For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

आर्सेनिक की अधिकता से जीवन पर संकट

04:00 AM Dec 31, 2024 IST
आर्सेनिक की अधिकता से जीवन पर संकट
Advertisement

आर्सेनिक से दूध भी अछूता नहीं है। चूंकि आर्सेनिक युक्त भूजल का उपयोग सिंचाई कार्यों में भी होता है, इसलिए अकार्बनिक तत्व पौधों के शरीर में पहुंचकर जड़ों, तनों और पत्तियों के माध्यम से आगे बढ़ते हैं। जिसके स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव होते हैं।

Advertisement

ज्ञानेन्द्र रावत

देश के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। आज देश के 25 राज्यों के लगभग 230 जिले भूजल में बढ़ती आर्सेनिक समस्या से पीड़ित हैं। दुनिया भर में देखें तो लगभग 50 करोड़ लोग भूजल में आर्सेनिक की समस्या से जूझ रहे हैं। इससे पिगमेंटेशन, हाइपरकेराटोसिस, अल्सरेशन, त्वचा कैंसर, किडनी कैंसर, फेफड़ों का कैंसर के अलावा अब हृदय, लीवर, त्वचा के रंग में परिवर्तन, हथेलियों और तलवों पर सख्त धब्बे, पैरों की रक्तवाहिकाओं और मूत्राशय संबंधी बीमारियां हो रही हैं। वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक युक्त दूषित पानी पीने से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और प्रजनन संबंधी बीमारियों की आशंका भी जताई है।
देश में कोलकाता का नाम आर्सेनिक से प्रदूषित शहरों में शीर्ष पर है। इस समय, देश के 27 राज्यों के 469 जिले फ्लोराइड से संदूषित हैं। भारत में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा स्वीकार्य सीमा से काफी अधिक है, जिससे पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, असम, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। भारत में आर्सेनिक से प्रभावित लोगों की संख्या 5 करोड़ से अधिक है।
आज असलियत में गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र के मैदान का उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश सहित देश के पूर्वोत्तर के राज्य का भूजल आर्सेनिक से दूषित है। बांग्लादेश, भूजल में सर्वाधिक आर्सेनिक प्रदूषित देशों की सूची में शीर्ष पर है।
दरअसल, भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी मुख्यतः 100 मीटर गहराई तक के जल में बनी रहती है। इससे गहरा जल आर्सेनिक से मुक्त रहता है लेकिन सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग 100 मीटर तक के जल का होता है, इसलिए इसमें ही आर्सेनिक का प्रभाव सबसे ज्यादा रहता है। आर्सेनिक से दूध भी अछूता नहीं है। चूंकि आर्सेनिक युक्त भूजल का उपयोग सिंचाई कार्यों में भी होता है, इसलिए अकार्बनिक तत्व पौधों के शरीर में पहुंचकर जड़ों, तनों और पत्तियों के माध्यम से आगे बढ़ते हैं। और अंत में अनाज और सब्जियों में जाकर जमा हो जाते हैं। दरअसल, पानी में घुलनशील अकार्बनिक आर्सेनिक बहुत ही ज़हरीला होता है। इसके सेवन से जठरांत्र रोग सम्बन्धी लक्षण से मृत्यु तक हो जाती है। गौरतलब है कि चट्टानों और खनिजों के अपक्षय के दौरान आर्सेनिक मिट्टी और भूजल में प्रवेश करता है। यह मानवजनित स्रोतों से मिट्टी और भूजल में प्रवेश करता है। यह पर्यावरण के लिए भी खतरा है। क्योंकि आर्सेनिक उच्च तापमान प्रक्रियाओं जैसे कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों, वनस्पतियों को जलाने और ज्वालामुखी विस्फोट द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित होता है। पानी में विशेष रूप से भूजल में, जहां सल्फाइड खनिज जमा होते हैं और ज्वालामुखीय चट्टानों से निकलने वाली तलछट जमा होती है, आर्सेनिक की सांद्रता काफी बढ़ जाती है।
दुनियाभर के जलस्तर में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा के चलते कैंसर के रोगियों की तादाद में बढ़ोतरी हो रही है। दुनिया में 2011 और 2019 के दौरान हर साल औसतन आर्सेनिक से हो रहे कैंसर के मामलों में 11.2 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। वहीं आर्सेनिक युक्त पानी पीने से किडनी के कैंसर के रोगियों की तादाद में 6 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इसे सातवां सबसे आम कैंसर माना गया है। अमेरिका के टेक्सास स्थित ए एण्ड एम यूनिवर्सिटी स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ के वैज्ञानिकों के अनुसार आर्सेनिक युक्त पानी से किडनी के कैंसर का खतरा दो गुना हो जाता है। शोध में खुलासा हुआ है कि जिन क्षेत्रों में बसी आबादी जलाशयों, कुएं या फिर नदियों पर निर्भर हैं, वहां कैंसर का जोखिम 22 फीसदी अधिक पाया गया है। इससे किडनी या फेफड़े के कैंसर की संभावना बलवती हो जाती है। समूची दुनिया में 40 मिलियन से अधिक लोग पीने के पानी के लिए टैंकर या हैंडपंप के पानी पर निर्भर हैं। इससे आर्सेनिक के संपर्क में आने की प्रबल संभावना रहती है।
वास्तव में, आर्सेनिक प्राकृतिक रासायनिक तत्व है। इसे ज़हरीली धातु माना जाता है। पानी से आर्सेनिक हटाने की दिशा में इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों में सोखना, आसवन और आयन एक्सचेंज में रिवर्स आस्मोसिस यानी आरओ जल निष्पादन प्रणाली सबसे बेहतर है। इससे आर्सेनिक जैसे घुले प्रदूषक हटा दिये जाते हैं। हानिकारक आर्सेनिक से पानी को मुक्त करके पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है। यह प्रणाली पानी को अर्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से साफ करने हेतु दबाव का काम करती है। आर्सेनिक से दूषित भूजल का जैविक उपचार आर्सेनिक को बायोमास में अवशोषित करके या बायोजेनिक हाइड्रोक्साइड या सल्फ़ाइड के साथ सह अवक्षेपण करके किया जा सकता है। वैसे सरकार द्वारा भूजल में आर्सेनिक की अधिकता से उत्पन्न खतरे से निपटने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं और जल उपचार संयंत्रों के विकास का वादा भी कर रही है। लेकिन इसकी समुचित निगरानी की व्यवस्था न हो पाने के कारण यह योजना कामयाबी से कोसों दूर है।

Advertisement

लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं।

Advertisement
Advertisement