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दिल्ली व दिल से दूरी घटाने की कवायद

04:00 AM Jan 16, 2025 IST
दिल्ली व दिल से दूरी घटाने की कवायद
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हालिया तोहफे जम्मू और कश्मीर के भेदभाव रहित विकास का द्योतक तो हैं ही, सामाजिक-आर्थिक संरचना को सुव्यवस्थित करने के साथ ही चीन और पाकिस्तान को सामरिक सशक्तीकरण और आधुनिकीकरण का संदेश भी है।

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प्रदीप मिश्र

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए 2025 की शुरुआत से सौगातें बरस रही हैं। जनवरी के पहले सप्ताह में जम्मू को नया रेल मंडल और दूसरे सप्ताह कश्मीर के गांदरबल में सोनमर्ग सुरंग का शुभारंभ हुआ है। सुखद संकेतों का सिलसिला 26 जनवरी और फरवरी में पेश होने वाले बजट में भी नजर आया तो नए सियासी समीकरण भी बनना तय है। हािलया तोहफे जम्मू और कश्मीर के भेदभाव रहित विकास का द्योतक तो हैं ही, सामाजिक-आर्थिक संरचना को सुव्यवस्थित करने के साथ ही चीन और पाकिस्तान को सामरिक सशक्तीकरण और आधुनिकीकरण का भी संदेश है। पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद विधानसभा चुनाव के क्रम में दोनों फैसलों से पता चलता है कि केंद्रशासित प्रदेश की सरकार ने सही परिप्रेक्ष्य में समझ कर योजनाओं का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। दोनों सरकारों में बढ़ी समझदारी बता रही है कि जम्मू-कश्मीर में राज्य का अध्याय जल्द शुरू नहीं होगा। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की राज्य के दर्जे की बहाली की मांग मानने से पहले मोदी सरकार भाजपा के राजनीतिक विस्तार की बुनियाद को कश्मीर में भी मजबूत करने में कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
अनुच्छेद 370 से मुक्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर को शेष देश के रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए तेजी से बढ़े कदमों का नतीजा है कि जम्मू के साथ कश्मीर भी भारत का ‘अभिन्न अंग’ वास्तविक तौर पर अब होगा। कश्मीर से कन्याकुमारी ही नहीं, कच्छ, कामरूप और कोलकाता से कश्मीर के जुड़ाव से सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता के अलावा आध्यत्मिक और धार्मिक गतिविधियों को विस्तार मिलेगा। पर्यटन को पंख लगेंगे तो आर्थिकी की रफ्तार बढ़ेगी और फिर जम्मू के लखनपुर से लद्दाख के लेह तक के लोगों का कायाकल्प होना तय है। यही नहीं, केंद्र ने जम्मू में बनाए गए 742 किलोमीटर के रेल मंडल के रूप में पंजाब के पठानकोट, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, धर्मशाला शहर के अलावा माता ज्वाला देवी, माता चामुंडा देवी शक्तिपीठ के साथ ही केंद्रशासित लद्दाख के लेह को इसके दायरे में लाकर सीमावर्ती क्षेत्रों तक सुरक्षा तंत्र को सुद‍ृढ़ और सुसंगठित करने का इरादा जता दिया है।
दरअसल, कश्मीर घाटी को रेलवे रूट से जोड़ने की योजना 1997 में बनी थी। करीब तीन दशक की मशक्कत के बाद यह सपना सच हो रहा है। अब नया कश्मीर नजर आने लगा है। जल्दी ही जम्मू-श्रीनगर के बीच चलने वाली ट्रेनें माता वैष्णोदेवी के साथ कश्मीर में मार्तंड सूर्य मंदिर के भी दर्शन कराएंगी। साथ ही अनंतनाग-बिजबेहड़ा-पहलगाम के अलावा अवंतीपोरा-शोपियां (28 किलोमीटर) रेल लाइन का सर्वे चल रहा है। इसके निर्माण के बाद बाबा बर्फानी के दर्शनार्थी और पर्यटक सुखद और रोमांचक यात्रा का आनंद ले सकेंगे। साथ ही नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा प्रहरियों की पहुंच शीघ्र सुनिश्चित करने के लिए बारामुला-उड़ी, बारामुला-कुपवाड़ा, जम्मू-पुंछ वाया अखनूर-राजोरी और मनवाल वाया रामकोट-बिलावर-दुनेरा नई रेलवे लाइन बिछाने की डीपीआर बनाई जा रही है। बारामुला-बनिहाल रेलवे लाइन के दोहरीकरण का भी प्रस्ताव है। फिलहाल, सोनमर्ग की सुरंग ने लद्दाख के साथ हर मौसम में संपर्क का रास्ता खोल दिया है। आगे के सुगम मार्ग के लिए जोजिला इसका अगला पड़ाव है।
अब केंद्रशासित प्रदेश के बजट से जम्मू-कश्मीर को बड़ी उम्मीदें हैं। बजट के प्रावधान और रियायतें केंद्र के अगले लक्ष्य की ओर इशारा करेंगे। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसके मद्देनजर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का गंभीर आर्थिक हालत पर ध्यान दिलाया है। उन्होंने केंद्र से गुहार लगाई है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्वोत्तर के राज्यों की श्रेणी में रखा जाए, जिसमें इन राज्यों को कर्ज देने के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। वे चाहते हैं कि पूंजीगत निवेश में विशेष सहायता के लिए उन्हें 50 साल के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिए जाने वाले प्रदेशों की सूची में भी शामिल किया जाए। यहां जानना जरूरी है कि 2024-25 के बजट में केंद्र शासित प्रदेश में छह हजार करोड़ का राजस्व घाटा है। जीडीपी के मुकाबले कर्ज की राशि तेजी से बढ़ रही है। आर्थिक स्थिति और समन्वय का अभाव ही है कि विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को तीन महीने बाद जनवरी में केवल एक महीने का वेतन मिल पाया है। नई सरकार ने 16 अक्तूबर को शपथ ली थी।
‘दिल्ली से दूरी’ और ‘दिल की दूरी’ कम करने के लिए जम्मू-कश्मीर में कम करने के लिए 42 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं चल रही हैं। दूसरी तरफ आतंकवाद मुक्त जम्मू-कश्मीर की कवायद भी है। इस बीच राज्य के दर्जे की बहाली के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मिल चुके मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला वर्तमान परिस्थितियां समझ गए हैं। वह सियासी संशय दूर कर सरकार का सफर समझदारी से पूरा करना चाहते हैं। सरकार बनने के बाद उमर ने अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग से भी किनारा कर लिया है। आठ नवंबर, 2024 को विधानसभा के उद्घाटन सत्र में पारित प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 की वापसी के बजाय जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे की मांग की गई है। प्रधानमंत्री की प्रशंसा और कांग्रेस से दूरी बनाने के बावजूद उन्हें राज्य के दर्जे की बहाली के लिए बार-बार याद दिलाने के साथ ‘उचित समय’ का इंतजार करना होगा।

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