पाठकों के पत्र
लापरवाही और जिम्मेदारी
इकतीस दिसंबर को प्रकाशित दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘मौत के बोरवेल’ में उल्लेख है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में सभी राज्यों को निर्देश दिए थे, लेकिन अनदेखी के कारण घटनाएं नियंत्रित नहीं हो सकीं। बोरवेल खोदने वाली एजेंसी, प्रशासनिक अधिकारी और पंचायत कर्मियों को बोरवेल की संख्या और खतरनाक बोरवेल की जानकारी होती है, फिर भी प्रशासनिक कार्रवाई की कमी रहती है। हालांकि, सबसे अधिक जवाबदेह भूमि स्वामी है, क्योंकि बोरवेल को खुला छोड़ने और लापरवाही के लिए वही जिम्मेदार होता है। बच्चों को बचाने या सुरक्षा पर होने वाला खर्च भूमि स्वामी से वसूला जाना चाहिए।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सियासत मुक्त हो समाधान
छात्रों पर लाठीचार्ज और किसानों के आंदोलनों से व्यवस्था में बार-बार उथल-पुथल होती है। राज्य और केंद्र सरकार को युवाओं के भविष्य को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। किसान हर साल आंदोलन क्यों करते हैं, यह सवाल उठता है, जबकि वे दिन-रात मेहनत कर अनाज उगाते हैं। अगर इन आंदोलनों को राजनीति से मुक्त करके बातचीत से हल निकाला जाए, तो व्यवस्था सुधर सकती है। सभी विभागों को इन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और सियासी विवादों से हटकर समाधान खोजने की आवश्यकता है।
हरिहर सिंह चौहान, इन्दौर म.प्र.
नई ऊर्जा व उत्साह
एक जनवरी का संपादकीय नये साल में लिए जाने वाले संकल्पों को नए जोश के साथ पूरा करने के विषय पर प्रकाश डालने वाला था। वास्तव में नववर्ष की शुरुआत से हमें अतीत की गलतियों से सीख कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। नववर्ष मनाने की सार्थकता तभी है जब हम नववर्ष में कुछ नया करें। संपादकीय में उचित ही कहा गया है कि पर्वों की सार्थकता इसलिए है क्योंकि पर्व नई ऊर्जा व उत्साह का संचार करते हैं।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल