जीत के लिए महत्वपूर्ण युवा और महिला मतदाता
उमेश चतुर्वेदी
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दलों का सियासी जोड़-घटाव में जुटना स्वाभाविक है। लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़ों पर भरोसा करें तो इन चुनावों में सबसे अहम भूमिका युवा मतदाताओं की होने जा रही है। माना जा रहा है कि जिन्होंने युवाओं को साध लिया, जीत उसके हाथ लगने की संभावना ज्यादा है। इसकी वजह है, इन राज्यों में नए वोटर बने कुल मतदाताओं की संख्या। पांचों राज्यों में करीब साठ लाख वोटर पहली बार मतदान करने वाले हैं। जाहिर है कि उनमें पहली बार वोट डालने का उत्साह है और वे अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग भी पूरे उत्साह से करेंगे।
चुनाव वाले इन राज्यों में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य मध्य प्रदेश है। यहां सर्वाधिक 22 लाख 36 हजार नए वोटर बने हैं व 230 विधानसभा सीटें हैं। औसतन हर सीट पर करीब 9722 नए वोटर होंगे। लेकिन प्रति सीट नए वोटर के लिहाज से राजस्थान की स्थिति मध्य प्रदेश से बेहतर है। राजस्थान विधानसभा चुनावों में पहली बार करीब 22 लाख चार हजार वोटर वोट डालने जा रहे हैं। राज्य की 200 विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो हर सीट पर करीब 11020 नए वोटर होंगे। इसी तरह छत्तीसगढ़ में सात लाख तेईस हजार नए वोटर बने हैं जिनका प्रति सीट औसत आठ हजार तैंतीस है।
नए वोटरों के रुझान और उसके सियासी प्रभावों से पहले तीनों राज्यों में महिला वोटरों की संख्या पर ध्यान दिया जाना चाहिए। वजह यह कि पिछले कुछ चुनावों से महिलाओं के मतदान का रुझान अपने परिवारों से कुछ अलग नजर आया है। पहले माना जाता रहा कि परिवार के पुरुष मुखिया के वैचारिक रुझान के हिसाब से ही महिलाएं भी वोट देती रही हैं। लेकिन अब महिलाएं अपनी पसंद से वोट डालने लगी हैं। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत के पीछे महिलाओं और युवा वोटरों का साथ माना गया था।
छत्तीसगढ़ में पुरुष वोटरों की तुलना में महिला वोटरों की संख्या ज्यादा है। यहां एक करोड़ एक लाख पुरुष वोटरों की तुलना में महिला वोटरों की संख्या एक करोड़ दो लाख है। जाहिर है, हर सीट पर करीब 1111 महिला वोटर पुरुष वोटरों की निस्बत ज्यादा हैं। हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में ऐसी स्थिति नहीं है। राजस्थान में दो करोड़ 74 लाख वोटरों के सामने करीब दो करोड़ 52 लाख ही महिला वोटर हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश के दो करोड़ 88 लाख पुरुष वोटरों के अनुपात में महिला वोटरों की संख्या दो करोड़ 72 लाख ही है।
इन आंकड़ों पर फौरी निगाह डालने की जरूरत विगत के मतदान में युवा और महिला वोटरों की भागीदारी के रुझान के चलते है। दोनों वर्गों के मतदाताओं ने जिसे चाहा, जीत उसे ही हासिल हुई। विगत के हिमाचल चुनावों में महिलाओं ने कांग्रेस को ज्यादा समर्थन दिया, जिसकी वजह से कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले कुल 36 हजार से कुछ ज्यादा मत मिले और वह जीतने में कामयाब रही। कुछ ऐसी ही स्थिति कर्नाटक में भी रही। वहां के स्थानीय मुद्दों खासकर पांच गारंटी और महंगाई ने महिलाओं और युवाओं को ज्यादा लुभाया। इस लिहाज से , राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी महिला और युवा वोटर बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। शायद यही वजह कि तीनों राज्यों के दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दलों की कोशिश महिलाओं व युवाओं को रिझाने की है। महिला सम्मान निधि और युवाओं को बेरोजगारी भत्ता आदि देने के जो दनादन वायदे किये जाते रहे, उसकी वजह यही रही।
साल 1989 के चुनावों के पहले तत्कालीन राजीव सरकार ने युवाओं के मतदान के लिए उम्र सीमा को 21 से घटाकर 18 साल कर दिया था। राजीव को उम्मीद थी कि उन्हें युवाओं का साथ मिलेगा। साल 2014 के ठीक पहले सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के पीछे तत्कालीन कांग्रेस सरकार की सोच सचिन को सम्मानित करने के साथ ही इसके जरिये युवाओं में पैठ बनाने की थी। हालांकि दोनों ही बार कांग्रेस का दांव नाकाम रहा। चुनावी पंडित मानते हैं कि राजीव की हार में नए बने करोड़ों वोटरों ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
हाल के वर्षों में महिलाओं ने जिस तरह खुलकर अपनी पसंद के हिसाब से मतदान करना शुरू किया है, वह छुपा नहीं है। साल 2020 के बिहार विस चुनावों में विपरीत हालात के बाद नीतीश को जीत मिली, उसकी बड़ी वजह महिलाओं का समर्थन रहा। इसी तरह 2022 के उत्तर प्रदेश विस चुनावों में योगी सरकार को महिलाओं ने खूब समर्थन दिया। पश्चिम बंगाल में ममता के साथ महिला वोटर पूरे दम से खड़ी रहीं। इन चुनावों के नतीजे सामने हैं। इस लिहाज से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजों का दारोमदार महिलाओं पर ही होगा। छत्तीसगढ़ में तो महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा ही हैं, इसलिए वहां तो साफ लग रहा है कि जिधर महिलाएं गईं, उसी के नेता के सिर ताज होगा। उनके वोटों में अगर युवाओं का साथ मिल गया तो उस दल के लिए वह सोने पर सुहागा ही होगा।
बहरहाल, तीनों राज्यों में चुनावी तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। ऐसे में तीनों राज्यों के मैदान में सियासी छक्का लगाने के लिए उतरने वाले दल अपने-अपने हिसाब से महिलाओं और युवाओं को लुभाने की कोशिश करेंगे ताकि बाजी उनके ही हाथ लगे।