मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

पाठकों के पत्र

04:00 AM Jul 03, 2025 IST
Hand Holding Pen

समाज में असहिष्णुता
एक जुलाई के संपादकीय ‘बात बेबात घात’ में आज के सामाजिक वातावरण पर गंभीर और चिंतनशील टिप्पणी की गई है। यह वास्तव में चिंता का विषय है कि हमारे समाज में तात्कालिक आवेग, असहिष्णुता और अहंकार के कारण छोटे-छोटे विवाद भी प्राणघातक घटनाओं में बदल जाते हैं। इस समस्या का समाधान आपसी संवाद, सहिष्णुता और संवेदना जैसे मानवीय मूल्यों में निहित है।
डॉ. मधुसूदन शर्मा, हरिद्वार

Advertisement

कसीदाकारी की जीवंतता
छब्बीस जून को दैनिक ट्रिब्यून में हमीरुद्दीन मिद्या द्वारा लिखित बांग्ला कहानी ‘कसीदाकारी’ अत्यंत रोचक, दिल को छूने वाली और सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखने वाली लगी। लाख प्रतिबंधों के बावजूद कसीदाकारी से निर्मित छायाओं का सजीव हो उठना और यह कहना कि हमारा वजूद कभी मर नहीं सकता, हम हैं और सदैव रहेंगे, प्रेरणादायक है।
सुदर्शन, पटियाला

जानलेवा लापरवाही
तेलंगाना की एक दवा फैक्टरी में हुआ विस्फोट बहुत ही दुखदाई है। विस्फोट जैसे हादसे होने पर सरकार पीड़ितों और मृतकों को मुआवजा तो सुनिश्चित कर देती है पर अग्निशमन प्रबंधों और आपातकालीन चेतावनी के प्रबंधों को सुनिश्चित नहीं करती। अगर सुरक्षा के पुख़्ता इंतजाम किए जाएं और नियमों की पालना की जाए तो ऐसे हादसों और होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली

Advertisement

कर्ज में किसान
अधिकांश किसान आज बैंकों और आढ़तियों के कर्ज के जाल में फंसे हैं। इसके पीछे घटती जोत, बढ़ते खेती खर्च, आय से अधिक सामाजिक खर्च और दिखावे की प्रवृत्ति जिम्मेदार हैं। बेटियों की शादी या सुविधाओं के लिए लिया गया कर्ज धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। घाटे की खेती और पट्टे पर जमीन लेना भी नुकसानदेह है। सरकार भले ही योजनाएं चला रही है, लेकिन किसानों की स्थिति पर गंभीर शोध की आवश्यकता है।
राहुल शर्मा, रसीना, कैथल

Advertisement