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आपकी डाक सुविधाओं को भी उपभोक्ता कानून का संरक्षण

09:56 AM Dec 20, 2023 IST
आपकी डाक सुविधाओं को भी उपभोक्ता कानून का संरक्षण
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श्रीगोपाल नारसन
डाक विभाग की सेवाएं भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के दायरे में आती हैं। उपभोक्ता की डाक का समय से गन्तव्य तक न पहुंचना, बचत या सावधि खाते में किसी अनियमितता का होना या फिर अन्य कोई निर्धारित मूल्य अदा करके ली गई सेवा में कोई कमी या लापरवाही पाया जाना आदि मामलों में प्रभावित उपभोक्ता न्याय के लिए उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटा सकता है। अगर किसी ने स्पीड पोस्ट से या फिर पंजीकृत डाक से कोई पत्र या कागजात भेजे हैं अथवा कोई पार्सल किया है और वह रास्ते में गुम हो जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है या फिर देरी से पहुंचता है तो इसके लिए वाजिब राहत प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उक्त सेवाएं लेने वाले को एक उपभोक्ता माना जाएगा।
सेवा के लिए शुल्क भुगतान
भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 की धारा 6 के आधार पर भी डाक विभाग अपने दायित्व से बच नहीं सकता। उपभोक्ता राज्य आयोग ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के विधिक निर्णयों के आधार पर, स्पीड पोस्ट के गन्तव्य तक पहुंचने में हुई 19 दिनों की देरी के लिए डाक विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। डॉ. रवि अग्रवाल बनाम स्पीड पोस्ट, राजस्थान यूनिवर्सिटी, 2019 में भी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा इसी तरह का विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया था। कोई व्यक्ति जिसने स्पीड पोस्ट भेजी है, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत इसलिए आता है क्योंकि उसने इसके लिए शुल्क का भुगतान किया था।
स्पीड पोस्ट में देरी को लेकर जवाब
एक उपभोक्ता ने एमएससी में अपने प्रवेश के लिए आवेदन पत्र दिनांक 22 जून, 2012 को स्पीड पोस्ट के माध्यम से, जेएनयू, दिल्ली से भेजा था,उक्त पोस्ट को 27 जून, 2012 तक यूक्रेन तक पहुंचना था। डाक विभाग की लापरवाही के कारण, स्पीड पोस्ट पहुंचने में 19 दिनों की देरी हुई, और इसके परिणामस्वरूप, उसने उच्च पाठ्यक्रम में प्रवेश का अवसर खो दिया। उसने देरी का कारण जानने की कोशिश की, लेकिन डाक विभाग ने कोई कारण नहीं बताया। इसके विपरीत, डाक विभाग ने तर्क दिया कि वह भारतीय डाकघर एक्ट की धारा 6 के आधार पर डाक द्वारा प्रसारण के दौरान किसी भी डाक वस्तु के नुकसान, देरी, क्षति या गलत वितरण के लिए किसी भी दायित्व से मुक्त है।
मामले और विवाद पर गौर करते हुए, राज्य आयोग ने एनसीडीआरसी द्वारा तय किए गए मामलों पर भरोसा किया, जिसमें राष्ट्रीय आयोग ने स्पष्ट रूप से माना था कि स्पीड पोस्ट एंटरप्राइजेज उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में निर्दिष्ट ग्राहक है और डाक विभाग अपने दायित्व से बच नहीं रहा है। पूर्वोक्त दस्तावेज़ और उदाहरणों पर पोर्टफोलियो के साथ, राज्य आयोग को जिला आयोग द्वारा जारी आदेश में कोई कमी नहीं मिली।
लापरवाही को लेकर शिकायत
इसी प्रकार के अन्य मामले में अभ्यर्थी ने डाक विभाग के कर्मियों के अलावा बेगूसराय के जिलाधिकारी से शिकायत की, जिलाधिकारी ने उक्त मामले में डाक विभाग से स्पष्टीकरण मांगा है। बेगूसराय के बरौनी मिर्जापुर चांद निवासी मिथुन कुमार पोद्दार का आरोप है कि डाक विभाग की लापरवाही की वजह से उनकी एक साल की मेहनत बेकार हो गई। 19 मार्च 2023 को उन्हें यूको बैंक की तरफ से आयोजित सहायक की परीक्षा में शामिल होना था, जिसके लिए विभाग की तरफ से एक मार्च को ही एडमिट कार्ड जारी कर दिया गया, लेकिन डाक विभाग के कर्मियों की लापरवाही की वजह से उन्हें इस परीक्षा का एडमिट कार्ड 5 अप्रैल को दिया गया। इस मामले में पीड़ित पक्ष उपभोक्ता आयोग में उक्त बाबत शिकायत दर्ज करा सकता है।
डॉक्यूमेंट फेंकने के मामले की जांच
इसी प्रकार सुल्तानपुर जिले में डाक विभाग के कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में आधार कार्डों को आवंटित करने के बजाय कूड़े में फेंक दिया। मामले की जानकारी होने पर सहायक डाक अधीक्षक ने जांच कराने की बात कही है। बिहार के मधुबनी जिले से भी डाक विभाग की भारी लापरवाही के कारण कई आधार कार्ड नदीं में तैरते हुए मिले हैं। सभी आधार कार्ड आसपास के ग्रामीणों के हैं। मौके पर पहुंची स्थानीय पुलिस की देखरेख में करीब 800 आधार कार्ड नदी से निकाले गए हैं।
डाक टिकट जारी करने में लापरवाही
ऐसे ही मामले के तहत कानपुर क्षेत्र के प्रधान डाकघर ने अंतर्राष्ट्रीय डॉन छोटा राजन और यूपी के कुख्यात मुजरिम मुन्ना बजरंगी का डाक टिकट जारी कर दिया। यह टिकट ‘माइ स्टाम्प’ स्कीम के तहत जारी किया गया। दोनों के नाम से जारी इन डाक टिकटों के पहले उनके बारे में कोई जानकारी नहीं जुटाई गई और न ही फोटो मैच किया गया। इसके लिए 600 रुपये की फीस भी ली गई है,जबकि पोस्ट मास्टर ने डाक टिकट जारी कराने के लिए व्यक्ति को खुद आना पड़ता है। वेबकैम के सामने फोटो खिंचवाई जाती है। इन मामलों में प्रभावित व्यक्ति या फिर कोई पंजीकृत संस्था उपभोक्ता आयोग जा सकती है और इस तरह की पुनरावृत्ति पर रोक लग सकती है।

लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के
वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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