क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच संतुलन की जरूरत
वर्ष 2025 के लिए भारत की विदेश नीति का सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण मुद्दा चीन होगा। हालांकि, साल के अंत में संवाद स्थापित करने के प्रयास हुए हैं। इसके बावजूद, द्विपक्षीय रिश्तों से जुड़े
कई पेच बाकी हैं।
के.एस. तोमर
भारत को विदेश नीति 2025 में तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के अनुकूल ढालनी होगी। वैश्विक शक्तियां अमेरिका और पड़ोसी राष्ट्र चीन वैश्विक व्यवस्था को आकार दे रहे हैं। फलत: भारत को ऐसी चुनौतियों का सामना करना होगा, जिनके लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। नीति को दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ तात्कालिक आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए भविष्य की दिशा में रूपांतरित करना होगा।
भारत की विदेश नीति बीते साल की कई महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाओं के चलते आकार ले रही है, जो 2025 की भू-राजनीतिक और वैश्विक केंद्रित नीति की नींव बनाएंगी। निस्संदेह, भारत ने अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत किया है, लेकिन प्रमुख शक्तियों और पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं।
वर्ष 2025 के लिए भारत की विदेश नीति का सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण मुद्दा चीन होगा। हालांकि, साल के अंत में संवाद स्थापित करने के प्रयास हुए हैं। इसके बावजूद, द्विपक्षीय रिश्तों से जुड़े कई पेंच बाकी हैं। लद्दाख में सीमा विवाद, हिंद महासागर और दक्षिणी चीन सागर में चीन का बढ़ता प्रभाव और बीजिंग की आक्रामक आर्थिक और सैन्य नीतियां भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सीधा खतरा बन सकती हैं। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नीति ने पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ उसकी आर्थिक साझेदारी को गहरा किया है, जिसके कारण भारत को चिंता हो रही है, क्योंकि यह घटनाक्रम दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति को रणनीतिक रूप से कमजोर कर सकता है। सीमा मुद्दा अनसुलझा है, हालांकि कूटनीतिक वार्ता जारी है।
भारत को इस मामले में अत्यधिक आक्रामक दृष्टिकोण से बचते हुए एक संतुलित रुख अपनाना होगा, ताकि क्षेत्रीय अस्थिरता को रोका जा सके। कूटनीतिक और सैन्य प्रयासों को तनाव कम करने और विश्वास निर्माण उपायों पर केंद्रित किया जाना चाहिए। वहीं भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए दक्षिण चीन सागर, ताइवान जल डमरूमध्य और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के दृष्टिगत मजबूती से खड़ा रहना चाहिए। भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करना होगा, ताकि चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
भारत के लिए अमेरिका के साथ रिश्ते सकारात्मक दिशा में बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें भी कई समस्याएं बनी हुई हैं। हालांकि, रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा है, लेकिन कई मोर्चों पर तनाव भी बना हुआ है। अमेरिका की बहुपक्षीयता की नीति, जलवायु परिवर्तन पर उसका दृष्टिकोण, और बौद्धिक संपदा अधिकार एवं व्यापार असंतुलन जैसे मुद्दे अक्सर भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर अमेरिका के साथ गहरे संबंधों को जटिल बना देता है। इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध पर रूस के समर्थन को लेकर अमेरिका की भारत पर बढ़ती दबाव की स्थिति भी रिश्तों में तनाव का कारण है। इन समस्याओं को कूटनीतिक संवाद और बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।
भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते कई तरह की चुनौती का सामना कर रहे हैं। एक ओर, भारत भूटान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंध बनाए हुए है, वहीं पाकिस्तान के साथ रिश्ते अब भी तनावपूर्ण हैं। कश्मीर विवाद और सीमा पार आतंकवाद के कारण भारत-पाकिस्तान संबंध लगातार प्रभावित होते रहे हैं। नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव, श्रीलंका के चीन की ओर झुकाव, और पाकिस्तान के साथ अनसुलझे मुद्दे भारत के लिए कठिनाइयां उत्पन्न कर रहे हैं।
भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ मजबूत आर्थिक और रणनीतिक संबंध बनाना चाहिए। भूटान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ाना चाहिए और चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का मुकाबला वैकल्पिक पहल के माध्यम से करना चाहिए। हमें यूरोप के साथ रिश्ते को मजबूत करना चाहिए। अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को गहरा करना चाहिए, विशेषकर रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में। यूरोपीय देशों के साथ भी भारत को सहयोग बढ़ाना चाहिए, खासकर स्वच्छ ऊर्जा, रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में।
भारत को वैश्विक शासन में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यह कदम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रयास में मदद सकता है। भारत को जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और वैश्विक व्यापार सुधार जैसे मुद्दों पर वैश्विक पहल का नेतृत्व करना चाहिए। भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाना चाहिए और महत्वपूर्ण सहयोगियों जैसे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर खुफिया साझेदारी और आतंकवाद विरोधी उपायों को बढ़ाना चाहिए। पाकिस्तान के साथ भारत का रिश्ता निरंतर तनावपूर्ण रहेगा, खासकर सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की बढ़ती धमकी के कारण। भारत को पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीद के साथ, आतंकवाद के खिलाफ अपनी सैन्य और कूटनीतिक तैयारियों को मजबूत करना होगा।
भारत को विदेश नीति 2025 में रणनीतिक स्वायत्तता, क्षेत्रीय सहयोग और वैश्विक परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। प्रमुख शक्तियों के साथ रिश्ते संतुलित करना, पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाना, और वैश्विक शासन में सक्रिय भूमिका निभाना भारत को एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेगा। हालांकि चीन और पाकिस्तान के साथ रिश्ते चुनौतीपूर्ण होंगे, फिर भी भारत के पास वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने के पर्याप्त अवसर हैं।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।