पाठकों के पत्र
04:00 AM Jul 11, 2025 IST
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जवाबदेही तय हो
ढहते पुलों को लेकर दैनिक ट्रिब्यून के 10 जुलाई के अंक में संपादकीय ‘असुरक्षित बुनियादी ढांचा’ में उठाए गए मुद्दे तर्कसंगत हैं। देश में पुलों के ढहने की घटनाएं चिंता का विषय हैं। हर बार जांच के नाम पर खानापूर्ति होती है और किसी छोटे अधिकारी पर कार्रवाई कर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। करोड़ों की लागत से बने पुल की जवाबदेही तय होनी चाहिए। जरूरत है ऐसे कानून की, जिसमें पुल की मियाद और जिम्मेदार अधिकारियों के नाम सार्वजनिक हों। समयपूर्व ढहने पर नुकसान की भरपाई उनकी पेंशन या वेतन से हो और कानूनी कार्रवाई भी हो। तभी सुधार संभव है। जनता की जान की कीमत पर लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं।
धर्मवीर अरोड़ा, फरीदाबाद
सुविधा और दुविधा
पंजाब में सस्ता अनाज योजना में 31 लाख लाभार्थी अपात्र पाए गए, जिससे भ्रष्टाचार और अनियमितता का स्पष्ट संकेत मिलता है। पश्चिम बंगाल में भी कल्याणकारी योजनाओं का गलत लाभ उठाया गया। सरकार को केवाईसी और आधार को अनिवार्य रूप से जोड़कर वास्तविक जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए कड़ी निगरानी और कार्रवाई करनी चाहिए।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, म.प्र.
किसानों की विवशता
‘किसानों को विवशता की हद से मुक्त कराएं’ विश्वनाथ सचदेव का लेख 9 जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में किसानों की अत्यंत कठिन स्थिति को उजागर करता है। लेख में 70 वर्षीय किसान अंबा दास की दुर्दशा का वर्णन है, जो धनाभाव के कारण हल चलाने के लिए मजबूर हैं। सरकार की घोषणाएं और कृषि क्षेत्र में समृद्धि के बावजूद किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया। कॉर्पोरेट का कर्ज माफ होता है, लेकिन किसानों की स्थिति जस की तस बनी रहती है।
शामलाल कौशल, रोहतक
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