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नयी उम्मीदें जगाती स्पेस डॉकिंग तकनीक

04:05 AM Jan 09, 2025 IST
नयी उम्मीदें जगाती स्पेस डॉकिंग तकनीक
इसरो द्रारा लांच दो छोटे स्पेसक्राफ्ट
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स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी दो अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में ही एक-दूसरे से जोड़ने की तकनीक है। जिसकी बदौलत स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में यात्रियों को स्पेस होटल या दूसरे स्पेस क्राफ्ट में चढ़ने-उतरने की सुविधा देता है। अब अगर भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति बनना है तो स्पेडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये गये दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में सफलतापूर्वक डॉक करना होगा। अंतरिक्ष के बाहर चंद्र और मंगल अभियानों के लिए भी अंतरिक्षयान की मरम्मत, ईंधन भरने और मॉड्यूल्स जोड़ने में भी यह तकनीक अहम है।

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देवेश प्रकाश
करीब-करीब सभी तरह की परीक्षाओं में जनरल स्टडीज के व्यापक दायरे से सवाल पूछे जाते हैं। जिनमें राजनीति, समाज, वैश्विक घटनाक्रम, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी तथा अर्थव्यवस्था प्रमुख क्षेत्र हैं। विभिन्न सब्जेक्ट्स के अलावा ताजा घटनाओं से संबंधित प्रश्न भी शामिल होते हैं। मसलन, हाल ही में इसरो के स्पेडेक्स मिशन के तहत परीक्षण की जाने वाली स्पेस डॉक टेक्नोलाजी। तो जानिये यह तकनीक क्या है और अंतरिक्ष अभियानों के लिए यह कितनी महत्वपूर्ण है?
स्पेस में दो अंतरिक्ष यानों को परस्पर जोड़ना
स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी दो अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में ही एक-दूसरे से जोड़ने यानी डॉकिंग की तकनीक है। इसे एक आम आदमी के लिहाज से इस तरह भी समझ सकते हैं कि जैसे हवाई जहाज में एक सीढ़ी जोड़ी जाती है, जिसके जरिये लोग हवाई जहाज से नीचे उतरते या इसमें ऊपर चढ़ते हैं। उसी तरह स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग तकनीक’ की बदौलत यात्रियों को स्पेस होटल या दूसरे स्पेस क्राफ्ट में चढ़ने-उतरने की सुविधा प्रदान करती है। यह तकनीक अंतरिक्ष अभियानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है; क्योंकि यह अंतरिक्ष यानों में ईंधन भरने, सामानों की आपूर्ति करने, यहां तक कि अंतरिक्ष यात्रियों के आवागमन के लिए भी सीढ़ी का काम करती है। अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को इसके जरिये जोड़ दिया जाता है।
अंतरिक्ष महाशक्ति बनने से जुड़ा मिशन
स्पेस डॉकिंग तकनीक का पहला सफल प्रयोग अमेरिका ने अपने जेमिनी कार्यक्रम के दौरान साल 1966 में किया। इस मिशन में नील आर्मस्ट्रांग और डेविड स्कॉट थे। इसके तुरंत बाद सन 1967 में तत्कालीन सोवियत संघ ने भी अपनी डॉकिंग तकनीक का सफल परीक्षण किया। अगर भारत को भविष्य की अंतरिक्ष महाशक्ति बनना है तो हमारे स्पेडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये गये दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में सफलतापूर्वक डॉक करना ही होगा, जो उसके पहले तक करीब 30 किलोमीटर के फासले पर 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर काट रहे होंगे। इसरो जब अपने मौजूदा स्पेस डॉकिंग मिशन के चलते इन दो स्पेसक्राफ्ट को डॉक करेगा या आपस में जोड़ेगा, उस समय इनकी रफ्तार घटकर 5 किलोमीटर से 0.25 किलोमीटर के बीच दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर के जरिये आपस में जोड़ा जायेगा। अगर दोनों स्पेस क्राफ्ट कामयाब तरीके से डॉक हो जाते हैं तो दोनों के बीच इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसफर को प्रदर्शित किया जायेगा। इसकी सफलता का दूसरा हिस्सा दोनों स्पेसक्राफ्ट को एक-दूसरे से अलग करना होगा।
