पाठकों के पत्र
समरसता का पर्व
चौदह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल ने अपने लेख ‘भारतीय समरसता की सतरंगी संस्कृति का उत्सव’ में भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों, उसकी विविधता और समरसता को बहुत सुंदर रूप में प्रस्तुत किया है। होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है। यह पर्व जाति, धर्म और वर्ग के भेद मिटाकर समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा देता है। लेख में जिस तरह से सांप्रदायिक सौहार्द, पारिवारिक संबंधों की मजबूती और प्रकृति के रंगों के माध्यम से जीवन में उल्लास भरने की परंपरा को दर्शाया गया है, वह अत्यंत सराहनीय है। होली का त्योहार सद्भाव से जीने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को सशक्त बनाता है।
डॉ. मधुसूदन शर्मा, रुड़की
कड़ी कार्रवाई हो
सत्रह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘शर्मसार हैं हम’ में विदेशी महिला पर्यटकों के साथ यौन शोषण और लूट की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई है, जिनसे भारत की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। निश्चित तौर पर यह सब नैतिक मूल्यों के क्षरण, सोशल मीडिया द्वारा अश्लील सामग्री परोसे जाने तथा नैतिक शिक्षा की कमी के कारण हुआ है। उपर्युक्त घटनाओं को देखते हुए संभव है कि कुछ सरकारें अपने नागरिकों को कोई नकारात्मक एडवाइजरी भी जारी करें। कर्नाटक के हंपी तथा दिल्ली की घटनाएं निंदनीय तथा शर्मिंदा करने वाली हैं। सरकार को अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सवालिया निशान
राहुल गांधी ने गुजरात दौरे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर निष्ठा को लेकर सवाल उठाए, जो पार्टी की नकारात्मकता को दर्शाता है। कांग्रेस की गुटबाजी, नेताओं की जी-हुज़ूरी और विश्वास की कमी से पार्टी कमजोर हो रही है। राहुल गांधी को कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की बजाय, उन्हें शक की नजरों से देखना पार्टी के लिए हानिकारक है। पार्टी को जनता और कार्यकर्ताओं पर विश्वास रखते हुए खुले दिल से काम करना चाहिए, नहीं तो कांग्रेस का भविष्य संकट में रहेगा।
हरिहर सिंह चौहान, इंदौर, म.प्र.