घटिया दवाओं ने बढ़ाया किसानों का खर्च व परेशानी
सफीदों, 31 दिसंबर (निस) : सफीदों उपमंडल क्षेत्र में गेहूं की फसलों में पैदा हुए मंडूसी (गुल्लीडंडा) नाम के खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए अनेक किसानों ने दो-दो बार खरपतवारनाशक दवाओं का छिड़काव कर लिया है, लेकिन इसके बावजूद खरपतवार पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं है। इस संदर्भ में किसानों से मिल रही जानकारी के अनुसार मंडूसी खरपतवार को मारने के लिए अनेक तरह की खरपतवारनाशक दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं। इनमें कुछ ऐसी दवाई हैं जिनका गेहूं की बिजाई के एक-दो दिन बाद ही छिड़काव किया जाता है। ऐसी दवाओं का छिड़काव गेहूं की फसल की पहली सिंचाई से एक-दो दिन पूर्व भी होता है। किसान इसकी शिकायत भी संबंधित अधिकारियों से नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि ज्यादातर दवाएं उन्हें उनके कच्चे आढ़तियों से या उनके आढ़तियों की मार्फ़त डीलरों से मिल रही हैं।
आज कई किसानों ने बताया कि कुछ खरपतवारनाशक दवाएं ऐसी हैं जिनका गेहूं की फसल की पहली सिंचाई के दो-चार दिन बाद छिड़काव किया जाता है। किसानों का कहना है कि गेहूं की पहली सिंचाई से पहले और बिजाई के एक-दो दिन बाद सूखे खेत में छिड़की जाने वाली खरपतवारनाशक दवाएं अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावशाली हैं जबकि गेहूं की फसल की पहली सिंचाई के दो-चार दिन बाद छिड़की जाने वाली दवाएं मंडूसी खरपतवार पर बहुत कम प्रभाव डाल रही हैं जिस कारण अनेक किसानों को दो-दो बार ऐसी दवाओं का छिड़काव करना पड़ गया है लेकिन मंडूसी खरपतवार पूरी तरह से फिर भी नियंत्रित नहीं हो पाया है।
किसानों ने बताया कि घटिया दवाएं बाजार में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। जो किसान इन दवाओं के बारे में ज्यादा नहीं जानते उन्हें घटिया दवा बेच दी जाती है जिसके छिड़काव से मंडूसी पर तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन किसान पर दवा की कीमत व उसके छिड़काव का खर्च पड़ जाता है और समय बर्बाद होने से फसल भी प्रभावित होती है। किसानों की मांग है कि बाजार में धड़ल्ले से बेची जा रही घटिया खरपतवारनाशक व कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाया जाए ताकि किसानों को नुकसान न हो।