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कुदरती आपदाओं को वश में करने की कला में निपुण थे डेरे के महंत

05:37 AM Dec 30, 2024 IST
चीका का प्राचीन शौरी मंदिर। -निस

जीत सिंह सैनी/निस

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गुहला चीका, 29 दिसंबर
हरियाणा-पंजाब की सीमा पर बसे कस्बा चीका का शौरी मंदिर डेरा अपने अंदर हजारों वर्षों का इतिहास समेटे हुए है। जानकार बताते हैं कि कई सौ साल पहले जब चीका नगर बसा था, उसी समय नगर से दूर जंगल में प्रयाग पुरी नाम का एक साधु तपस्या करता था। बाद में साधु ने इस जगह पर एक डेरे की स्थापना की और डेरे का नाम अपने शिष्य शौरी पुरी के नाम पर रखा और इसकी जिम्मेवारी महंत शौरी पुरी को सौंप खुद समाधि ले गए।

डेरे के वर्तमान सेवादार नागा साधुराम पुरी बताते हैं कि महंत शौरी पुरी के बाद इस डेरे का संचालन महंत अलखपुरी, महंत नैना पुरी और महंत पतासा पुरी ने किया और ये साधु कड़ी तपस्या के बल पर कई प्रकार की विधाओं के ज्ञाता हो गए थे।
महंत ने ओलावृष्टि, टिड्डी दल को कर लिया था वश में

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महंत रामपुरी

महंत राम पुरी ने बताया कि एक बार गुहला चीका क्षेत्र में बरसात के साथ भारी ओलावृष्टि हुई, जिससे फसलें मारी गई और लोगों को खाने के लाले पड़ गए। महंत राम पुरी ने बताया कि इस आफत से जैसे-तैसे लोग उबरे तो अगले साल फसल को टिड्डियों ने नष्ट कर दिया। लगातार दो फसलों के खराब होने से दु:खी क्षेत्र के लोग महंत पतासा पुरी के पास गए और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। महंत राम पुरी ने बताया कि तत्कालीन महंत पतासा पुरी ने आंखों से अंधे होने के बावजूद अपनी साधना के बल पर ओलावृष्टि और टिड्डी दल को बांध दिया और नगरवासियों को विश्वास दिलाया कि भविष्य में गुहला चीका क्षेत्र में ओलावृष्टि व टिड्डी दल फसलों का नुकसान नहीं करेंगे।

चीका क्षेत्र के बुजुर्ग पूर्व सरपंच कर्म सिंह, इकबाल सिंह, महेंद्र सिंह, बलजीत सिंह आदि ने बताया कि तब से लेकर आज तक इस क्षेत्र में ओलावृष्टि व टिड्डियों से कभी भी फसलों का बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। महंत पतासा पुरी के बाद इस डेरे का संचालन करने वाले महंत मस्त पुरी, महंत इलायची पुरी तथा महंत फूल पूरी भी कई प्रकार की विधाओं में निपुण थे।
डेरे के कुत्ते भी दर्शाते हैं प्रेम
चीका के शौरी मंदिर डेरे में जैसे ही शाम की आरती का समय होता है तो यहां रहने वाले आधा दर्जन से अधिक कुत्ते हरकत में आ जाते हैं। जैसे ही आरती के लिए मंदिर में शंख व टाल बजने लगता है तो ये कुत्ते भी एक सुर में जोर-जोर से आवाज निकालने लगते है। मंदिर के टाल के साथ सुर मिलाकर कुत्तों के आवाज निकालने से ऐसा आभास होता है जैसे ये कुत्ते मंदिर परिसर में समाए साधुओं को अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हों। शाम के वक्त मंदिर परिसर में यह नजारा बहुत ही अनोखा होता है।

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