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पाठकों के पत्र

04:00 AM Jul 05, 2025 IST
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हिंदी का अतार्किक विरोध
दो जुलाई के अंक में विश्वनाथ सचदेव के आलेख ‘हिंदी के विरोध की संकीर्ण राजनीति’ में उठाए गए मुद्दे विचारणीय हैं। पुणे और मुंबई में जब लोग हिंदी में बात करते हैं, तो लोग इसे समझते हैं और जवाब देते हैं। फिर सवाल यह है कि महाराष्ट्र में हिंदी का विरोध कौन और क्यों कर रहा है? हिंदी और मराठी भाषाएं काफी मिलती-जुलती हैं और दोनों की लिपि भी देवनागरी है। सिर्फ अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले का मुद्दा उछाला है और विपक्ष भी बेकार के इस मुद्दे पर अपनी राजनीति चमकाने में लगा है।
धर्मवीर अरोड़ा, फरीदाबाद

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संकीर्ण सोच
कोलकाता में छात्रा से सामूहिक दुराचार निंदनीय है। टीएमसी नेताओं की आपत्तिजनक टिप्पणियां शर्मनाक और संवेदनहीन हैं। महुआ मोइत्रा की असहमति महत्वपूर्ण है। केवल बयानबाजी नहीं, सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। यह समस्या देशभर में पितृसत्तात्मक सोच दर्शाती है। पीड़िता को मानसिक, सामाजिक सुरक्षा और न्याय मिलना जरूरी है। सरकारों को अपराध रोकने, महिलाओं को सशक्त बनाने और जागरूकता फैलाने का संकल्प लेना चाहिए। समाज की चुप्पी भी चिंता का विषय है, बदलाव के लिए सामूहिक पहल ज़रूरी है
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.

क्षतिग्रस्त सड़क
हिमाचल में सड़कों की हालत आज भी बेहद खराब है। श्रीरेणुका जी से ददाहू होते हुए धौलाकुआं तक लगभग 35 किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग जर्जर स्थिति में है। इस रास्ते से देहरादून जाते समय सामान्य से दोगुना समय लग जाता है। यह सड़क दो वर्षों से मरम्मत की प्रतीक्षा में है। प्रशासन यदि ध्यान दे तो इस मार्ग पर यात्रा आसान, सुरक्षित और सुविधाजनक हो सकती है। स्थानीय लोग बार-बार शिकायतें दर्ज करा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अक्षित आदित्य गुप्ता, रादौर

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