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04:00 AM Apr 14, 2025 IST
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जन संसद की राय है कि 21वीं सदी में भी रंग के आधार पर किसी व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस दिशा में जागरूकता से सोच में बदलाव लाने की कोशिश की जाए।

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गुणों से मूल्यांकन
भारत में आज भी रंगभेद और जातिगत भेदभाव समाज को कलंकित कर रहे हैं। विवाह जैसे अवसरों पर रूप-रंग को प्राथमिकता देना चिंता का विषय है। लोग सुंदरता के पीछे हजारों रुपये खर्च करते हैं, जबकि नैतिकता, प्रेम, मृदु व्यवहार और आत्मसंयम जैसे गुणों की अनदेखी होती है। केरल की एक मुख्य सचिव पर रंग को लेकर की गई टिप्पणियां 21वीं सदी में भी समाज की मानसिक विकृति को दर्शाती हैं। रंग के बजाय गुणों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। व्यक्ति का मूल्यांकन उसके रंग से नहीं, गुणों से होना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक

चरित्र हो कसौटी
समाज आज भी बाहरी सुंदरता को महत्व देता है, जबकि चारित्रिक गुण, नैतिकता और आंतरिक मूल्य उपेक्षित रह जाते हैं। विवाह जैसे पवित्र संबंधों में भी रूप-रंग को तरजीह दी जाती है। केरल की मुख्य सचिव पर की गई टिप्पणियां रंगभेद की शर्मनाक मिसाल हैं। विवाह से पहले सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च बढ़ रहा है, लेकिन आंतरिक गुणों की अनदेखी हो रही है। सच्चा मूल्यांकन व्यक्तित्व, व्यवहार और सोच से होना चाहिए। रंगभेद की मानसिकता त्याग कर हमें व्यापक सोच अपनानी चाहिए, जिससे एक समृद्ध, संवेदनशील और समतामूलक समाज का निर्माण हो सके।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

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सोच बदलें
भारत सहित पूरे विश्व में रंगभेद एक बड़ी सामाजिक समस्या है, जो लोगों के आत्मसम्मान को आघात पहुंचाती है। कई बार इससे पीड़ित व्यक्ति मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। समाज की इस संकीर्ण सोच को बदलने के लिए जागरूकता आवश्यक है। इसमें सरकार की भूमिका अहम हो सकती है क्योंकि उसके पास संसाधन और शक्ति दोनों हैं। सरकार को लोगों की मानसिकता बदलने हेतु शिक्षा, मीडिया और अभियान के माध्यम से रंगभेद के खिलाफ सकारात्मक सोच का प्रसार करना चाहिए।
रवि बुम्बक, कुरुक्षेत्र

मानवता ही सच्चा धर्म
21वीं सदी में जब विज्ञान अंतरिक्ष में जीवन बसाने की सोच रहा है, तब रंगभेद और नस्लभेद जैसी संकीर्ण मानसिकता चिंताजनक है। मानव जीवन ईश्वर का दुर्लभ उपहार है, जिसमें रंग, जाति या धर्म का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। ऐसे भेदभावों को भुलाकर हमें खुले मन से सोचते हुए मानवता के कल्याण की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। इंसान को इंसानियत भरे कर्मों से पहचाना जाना चाहिए, न कि उसकी बाहरी पहचान से। संकीर्ण सोच का त्याग कर ही हम अपने जीवन और समाज का वास्तविक उत्थान कर सकते हैं।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी

ज्ञान से बदलाव
रंगभेद या शारीरिक भिन्नताओं के आधार पर किसी को हीन समझना एक विकृत मानसिकता है, जिससे मुक्ति का सबसे प्रभावी मार्ग ज्ञान और संघर्ष है। सामाजिक नियम, नैतिक शिक्षा और कानून की भूमिका भी अहम है, परंतु स्थायी परिवर्तन ज्ञान और आत्मबल से ही आता है। महर्षि अष्टावक्र ने अपने ज्ञान के बल पर शारीरिक सौंदर्य की परिभाषा बदल दी थी। नेल्सन मंडेला जैसे महान व्यक्ति ने अपने ज्ञान और संघर्ष के माध्यम से सौंदर्य व समानता की नई परिभाषा गढ़ी। हमें भी दूसरों की नकारात्मक टिप्पणियों से विचलित हुए बिना, अपने गुणों को निखारते हुए रंगभेद की मानसिकता को जड़ से समाप्त करना होगा।
ईश्वर चंद गर्ग, कैथल

पुरस्कृत पत्र

कर्म ही पहचान
रंगभेद की मानसिकता से त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव और असंवेदनशील टिप्पणियां जन्म लेती हैं, जिससे सामाजिक असंतोष और आत्मविश्वास की कमी उत्पन्न होती है। फिल्मों, विज्ञापनों और विवाह प्रस्तावों में गोरेपन को बढ़ावा देना इस प्रवृत्ति को और मजबूती देता है। इससे बचने के लिए शिक्षा और जागरूकता जरूरी है। मीडिया को भी सौंदर्य की व्यापक और समावेशी परिभाषा प्रस्तुत करनी चाहिए। समाज को यह समझना होगा कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्म, चरित्र और योग्यता से होती है, न कि रंग से। इस मानसिकता से मुक्ति सामूहिक प्रयासों से ही संभव है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.

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