अपने ही अंडों को चट करने वाली जेब्रा मछली
के.पी. सिंह
जेब्रा मछली ताजे पानी की एक सर्वाधिक एक्वेरियम की लोकप्रिय मछली है। यह पूर्वी भारत और पश्चिमी बंगाल की कई नदियों और तालाबों में पायी जाती है, जहां जलीय पौधे हों। यह दिन के समय पानी के पौधों के पास झुंड बनाकर तैरती रहती है और रात के समय भोजन करती है। जेब्रा मछली का शरीर दुबला-पतला और दबा हुआ होता है। मुंह के पास मूंछों के दो जोड़े होते हैं। इसकी लंबाई 3 सेंटीमीटर से लेकर 5 सेंटीमीटर तक होती है, किंतु कभी-कभी 6 सेंटीमीटर लंबी जेब्रा मछली भी देखने को मिल जाती है। जेब्रा मछली के शरीर पर गलफड़ों से लेकर पूंछ के आधार तक चार सुनहरी रेखाएं होती हैं। इन्हीं सुनहरी रेखाओं के कारण इसे जेब्रा मछली कहा जाता है। जेब्रा मछली की पीठ का मीन पंख नीला होता है, इसका आधार पीला होता है तथा सिरा सफेद होता है।
जेब्रा मछली पूरी तरह मांसाहारी मछली है। यह सामान्य मछलियों की तुलना में ज्यादा पेटू होती है। जिस जीव को यह निगल पाती है, उसे ही अपना आहार बना लेती है। यह अपनी जाति की छोटी मछलियों को तो नहीं खाती, लेकिन अपने अंडों को ही अपना आहार बना लेती है। इसलिए एक्वेरियम में इसके प्रजनन के समय विशेष रूप से सावधान रहना पड़ता है।
जेब्रा मछली में बाह्य समागम और बाह्य निषेचन पाया जाता है। नर और मादा दोनों बाहर से एक जैसे दिखते हैं। हां, प्रजनन काल में मादा जेब्रा पहले से अधिक मोटी, फूली हुई और मांसल दिखाई देती है, इसी से इसे पहचाना जा सकता है। नर समागम के लिए मादा की तलाश में घूमता रहता है। समागम की इच्छुक मादा मिल जाने पर दोनों मिलकर पानी में तैरते हैं और फिर जलीय पौधों के बीच आकर एक विशेष प्रकार की स्थिति बना लेते हैं। इसी समय मादा जेब्रा मछली अंडे देती है तथा नर उन अंडों पर अपने शुक्राणु छिड़ककर निषेचित करता जाता है। मछली के अंडों में तेल की बूंद नहीं होती, ये भारी होते हैं, वे पानी के तल पर आ जाते हैं किंतु जैसे ही जेब्रा मछली का अंडा पानी में डूबने वाला होता है, वैसे ही नर और मादा दोनों उस पर झपटते हैं और उसे खाने की कोशिश करते हैं। उस समय यदि अंडा तल तक पहुंच जाता है तो बच जाता है।
एक्वेरियम में इसके अंडों को बचाने के लिए उसे ऐसे एक्वेरियम में रखा जाता है जिसका तल बहुत कम नीचा हो तथा तल पर कंकड़ पत्थर पड़े हों। अंडा देते ही उथले तल में अंडे तुरंत नीचे पहुंच जाते हैं और बच जाते हैं। कंकड पत्थर में जाकर यदि नर मादा अपने अंडे खाने की कोशिश करें तो उनकी पोजीशन ऐसी होनी चाहिए कि दोनो उसमें फंस जाएं। अंडों की सुरक्षा के लिए नॉयलोन की डोरियां या धातु का जाल भी उपयोग में लाया जाता है।
मादा जेब्रा मछली एक बार में लगभग 200 अंडे देती है। प्राकृतिक अवस्था में यह अपने आधे से अधिक अंडे चट कर जाती है, किंतु एक्वेरियम में इसके काफी अंडे सुरक्षित बच जाते हैं। जेब्रा मछली के अंडे दो दिन तक तल में पड़े रहते हैं। ये तीसरे दिन परिपक्व होकर फूटते हैं और इनसे छोटे-छोटे बच्चे निकल आते हैं। जेब्रा मछली के नवजात बच्चे बड़े असहाय से होते हैं और अगले दो दिनों तक तल में सुस्त पड़े रहते हैं। ये दो दिन बाद तैरना आरंभ कर देते हैं तथा प्लैंकटन के अति सूक्ष्म जीव खाने लगते हैं। इनका विकास बड़ी तेजी से होता है तथा एक वर्ष में ही ये वयस्क अर्थात् प्रजनन के योग्य हो जाते हैं। जेब्रा मछली की आयु बहुत कम होती है। यह दो वर्षों में ही वृद्ध हो जाती है तथा तीन वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते प्रायः मर ही जाती है। इ.रि.सें.