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07:55 AM Jun 21, 2024 IST

विमर्श की तार्किकता

बीस जून के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित लेख ‘विनम्रता का पाठ भी तो पढ़ें सत्ताधीश’ में लेखक ने यूं तो भारतीय राजनीति में विमर्श के स्तर पर आई गिरावट का अच्छा चित्र खींचा है लेकिन वे अपना निष्कर्ष निकालने में एक तरफ़ा हो गये हैं। पूरे लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही निशाना बनाया गया है जबकि चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में किसी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेखक ने दुश्मन और प्रतिपक्षी के अंतर को समझने की बहुत महत्वपूर्ण बात उठाई है। लेकिन यह काम क्या किसी एक नेता के लिए अनिवार्य होता है। वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने विपक्ष के तमाम उपलब्ध नेताओं को जेल में बंद करवा दिया था मानो वो सब श्रीमती इंदिरा गांधी के दुश्मन हों। शासक को विनम्रता का पाठ याद दिलाते वक्त आपातकाल में निर्दोष लोगों की जबरन नसबंदी करवाने वालों और अखबारों पर सेंसरशिप लगा देने वालों का जिक्र भी लेखक कर देते तो लेख संतुलित हो जाता।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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​सावधानी की हो यात्रा

संपादकीय ‘हादसों की यात्रा’ में उल्लेख है कि पहाड़ी क्षेत्र में हो रही दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण चालकों को रास्तों का ज्ञान नहीं, निजी वाहनों की बढ़ती संख्या, भीषण गर्मी और अयोग्य और कुशल चालकों का अभाव है। पहाड़ी क्षेत्र में चालकों के लिए हिल एंडोर्समेंट की अर्हता अनिवार्य हो। वाहन का फिटनेस और चालक का फिजिकल टेस्ट भी जरूरी है तथा जाम लगे मार्ग में वाहन चालक और यात्री धैर्य बरतें।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन

श्रमिकों की दुर्दशा

बारह जून की सुबह कुवैत में एक छह मंजिला इमारत में आग लग गई थी। आग में 45 भारतीयों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए। मौतें धुएं से दम घुटने के कारण हुई। देखा जा सकता है कि कुवैत सरकार श्रमिकों की सुरक्षा के साथ किस तरह खिलवाड़ कर रही है। पुरानी बिल्डिंग की कई मंजिलों के एक-एक कमरे में 7-8 लोग रह रहे थे।
सौरभ बूरा, जीजेयू, हिसार

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