जुगलबंदी से मधुर साज और आवाज़
केवल तिवारी
इसे सुखद संयोग ही कहेंगे किएक तरफ चंडीगढ़ में ‘वर्षा ऋतु संगीत संध्या’ चल रही थी, दूसरी तरफ बाहर रिमझिम फुहार। गीतों के बोल भी ऐसे ही थे, मसलन ‘गरजे घटा घन कारे-कारे’, ‘घन घनन घनन घन घोर’, ‘गरजत आये री बदरवा’, ‘बूंदनीया बरसे’, ‘झुक आयी बदरिया सावन की’ वगैरह-वगैरह। पिछले दिनों इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पहुंचे थे शास्त्री संगीत में साज और आवाज के तीन दिग्गज। ‘दैनिक ट्रिब्यून’ के साथ बातचीत में इन लोगों ने साज, संगीत और आज के वातावरण पर विस्तार से बातचीत की। पेश है तीनों कलाकारों से हुई बातचीत के चुनींदा अंश :-
परंपरा को बढ़ाया : विदुषी मीता पंडित
विदुषी मीता पंडित, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक अग्रणी और लोकप्रिय गायिका हैं। उन्होंने भारत और 25 से अधिक देशों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। विदुषी मीता ऑल इंडिया रेडियो की एक शीर्ष श्रेणी की कलाकार हैं। सूफी, ठुमरी, भक्ति और सुगम शैलियों में उनकी प्रस्तुति समान रूप से भावपूर्ण है। ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखने वाली विदुषी मीता पंडित का मानना है संगीत के प्रति अनुराग किसी के भी तन-मन को झंकृत करता है। उन्होंने कहा कि यह शास्त्रीय संगीत की सुमधुरता ही है कि देश के कोने-कोने के अलावा विदेशों में भी इसको लेकर कार्यक्रम होते हैं और लोग बहुत चाव से इसे सुनते हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरोधा रहे पद्म भूषण पं. कृष्णराव शंकर पंडित की पोती एवं पं. लक्ष्मण कृष्णराव पंडित की बेटी मीता पंडित का भी रुझान बचपन से ही संगीत की ओर रहा। उन्होंने अपने पुश्तैनी परंपरा को तो आगे बढ़ाया ही, आज की पीढ़ी को भी संगीत के सुरों को समझाया। मीता आज के तड़क-भड़क के गीत संगीत और शास्त्रीय संगीत के बीच किसी तरह की तुलना करने से ही इनकार कर देती हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों संगीतों और दोनों के श्रोताओं में तुलना का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने यह दावा जरूर किया कि अगर शास्त्री संगीत की समझ रखी जाये और इसे गौर से सुना जाये तो लोग इसके मुरीद होते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत के शौक का उम्र से कोई लेना-देना नहीं।
प्रयोग की संभावना : डॉ. अविनाश कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज में संगीत के शिक्षक डॉ. अविनाश कुमार मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत में प्रयोग की पूरी संभावना है। वह कहते हैं न केवल संभावना है, बल्कि ऐसा किया जाना जरूरी है। क्योंकि आज के समय में एक ही राग पर आधारित किसी गीत को घंटों सुनने का लोगों के पास वक्त नहीं। कुमार मानते हैं कि आज युवा शास्त्रीय संगीत की तरफ पूरी तरह से आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत के माहौल में पले-बढ़े बच्चों का चित्त शांत रहता है। युवा हिंदुस्तानी शास्त्री गायक डॉ. अविनाश कुमार ने साधना चटर्जी और पूर्णचंद्र चटर्जी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। बाद में उन्होंने रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद आफताब अहमद खान से उन्नत प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने आगरा और किराना घराने के पंडित तुषार दत्त और किराना घराने के पंडित सोमनाथ मर्दुर से संगीत का भी प्रशिक्षण लिया।
मां से सीखा तबला : पं. राम कुमार मिश्र
शीर्ष तबला वादक पंडित राम कुमार मिश्र का मानना है कि भारतीय साज और आवाज को आगे बढ़ाने में युवाओं को आगे आना चाहिए। जाने-माने तबला वादक पंडित अनोखे लाल मिश्र के पौत्र एवं पद्म विभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र के पुत्र राम कुमार को तबले की तालीम उनकी मां मनोरमा मिश्र से मिली। उन्होंने कहा कि अब इस परंपरा के उनके पुत्र आगे ले जा रहे हैं। बनारस घराने के तबला वादक कुमार कहते हैं कि कार्यक्रमों के दौरान प्रत्येक दर्शक से वह कनेक्ट होते हैं और जिस तरह गायन शैली में परिवर्तन हो रहा है, प्रयोग हो रहे हैं, तबले की ताल में भी प्रयोग की हमेशा गुंजाइश बनी रहती है। वह आधुनिक वाद्य यंत्रों के साथ ही परंपरागत यंत्रों की जुगलबंदी को भी जरूरी मानते हैं।