप्पणी मर्यादा का उल्लंघन थी। मामला अदालत में है, फिर भी वह मंत्री पद पर बने हुए हैं। ऐसे लोगों पर आईटी एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को न केवल पद से हटाया जाए, बल्कि पेंशन से भी वंचित किया जाए। सेना को जाति-धर्म से जोड़ना देश की एकता के लिए खतरा है।
मुनीश कुमार, रेवाड़ी
बयानबाजी बनाम बलिदान
हमारे आदर्शों के लिए इस तरह के बयान नए नहीं हैं। धर्म और जाति के नाम पर देश को बांटकर सैनिकों का अपमान करना कुछ लोगों की आदत बन गई है। ये नहीं समझते कि जिस आज़ादी और निर्भयता से वे बयानबाज़ी कर रहे हैं, वह उन्हीं सैनिकों की देन है, जो दुश्मन की गोलियों के सामने सीना तानकर खड़े होते हैं। ऐसे ओछी मानसिकता वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि दूसरों को भी सबक मिले। सैनिक अपनी शहादत से जवाब देते हैं, जबकि ये लोग शब्दों की आड़ में छिपते हैं। ऐसे लोगों को एक बार सीमा पर ज़रूर भेजा जाना चाहिए, जहां हर क्षण मृत्यु का साया मंडराता है।
संदीप भारद्वाज, झज्जर
सत्ता का नशा
राजनीति से जुड़े कुछ नेताओं को अपने पद और सत्ता का ऐसा नशा हो जाता है कि वे सार्वजनिक रूप से किसी के प्रति भी कटाक्ष, अभद्र टिप्पणी और अनुचित बयानबाज़ी करने से नहीं चूकते। सत्ता का अहंकार उनके व्यवहार में साफ झलकता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लोकतंत्र में मर्यादा और अनुशासन हर जनप्रतिनिधि के लिए अनिवार्य होना चाहिए। इसके लिए आचार संहिता को सख्ती से लागू करना और उल्लंघन पर दंड का स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए। तभी फालतू बयानबाज़ी और असंयमित भाषा पर अंकुश लग सकेगा।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
नियंत्रण जरूरी
हाल ही में मध्य प्रदेश के एक मंत्री द्वारा कर्नल सोफिया के संदर्भ में दिया गया शर्मनाक बयान राजनीतिक दलों की मूक स्वीकृति के बिना संभव नहीं लगता, जिसका उद्देश्य वोटों का ध्रुवीकरण है। संसद में भी इस तरह की टिप्पणियां हो चुकी हैं, जिससे न केवल सामाजिक सौहार्द बल्कि देश की छवि को भी नुकसान पहुंचता है। संबंधित मंत्री को सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद न तो पार्टी ने दंडित किया और न ही उन्होंने इस्तीफा दिया। सर्वदलीय बैठक बुलाकर नेताओं के आचरण को मर्यादित करने हेतु ठोस निर्णय लिया जाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
मर्यादित भाषा आवश्यक
देश के सामाजिक ताने-बाने की मजबूती प्रत्येक नागरिक के मर्यादित आचरण पर निर्भर करती है। राजनीति में नेताओं की मधुर वाणी हर समस्या को सहज बना सकती है। यदि उनकी भाषा से अपने ही लोगों को शर्मिंदगी सहनी पड़े, तो इससे कोई लाभ नहीं। अनर्गल बयानबाजी करने वाले जिम्मेदार नेताओं को भविष्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि वे अपने नेताओं को भाषण और व्यवहार की प्रशिक्षण दें तथा असहज बयान देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें, तभी इस समस्या को रोका जा सकेगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद