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जवाबदेही व स्थानीय संवेदनशीलता हो प्राथमिकता

04:00 AM Jan 21, 2025 IST

यूं तो हिमाचल प्रदेश पुलिस (संशोधन) विधेयक 2024 का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता बढ़ाना और पुलिस बल को आधुनिक बनाना है। लेकिन इसके प्रभावों को लेकर जवाबदेही, स्थानीय संवेदनशीलता और संसाधन आवंटन के मुद्दे पर गहन विमर्श जरूरी हैं।

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के.एस. तोमर

हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया। यह विधेयक प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, भर्ती प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और जनसेवकों को उत्पीड़न से बचाने का लक्ष्य रखता है। हालांकि, इसके उद्देश्य प्रगतिशील हैं, लेकिन इसके प्रभावों पर व्यापक बहस हो रही है, खासकर जवाबदेही, स्थानीय शासन और प्रशासनिक लचीलापन के संदर्भ में।
विधेयक का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि सरकारी अधिकारियों को उनके आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान की गई कार्रवाइयों के लिए गिरफ्तार करने से पहले सरकार से स्वीकृति प्राप्त करनी होगी। समर्थकों का कहना है कि यह ईमानदार अधिकारियों को राजनीतिक या फ्रिवोलस मुकदमों से बचाता है, जबकि आलोचकों का मानना है कि इससे जवाबदेही में देरी हो सकती है और प्रशासनिक ईमानदारी पर जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है। पारदर्शिता के पक्षधर यह चाहते हैं कि इस प्रावधान में कड़े चेक और बैलेंस हों, ताकि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा न दे।
संशोधन में पुलिस कांस्टेबलों और हेड कांस्टेबलों का जिला कैडर से राज्य कैडर में पुनर्गठन किया गया है, जिसका उद्देश्य भर्ती को मानकीकरण करना और कर्मियों के आवंटन को अधिकतम करना है। राज्य-स्तरीय पुलिस भर्ती बोर्ड के तहत भर्ती प्रक्रिया को केंद्रीकरण करके सरकार ने भाई-भतीजावाद को समाप्त करने और जिलों के बीच संसाधन असंतुलन को दूर करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, इस विधेयक के स्थानीय पुलिसिंग पर प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। आलोचकों का कहना है कि अधिकारियों का स्थानांतरण, जिनके पास स्थानीय सांस्कृतिक और सामाजिक जानकारी नहीं होती, कानून प्रवर्तन की क्षमता को कमजोर कर सकता है। इसके अलावा, स्थानीय भर्ती में काम करने वाले कर्मियों का उत्साह कम होगा, जो अपने घर के जिलों में सेवा करने पर गर्व महसूस करते हैं, जिससे पुलिस बल का मनोबल प्रभावित हो सकता है।
भाजपा सरकार पर भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का आरोप लगा रही है। उनका मानना है कि पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता से ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं को कानूनी सुरक्षा मिलती है, जिससे जवाबदेही कमजोर होती है। इसके अलावा, भर्ती के केंद्रीकरण पर आलोचना करते हुए, क्योंकि यह अधिकारियों को उन समुदायों से दूर कर सकता है, जिनकी वे सेवा करते हैं, जिससे स्थानीय प्रशासन की ताकत घट सकती है। भाजपा की आलोचना स्थानीय आवश्यकताओं और सांस्कृतिक अंतरों को नजरअंदाज करने की चिंता को व्यक्त करती है।
हालांकि, विधेयक का उद्देश्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसमें पुलिस बल की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने के बिना, कानून प्रवर्तन बाहरी दबावों से प्रभावित हो सकता है, जिससे इसकी दक्षता और स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, संसाधन की कमी एक महत्वपूर्ण समस्या हो सकती है, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में पुलिसिंग के लिए विशेष उपकरण, बुनियादी ढांचा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। आलोचकों का मत है कि विधेयक इन आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त वित्तपोषण नहीं प्रदान करता, जिससे सुधारों की प्रभावशीलता पर संकट आ सकता है। पुलिस आवास और दूरस्थ क्षेत्रों में गतिशीलता के लिए कोई प्रावधान न होने से समस्याएं और बढ़ सकती हैं।
बाहरी निगरानी तंत्र की कमी से शिकायत निवारण और जनता का विश्वास घट सकता है। इसके अलावा, विधेयक में लिंग विविधता और समावेशन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, जिससे पुलिस बल में महिला और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का अवसर खो सकता है। महिला हेल्पलाइनों और लिंग-विशिष्ट भर्ती अभियानों के जरिए इन सुधारों को पूरा किया जा सकता है।
महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार के अनुभव हिमाचल प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं। महाराष्ट्र ने तकनीकी-आधारित भर्ती से पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ाई, जबकि केरल की सामुदायिक पुलिसिंग ने पुलिस और जनता के बीच विश्वास मजबूत किया। तमिलनाडु ने पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण स्थापित कर स्वतंत्र निगरानी तंत्र की आवश्यकता को सामने रखा, और उत्तर प्रदेश ने डिजिटलीकरण के माध्यम से पुलिस बल का आधुनिकीकरण किया। बिहार के केंद्रीकृत भर्ती से स्थानीय मुद्दों पर असर पड़ा, जिससे हिमाचल को अपने भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है।
सुधारों की सफलता के लिए सरकार को गहन दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। तमिलनाडु की तरह एक स्वतंत्र निगरानी निकाय स्थापित करें, हिमाचल की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त संसाधनों और बुनियादी ढांचे में निवेश करें, केरल के सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल से प्रेरणा लेकर विश्वास और सहभागिता बढ़ाएं, डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके पारदर्शिता और शिकायत निवारण को बढ़ावा दें, और महिलाओं और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएं।
वर्ष 2024 का हिमाचल पुलिस (संशोधन) विधेयक राज्य में कानून प्रवर्तन को आधुनिकीकरण करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो दक्षता और जनसेवकों की सुरक्षा को बढ़ावा देता है। हालांकि, जवाबदेही, संसाधन आवंटन और स्थानीय संवेदनशीलता की चिंताएं बनी हुई हैं। अन्य राज्यों से सीखकर और इन मुद्दों को हल करके, हिमाचल प्रदेश प्रभावी और समान पुलिसिंग का मानक स्थापित कर सकता है।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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