गैंग और गुर्गे, गुलछर्रे और छर्रे
शमीम शर्मा
आज की पीढ़ी के लिये बस आज का ही महत्व है। पुरानी पीढ़ी सौ साल का सोचती थी। उसी हिसाब से खर्चा और बचत प्लान हुआ करता था। कल की कल देखेंगे वाली पीढ़ी के लिये गुलछर्रे और छर्रे सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन्हीं में उन्हें ठहाके और सुकून मिलता है। गुलछर्रों में दारू सबसे ऊपर है। इन गुलछर्रों में युवा को वह मिठास नजर आती है जिसके सामने जिंदगी की कड़वाहटें भूलने में पल लगता है। होंठों पर दारू की बोतल और दारू के गाने छाये हुए हैं। पहले दारू लड़कों पर जादू करती थी और अब इसकी गिरफ्त में लड़कियां भी भारी संख्या में आ चुकी हैं। गर्ल्ज पीजी पर सफाई का काम करने वाली एक कर्मचारी ने बताया कि छोरियों के पीजी में इतनी खाली बोतल मिलती हैं जितनी छोरां के पीजी में भी नहीं होती। वैसे इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि लड़के बाहर पी आते हैं। सवाल है कि युवा पीढ़ी को इस भूरे पानी ने इतना बहका दिया है कि कैरियर, परिवार, संस्कृति, धर्म सब लुढ़कते नज़र आ रहे हैं।
गुलछर्रों तक बात सिमटी रहती तो भी काम चल जाता पर छर्रों ने युवापीढ़ी का सर्व सत्यानाश कर दिया है। छर्रों के धमाकों में मस्ती ढूंढ़ने वालों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि किसका सीना छलनी हुआ है। इन्हीं छर्रों ने न जाने कितने नवयुवकों को गैंग का गुर्गा बनाकर बंधुआ कर रखा है। मुंह को ढंक कर गोलीबारी कर फिरौती मांगने और लूट-खसूट करने वाले लड़कों की आज भरमार है। सीसीटीवी इन्हीं घटनाओं से भरे पड़े हैं। ताज्जुब तो इस बात का है कि आज के दिन कोई प्रवचन, सीख, ज्ञान इन छर्रेबाजों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में सफल नहीं हो रहा है। मुझे लगता है कि दुनिया में तो पानी की कमी हो ही रही है पर युवाओं की आंखों का पानी तो तली में लग चुका है। वहीं जज्बातों का पानी तो बिल्कुल सूख चुका है।
हरियाणा की धरती पर कृष्ण जी ने कहा था- कर्म किये जा फल की इच्छा न करो। इसका हरियाणवी अनुवाद एक युवा ने प्रस्तुत किया है- कर ले अपने मन के काम अर बाकी देखी जावैगी। कमाना सीखा नहीं और खर्चने में पीएचडी कर ली। अब हमारी युवा पीढ़ी ने इसे अपना धर्म वाक्य बना लिया है कि खाओ पीयो मौज करो अर बाकी देखी जायेगी।
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एक बर की बात है अक नत्थू बैंक मैं जाकै बोल्या- मन्नैं आशिकी खात्तर लोन चहिय। बैंक मैनेजर उसतैं घूरते होये बोल्या- लोन तो दे दयांगे पर जै टैम किस्तां नहीं भरी तो तेरी सैटिंग नैं ठा ल्यावांगे।