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जोखिम के बजाय लें डॉक्टरी परामर्श

07:40 AM Oct 11, 2023 IST
जोखिम के बजाय लें डॉक्टरी परामर्श
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सेहत

देश में करोड़ों लोग गठिया या आर्थराइटिस रोग से ग्रस्त हैं जिसके प्रति जागरूकता रखना व जोड़ों में दर्द होने पर जोखिम लेने के बजाय तुरंत डॉक्टरी परामर्श लेना जरूरी है। इस रोग के विभिन्न प्रकारों व उपचार के बारे में एलएनजेपी अस्पताल, नयी दिल्ली के आर्थोपेडिक विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. वीके गौतम से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

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आसपास छोटी-बड़ी उम्र के कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो घुटने के दर्द से परेशान हैं। जोड़ों के दर्द ने उनका चलना-फिरना तक मुहाल कर रखा है। कइयों को नी-रिप्लेसमेंट सर्जरी तक करानी पड़ी है। जोड़ों के दर्द की समस्या को आर्थराइटिस या गठिया रोग कहा जाता है जो किसी भी उम्र में हो सकती है। जिसके पीछे आनुवंशिक, गतिहीन जीवनशैली, एक्सरसाइज की कमी, मोटापा व बैठ कर घंटों काम करना जैसे कई कारण होते हैं। आर्थराइटिस उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों के जोड़ों के बीच कार्टिलेज कम होने से होती है। कई मामलों में इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी के कारण लिगामेंट्स कमजोर हो जाते हैं। आर्थराइटिस गर्दन, पीठ, कूल्हे और घुटने की हड्डियों के जोडों में कहीं भी हो सकता है। लेकिन कूल्हे का जोड़ और घुटने सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। जोड़ों में दर्द जो मूवमेंट में बाधा डाले, तो डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के हिसाब से भारत में आर्थराइटिस के 18 करोड़ मामले हैं जिनमें 60 प्रतिशत मरीज महिलाएं हैं। पहले यह समस्या बुजुर्गों में देखी जाती थी लेकिन आजकल युवा भी ऑस्टियो आर्थराइटिस की चपेट में आ रहे हैं। जुवेनाइल आर्थराइटिस कम उम्र के बच्चों में भी देखा जाता है।


कई किस्म का होता है आर्थराइटिस
ऑटो इम्यून इंफ्लेमेटरी : जोड़ो के बीच मौजूद कार्टिलेज तरल पदार्थ जोड़ों की झिल्ली को ही क्षति पहुंचाने लगता है। जोड़ों में जकड़न, सूजन और दर्द रहता है। जोड़ टेढ़ा हो सकता है और मूवमेंट करना बंद कर सकता है।
रूमेटॉयड - 20-40 साल की महिलाओं में होता है। उंगलियों के जोड़ों में एक ही समय शुरू होता है। सुबह उठने पर उंगलियां जकड़ी हुई महसूस होती हैं। घुटने, हिप्स जैसे शरीर के दूसरे जोड़ों में भी हो सकता है।
एंकाइलोजिंग स्पोंडेलाइटिस - ज्यादातर युवा पुरुषों में होता है। यह रीढ़ से शुरू होता है, कमर में जकड़न पैदा करता है। धीरे-धीरे घुटनों, हिप्स को भी प्रभावित करता है। रीढ़ मुड़ जाती है।
डिजेनरेटिव ऑस्टियो - 60 साल से ज्यादा उम्र में घुटनों की हड्डियों के बीच का कार्टिलेज नष्ट होने लगता है। मूवमेंट करने पर हड्डियां आपस में टकराने और घिसने लगती हैं। सुबह घुटनों में तेज दर्द होता है और चलने में कठिनाई होती है।
जुवेनाइल इडियोपैथिक - आनुवंशिक जीन के अलावा कई कारण हो सकते हैं। पैप्टिक बैक्टीरियल इंफेक्शन आर्थराइटिस छह महीने के कमजोर इम्यूनिटी के बच्चों के कूल्हे की हड्डी में या घुटनों में भी हो सकता है। ऑटो इम्यून रूमेटोरॉयड आर्थराइटिस भी मिलता है। रुमेटिक फीवर आर्थराइटिस में स्टेप्टोकॉकस जीवाणु से बच्चे में बुखार और गला खराब होता है। इंफेक्शन घुटनों तक फैल सकता है। तेज दर्द और जोड़ खराब होने का खतरा रहता है।
मेटाबॉलिक गाउट - मोटापाग्रस्त व्यक्ति शरीर में यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है जो जोड़ों के कार्टिलेज को क्षति पहुंचाता है। पैर के अंगूठे से शुरू होता है, धीरे-धीरे मरीज के शरीर के दूसरे हिस्से में भी फैल सकता है।
ये हैं उपचार
डॉक्टर मरीज की स्थिति, केस हिस्ट्री से और क्लीनिकल एग्जामिनेशन (ब्लड टेस्ट और एक्स-रे) से कार्टिलेज की लेयर की मोटाई की जांच करते हैं। एक्यूट स्टेज में मरीज नॉन-ऑपरेटिंग ट्रीटमेंट से लंबे समय तक खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं। जबकि क्रोनिक आर्थराइटिस में घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी भी की जाती है।
दवाई : डायग्नोज होने पर इंफ्लेमेटरी आर्थराइटिस में पांच-छह तरह की डिजीज मॉडीफाइंग एजेंट्स दवाइयां दी जाती हैं। ऑटो इम्यूनिटी को कंट्रोल करने वाली होने के कारण ये जोड़ों में सूजन और दर्द आदि को कम करने में सहायक होती हैं।
फिजियोथेरेपी : विकृति का शिकार टेढ़े-मेढ़े हुए जोड़ों की स्थिति में सुधार लाने, भविष्य में ज्यादा विकृति होने से बचाने में फिजियोथेरेपी एक्सरसाइज अहम भूमिका निभाती है।
कोल्ड या हीट थेरेपी : जोड़ों में सूजन होने पर कोल्ड फोर्मेंटेशन, कोल्ड पैक्स या आइस पैक से सिंकाई करना फायदेमंद है। जबकि क्रोनिक स्थिति में शॉटवेव डायथर्मी, माइक्रोवेव डायथर्मी जैसी हीट थेरेपी भी दी जा सकती है।
वजन नियंत्रण : जोड़ों को बचाने के लिए व्यक्ति को वजन नियंत्रित करने के लिए कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक किलो वजन कम करने पर जोड़ों पर कम से कम 5 किलो प्रेशर कम हो जाता है। एरोबिक एक्सरसाइज व योगा नियमित जरूरी है। आइसोमीट्रिक एक्सरसाइज भी कराई जाती हैं।
जोड़ों में इंजेक्शन : गंभीर स्थिति के इलाज के लिए मरीज के जोड़ों के अंदर इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं जो जोड़ों को लुब्रीकेट करने और कार्टिलेज बढ़ाने में सहायक होते हैं। तेज दर्द में 3-6 महीने तक आराम पहुंचा सकते हैं।
सर्जरी : स्थिति में सुधार न हो पाने या जोड़ पूरी तरह खराब होने की स्थिति में सर्जरी करके नए जोड़ का प्रत्यारोपण किया जाता है। तकरीबन 60 साल की उम्र के लोगों में यह सर्जरी कामयाब रहती है। स्थिति गंभीर होने पर ही कम उम्र के लोगों में यह सर्जरी की जाती है।

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