पाठकों के पत्र
सुरक्षा का सवाल
गुजरात के बडोदरा जिले में 40 साल पुराने पुल के ढहने से 11 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले पुणे और फरीदाबाद में भी ऐसे हादसे हो चुके हैं। पुराने पुलों की मरम्मत पर ध्यान नहीं दिया जाता, और उनकी कोई एक्सपायरी डेट भी तय नहीं होती। दिल्ली में कई फ्लाईओवर 40-50 साल पुराने हैं। ब्रिटिश काल में पुलों की निर्माण तिथि के साथ एक्सपायरी डेट भी तय होती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था खत्म हो चुकी है।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली
जनजीवन से खिलवाड़
दस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘असुरक्षित बुनियादी ढांचा’ में बडोदरा, गुजरात में पुराने पुल के ढहने से नौ लोगों की मौत का जिक्र है। रखरखाव में हुई लापरवाही और जवाबदेही की कमी ने बुनियादी ढांचे की पोल खोल दी है। कुदरत के बिगड़े मिजाज से सबक न लेकर हम जनजीवन से खिलवाड़ करते हैं। ऐसी घटनाओं से बचाव हेतु मजबूत और जवाबदेह निर्माण तंत्र जरूरी है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
अंधविश्वास की घातक जड़ें
भारत में विज्ञान और तकनीक में तरक्की के बावजूद अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं। हाल ही में बिहार के पूर्णिया जिले में एक परिवार की हत्या तंत्र-मंत्र और डायन बिसाही के अंधविश्वास के चलते हुई। ऐसे घटनाक्रमों से साबित होता है कि समाज में इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं को मिलकर प्रयास करना जरूरी है।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली
बिगड़ती कानून व्यवस्था
पंजाब में कानून-व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है। बदमाश और गैंगस्टर दिन-दहाड़े सार्वजनिक स्थानों पर हत्या कर रहे हैं और न उन्हें पुलिस का डर है, न ही गिरफ्तारी का। लोग कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे अपराधियों से निपटने के लिए सरकार को ठोस और प्रभावी रणनीति अपनानी चाहिए, ताकि आम जनता को सुरक्षा का अहसास हो सके।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली