उदारता से शुभसंकल्प
बिहार के एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। बुढ़ापे में जब उनके एक पुत्र पैदा हुआ तो दाई ने बधाई के रूप में कुछ उपहार देने की कामना की। ब्राह्मण ने कहा, ‘दाई मां, आज मेरी परिस्थिति कुछ देने लायक नहीं है किन्तु मैं वचन देता हूं कि जब भी यह बालक बड़ा होकर कुछ कमाने के लायक होगा तो इसकी पहली कमाई मैं आपको अर्पण कर दूंगा।’ बालक लगभग सात वर्ष का हुआ तो संयोगवश राजा की सवारी निकली तो राजा की नजर उसी बालक पर पड़ी और पूछा, ‘बालक क्या तुम्हें कुछ गाना आता है?’ बालक ने कहा, ‘महाराज मैं आपको एक कविता सुनाता हूं। कविता सुन राजा भाव-विभोर हो गया। राजा ने बालक की अंजुली सोने की मोहरों व रत्नों से भर दी।’ बालक जब यह भेंट लेकर घर पहुंचा और पिता के चरणों में रख दी। पिता को तभी दाई को दिया वचन याद आया और उसने बेटे को कहा कि इस पर हमारा स्वामित्व नहीं है। पिता-पुत्र दोनों दाई के घर पहुंचे। उसे अपना वचन स्मरण करा वह धन दाई को दे दिया। दाई उस ब्राह्मण की उदार भावना से इतनी पुलकित हुई कि उनके मन में शुभ संकल्प जाग उठा। दाई ने उस धन को जन कल्याण हेतु एक तालाब बनाने में उपयोग कर दिया। दरभंगा में बना यह तालाब आज भी ‘दाई मां का तालाब’ नाम से प्रसिद्ध है। प्रस्तुति : सतपाल