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अभियोगों और महाभियोगों का ज़माना

04:00 AM Dec 21, 2024 IST

सहीराम

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लगता है जी आयोगों का वह जमाना चला गया, जब हर मामले में आयोग बनाने की मांग उठ जाती थी और आयोग बन भी जाते थे। फिर कई-कई साल तक उनके कार्यकाल बढ़ते रहे थे। बुड्ढे लोग कामना करते थे कि ऐसे ही अगर आयु बढ़ जाए तो कितना अच्छा हो। नौकरीपेशा लोग, अफसर लोग कामना करते थे कि ऐसे ही अगर उनका कार्यकाल बढ़ जाए तो कितना अच्छा हो। लेकिन, ऐसी कोई कामना पूरी नहीं होती थी। फिर कई-कई बरस तक उनकी रिपोर्टें सार्वजनिक करने और कई-कई बरस उनकी सिफारिशों को लागू करने की मांग चलती रहती थी। इस तरह कई बार तो यह जन्म-जन्मांतर टाइप का प्रोजेक्ट बन जाता था।
अब वह जमाना चला गया। लगता है अब तो अभियोगों और महाभियोगों का जमाना आ लिया है। लेकिन अभियोग तो लगते ही रहते हैं। अदालतें आखिर हैं किसलिए। बस इधर खास बात यही हुई है कि अडाणी जी पर अभियोग तय हो गए और वो भी अमेरिका की अदालत में। अगर एक उक्ति में कुछ बदलाव कर यूं कहा जाए तो कैसा रहे कि हमें तो गैरों ने लूटा, अपनों में कहां दम था। यह तो अमेरिका ने अभियोग तय कर दिए, वो भी भ्रष्टाचार के वरना भारत में कहां दम था।
खैर, जो भी हो, इधर अडाणी जी पर अभियोग तय हुए और उधर दक्षिण कोरिया से लेकर जर्मनी तक महाभियोगों का हल्ला कट गया। मतलब तानाशाहों के देश छोड़-छोड़कर भागने के बाद दुनिया का यह दूसरे नंबर का चर्चित हल्ला है। दक्षिण कोरिया में एक दिन राष्ट्रपति महोदय को अचानक इल्हाम हुआ और उन्होंने देश में मार्शल ला लगा दिया। सब हक्के-बक्के। लेकिन फिर इस झटके से उबरे तो राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना तय हुआ। लेकिन उनके खिलाफ महाभियोग का कुछ परिणाम निकलता उससे पहले ही जर्मनी के चांसलर-जो कि राष्ट्रपति टाइप का ही होता है-की नौकरी माने कुर्सी चल गयी। अब चली गयी तो चली गयी साहब, उससे हमें क्या लेना।
बस चिंता की बात यही है जी कि महाभियोगों का यह सिलसिला अपने यहां भी शुरू हो गया। विपक्ष ने उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़जी के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दे दिया था। उनकी नाराजगी यह है कि धनखड़ किसी को बोलने ही नहीं देते। कोई भी बोलना शुरू करता है कि वे उसे रोक कर खुद बोलने लगते हैं। कहते हैं कि पिचहत्तर साल के आजादी के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है। और यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर वे जज साहब भी इसके लपेटे में आ गए, जो यह कहकर देश को हिंदू राष्ट्र बनाने निकल पड़े थे कि देश तो बहुसंख्यकों के हिसाब से ही चलेगा!

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