कहानियाें में जीवन का व्यापक परिदृश्य
सुभाष रस्तोगी
ज्ञानप्रकाश विवेक कथाकार, उपन्यासकार, ग़ज़लकार और हिन्दी जगत के आलोचक-चिंतक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर सुप्रतिष्ठित हैं। उनके अब तक 10 कहानी संग्रह, 7 ग़ज़ल-संग्रह, 1 कविता-संग्रह तथा हिन्दी ग़ज़ल के स्वरूप व संवेदना पर केंद्रित तीन आलोचना-कृतियां उपलब्ध हैं। लेकिन यह कहना मुश्किल है कि वे मुख्यत: कथाकार हैं अथवा ग़ज़लकार। वे एक ऐसे रचनाकार हैं जिनके यहां रचना कागज पर उतरने से पहले अपनी विधा का चुनाव स्वयं कर लेती है। उनकी कहानियों में ग़ज़ल की संवेदना और माहौल चुपके से दस्तक दे ही देते हैं। यथा- ‘मुस्कराता हुआ इंसान जरूरी नहीं कि वह शहर का खुशतरीन शख्स हो। मुस्कराहट एक खेल भी हो सकती है, चेहरे की उदास इबारतों को छुपा लेने का खामोश-सा जलसा।’ भाषा की यह गंगाजमुनी रंगत ज्ञान की कहानियों की विशिष्टता है।
ज्ञानप्रकाश विवेक के सद्य: प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘छोटी-सी लड़ाई तथा अन्य कहानियां’ में 12 कहानियां संगृहीत हैं जो इस प्रकार हैं ‘खत', 'हारी हुई बाजियां’, ‘शहर छोड़ते हुए’, ‘ओल्ड होम में एक सुबह’, ‘वो हमसफ़र था...’, ‘पुलिया’, ‘चुप भी एक भाषा होती है’, ‘फ़ासला’, ‘जमेट्री बॉक्स’, ‘बूढ़ा’, ‘अध्यापक जी’ व ‘छोटी-सी दुनिया’। यह कहानियां एक स्तर पर कथ्य और कथन के नए प्रतिमान रचती प्रतीत होती है और दूसरे स्तर पर अपने समवेत पाठ में जीवन का एक व्यापक परिदृश्य उपस्थित करती हैं।
लेखक के इस कहानी संग्रह ‘छोटी-सी दुनिया तथा अन्य कहानियां’ में तीन कहानियां शीर्षक कहानी ‘छोटी-सी दुनिया’, ‘बूढ़ा’, व 'आेल्ड होम में एक सुबह’, बूढ़ों के जीवन की ऊब, उदासी, एकाकीपन और स्वयं में उनके निरर्थकता बोध के जीवंत चित्र उपस्थित करती हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘छोटी-सी दुनिया’ में पाठक स्वयं को बूढ़े आदमी जनकराज और वृद्धा अहिल्या की छोटी-सी दुनिया के रूबरू पाता है जिसमें दोनों अपने भीतर के निर्जन से भयभीत हैं लेकिन दोनों का साथ एक-दूसरे के होने को सार्थक और ज़िंदादिल बना देता है। कहानी का सबसे मार्मिक प्रसंग वह है जब जनकराज भावुकता के क्षणों में अपने मोबाइल पर बड़े बेटे का नम्बर मिलाता है और उधर से बेटे की आवाज सुनाई देती है, ‘पापा एक मीटिंग में हूं। आई विल कॉल यू बैक।’ जनकराज इस यथार्थ को जानते हैं, पर मीटिंग अनंतकाल तक जारी रहेगी। ‘बूढ़ा कहानी का हंसता, खिलखिलाता किस्सागो बूढ़ा भीतर से कितना टूटा हुआ और अकेला है, यह सत्य जब अंत में उजागर होता है तो पाठक भी स्वयं को भीतर से बेहद अकेला, टूटा हुआ और ठगा-ठगा सा अनुभव करता है। किसी प्राइवेट स्कूल से रिटायर हुए अध्यापक के व्यक्तित्व की सहजता और निरीहता ही ‘अध्यापक जी’ कहानी में उद्दंड हुए बालकों के जीवन में एक आमूल-चूल बदलाव उपस्थित कर देती है।
किस्सागोई और साक्षात्मकता ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियों की सबसे बड़ी विशिष्टता है। उनकी कहानियों में पात्र अपने परिवेश सहित उपस्थित होते हैं।
पुस्तक : छोटी-सी दुनिया और अन्य कहानियां लेखक : ज्ञानप्रकाश विवेक प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 159 मूल्य : रु. 425.