जटिल अंतरिक्ष अभियानों की आधारशिला
हमारे देश के आगामी गगनयान मिशनों की कामयाबी इस तकनीक की सफलता पर निर्भर है। वास्तव में स्पेस डॉकिंग तकनीक बड़े और जटिल अंतरिक्ष अभियानों की आधारशिला है। इसके बिना अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मिशन संभव ही नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) को बनाये रखने और अंतरिक्ष में मानव जीवन को हर तरह का सपोर्ट करने के लिए यह तकनीक बहुत जरूरी है और अंतरिक्ष के बाहर चंद्र और मंगल अभियानों के लिए भी अंतरिक्ष में ईंधन भरने और विभिन्न मॉड्यूल्स को जोड़ने में भी यह तकनीक बहुत जरूरी है। अंतरिक्ष में, अंतरिक्षयान की मरम्मत करने और अपग्रेड करने तथा रिसर्च के लिए भी यह तकनीक असीम संभावनाएं देती हैं। भारत का डॉकिंग तकनीक का यह परीक्षण 9 जनवरी 2025 को बताया जा रहा है। यदि भारत अपनी पहली डॉकिंग तकनीक के परीक्षण में सफल रहता है तो इस मामले में विदेशों पर हमारी निर्भरता खत्म हो जायेगी और हम अपने चंद्र, मंगल और गगनयान जैसे मिशनों को पूरा कर सकते हैं।
स्पेस इंडस्ट्री, कारोबार में फायदे
भारत में मानव अंतरिक्ष परीक्षण के तहत इस तकनीक की हर हाल में जरूरत होगी ताकि रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत भी अंतरिक्ष अभियानों के संदर्भ में महत्वाकांक्षी सपने देख सके। वास्तव में यह स्पेस डॉकिंग तकनीकी ही है, जिसकी बदौलत ही हम अपने स्पेस स्टेशन और कॉमर्शियल स्पेस इंडस्ट्री के लिए स्पेस तैयार कर सकते हैं। स्पेस डॉकिंग तकनीक से अंतरिक्ष में नये सेटैलाइट लांच करना और उनकी मरम्मत करना आसान हो जाता है, जिससे सस्ते इंटरनेट व संचार की सेवाएं मिल सकती हैं। स्पेस डॉकिंग तकनीक से जलवायु परिवर्तन, तूफान और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की सटीक जानकारी मिल सकती है। अंतरिक्ष में मेडिकल तकनीक और दवाइयों पर रिसर्च करने का फायदा मिल सकता है। यही नहीं, इस तकनीक से अंतरिक्ष पर्यटन का कारोबार प्रभावी ढंग से हो सकता है।
अंतरिक्ष पर्यटन में मददगार
स्पेस डॉकिंग तकनीक की बदौलत धरती से अंतरिक्ष के पर्यटक आसानी से अंतरिक्ष जाकर और वहां कई दिन तक रहकर वापस आ सकते हैं। इससे विभिन्न अंतरिक्षयानों को ईंधन की आपूर्ति की जा सकती है,जिससे इसके लिए उन्हें बार बार धरती पर नहीं लौटना होता। स्पेस होटल में रहने के लिए जो मॉड्यूलर स्पेस बनाये जाएंगे। अगर अंतरिक्ष पर्यटन के दौरान कोई भी समस्या आती है तो डॉकिंग तकनीक की बदौलत दूसरे स्पेसक्राफ्ट से मदद पहुंचायी जा सकती है। इससे भविष्य में जहां स्पेस टूरिज्म के विकास की जबर्दस्त संभावनाएं हैं, वहीं चांद पर स्थायी बस्तियां बसाये जाने की राह निकल सकती है।
कुल मिलाकर अगर स्पेस डॉकिंग तकनीक को इंसान के पारग्रही सपनों का आधार कहा जाए तो इसमें कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक बार जब हम अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक को लेकर पारंगत हो जाएंगे तो मंगल और दूसरे अन्य ग्रहों तक भी इस तकनीक की बदौलत न सिर्फ इंसान का पहुंचाना आसान हो जायेगा। -इ.रि.सें.

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