नफरती मंसूबे
अलगाववादियों के एजेंडे को लेकर पश्चिमी देशों की सरकारों के प्रश्रय से मुखर हुए कुछ अराजक तत्वों द्वारा अमेरिका में कैलिफोर्निया स्थित स्वामी नारायण मंदिर पर हमला करना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। वहां अापत्तिजनक संदेश लिखकर मंदिर को क्षति पहुंचायी गई। इससे पहले भी आतंक फैलाने की मंशा से मंदिरों पर हमले होते रहे हैं। जाहिर है ऐसे आपराधिक तत्वों की मंशा आतंक फैलाना ही है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस तरह की कुत्सित कोशिशों की निंदा की है, लेकिन अमेरिकी सरकार द्वारा ऐसे मामलों की अनदेखी और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई न करना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। दरअसल, पृथकतावादी तत्व हिंदुओं के खिलाफ विष वमन करके अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति के अंग-संग रहने वाले समाज को विभाजित करके घृणा का कारोबार करने वाले तत्वों को बेनकाब करने की जरूरत है। विडंबना यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन व कनाडा में सक्रिय ऐसे तत्वों को इन देशों की सरकारों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर प्रश्रय दिया जाता है। सवाल यह उठता है कि जब ऐसी आजादी किसी सभ्य समाज के अहसासों से खिलवाड़ करे और दूसरों की धार्मिक आजादी का अतिक्रमण करने लगे तो क्या उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? दरअसल,ये घटनाक्रम इन देशों के दोगले मापदंड उजागर करते हैं। दूसरे देशों में सांप्रदायिक असहिष्णुता और कथित भेदभाव के आंकड़े जारी करके दबाव बनाने वाले तथाकथित सभ्य देश अपने क्रियाकलापों से बेनकाब हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका में करीब एक दर्जन मंदिरों को अपवित्र करने की कुत्सित कोशिश हुई, लेकिन ऐसे तत्वों के खिलाफ दिखावे के लिये भी कार्रवाई नहीं की गई। किसी हमले की जांच भी नहीं हुई। जबकि प्रत्येक संप्रदाय की धार्मिक आजादी की रक्षा करना अमेरिकी सरकार का नैतिक दायित्व है। आखिर मंदिरों को सुरक्षा क्यों नहीं मुहैया करायी जाती। बीते साल भी कनाडा में हिंदू महासभा के मंदिर में हमला करके बच्चों व महिलाओं तक को पीटा गया था। लेकिन ट्रूडो सरकार खामोश रही।
विडंबना यह है कि अमेरिका,ब्रिटेन व कनाडा की सरकारें ऐसे हमलों व मंदिरों को अपवित्र करने की घटनाओं को अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में रखकर आंखें मूंद लेती हैं। लेकिन जब दूसरे देशों में उनके धर्म के लोगों के पूजा स्थलों पर हमले होते हैं तो उसे धार्मिक आजादी व मानवाधिकारों का संकट बताने लगते हैं। निश्चित रूप से ऐसे ही रवैये से भारत के साथ इन देशों के संबंधों में खटास ही आएगी। ऐसे ही अलगाववादियों के कृत्यों व कनाडा सरकार के अलगाववादियों को संरक्षण देने के चलते ही दोनों देशों के संबंध सबसे खराब दौर में पहुंचे हैं। पिछले साल हिंदू महासभा के मंदिर परिसर में मंदिर प्रशासन व भारतीय उच्चायोग द्वारा लगाए गए वीजा शिविर को निशाना बनाया गया था। अभी हाल ही में ब्रिटेन में विदेश मंत्री जयशंकर के काफिले को खालिस्तान समर्थकों ने निशाना बनाया था। इससे पहले दो वर्ष पूर्व भी पृथकतावादियों ने भारतीय उच्चायोग परिसर में घुसकर तिरंगा निकाल दिया था। तब भी भारत सरकार ने ब्रिटेन की सरकार से कड़ा प्रतिवाद किया था। लेकिन हाल ही में विदेशमंत्री के काफिले को निशाना बनाया जाना बताता है कि ब्रिटिश सरकार की उदासीनता से अलगाववादियों के हौसले बुलंद ही हुए हैं। यहां सवाल ब्रिटिश सरकार पर भी उठता है कि वह विदेशी राजनयिकों को सुरक्षा देने में नाकाम है। इसके अलावा भारत सरकार लगातार अलगाववादियों पर अंकुश लगाने को कहती रहती है। हाल ही में ब्रिटिश गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में ऐसे अतिवादियों के उभार को ब्रिटिश कानून व्यवस्था के लिये खतरा बताया गया था। लेकिन इसके बावजूद ऐसे मामलों की अनदेखी की जा रही है। निश्चित तौर पर छोटी घटनाओं को नजरअंदाज करने से कालांतर बड़ी हिंसक गतिविधियों को ही प्रश्रय मिलता है। यह भी सवाल उठना स्वाभाविक है कि विदेश मंत्री के सामने नारेबाजी कर रहे ऐसे तत्व सुरक्षा घेरे को तोड़कर कैसे विदेशमंत्री की कार के करीब तक पहुंच गए। घटना से स्पष्ट है कि उच्च स्तर पर सुरक्षा में चूक का मामला है। जिसके लिए लंदन पुलिस की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। निश्चित रूप से पश्चिमी देशों की सरकारों को अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा व गरिमा तय करनी होगी।