स्नेह का बंधन
प्रेम विज
असलम बच्चे को रिक्शा में लेकर कभी एक मोहल्ले तो कभी दूसरे चौराहे पर लेकर गया। कभी बच्चे से पूछता तुम्हारा घर कहां है? तुम अपने पिता से कहां बिछुड़े थे?
बस ऐसा ही चौराहा था। परन्तु तब भीड़ बहुत थी। पिता जी भी मेरे साथ थे। बच्चे ने उत्तर दिया।
‘तुम्हारे पापा का क्या नाम है?
‘मालूम नहीं।’
‘काम क्या करते हैं?’
‘फैक्टरी जाते हैं।’
‘फैक्टरी कहां है?’
‘मम्मा को पता है।’
अब दोपहर भी बीत गई थी। पहले तो बच्चा कुछ खा नहीं रहा था। अब उसने खाना शुरू कर दिया था। असलम ने आज कोई सवारी नहीं ली थी। वह चाहता था कि बच्चे को उसके मां-बाप से मिला दे। यह अल्लाह की सबसे बड़ी खिदमत होगी। दिनभर घूमने के बाद अब वह थक गया था। अब वह बच्चे को अपने झोपड़ीनुमा घर में ले आया। पहले तो बच्चा सहम गया। फिर उसके साथ अंदर चला गया। असलम ने दिलासा देते हुए कहा, ‘बेटे ज्यों ही तुम्हारे माता-पिता का पता चलेगा, मैं तुम्हें उनके हवाले कर दूंगा।’ बच्चा खाना खाने के बाद सो गया। सुबह जब वह उठा तो देखा कि अंकल नीचे फर्श पर सोए हुए थे और वह चारपाई पर था। अंकल आप नीचे क्यों सोये?
बेटे झोपड़ी में सोने के लिए एक ही चारपाई है। आज फिर से तुम्हारे मां-बाप की तलाश करेंगे। यदि नहीं मिले तो तुम्हें पुलिस को सौंप दूंगा। पुलिस का नाम सुनकर बच्चा रोने लगा।
‘क्या बात बेटे?’
‘मैं पुलिस वालों के पास नहीं जाऊंगा। मां-बाप नहीं मिले तो आप के पास ही रहूंगा। आप मुझे पुलिस वाले के पास मत ले जाना। मैं आप को परेशान नहीं करूंगा। मैं नीचे फर्श पर सो जाऊंगा।’ असलम चुपचाप बच्चे की तरफ देखने लगा कि एक ही रात में बच्चे ने उससे कैसा रिश्ता बना लिया है। सचमुच बच्चा स्नेह के बंधन में बंध चुका था।