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तीसरी पारी की चुनौती
सत्रह जून के दैनिक ट्रिब्यून में जी. पार्थसारथी का ‘तीसरी पारी में मोदी के समक्ष वैश्विक चुनौतियां’ लेख चर्चा करने वाला था। अमेरिका को बात समझ में आ गई है कि चीन के बढ़ते प्रभाव को केवल भारत ही रोक सकता है। यूएई, सऊदी अरब सहित अधिकांश देश भारत से संबंध सुधारने में दिलचस्पी रखते हैं। बेशक पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री, नवाज़ शरीफ़ ने भारत के साथ संबंध सुधारने की इच्छा व्यक्त की है लेकिन सेनाध्यक्ष, मुनीर खान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने पर उतारू हैं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
युद्ध की विभीषिका
हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में संपन्न हुआ शांति सम्मेलन भी रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने का कोई रास्ता नहीं खोज पाया। यह सम्मेलन भी बिना किसी समाधान के संपन्न हो गया। संयुक्त बयान पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं करके अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को दर्शाया है। रूस-यूक्रेन युद्ध को दो वर्ष होने को आए और किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह युद्ध इतना लंबा खिंचेगा और यूक्रेन रूस जैसी महाशक्ति के सामने इतने समय तक टिक पाएगा। उधर इस्राइल हमास युद्ध भी जारी है। इन युद्धों से यह तय हो गया है कि परमाणु संपन्न राष्ट्र कभी-भी पूरी दुनिया को तबाह कर सकते हैं।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
पुनर्विचार करे सरकार
अठारह जून को दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर रक्षा विशेषज्ञ सी. उदय भास्कर का ‘महज सियासी मजबूरी से न हो अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार’ सराहनीय था। देश के ग्रामीण इलाकों में इस योजना का जमकर विरोध हो रहा है। इस योजना ने ‘जय जवान, जय किसान’ नारे पर कुठाराघात किया है। किसान, मजदूर और गरीब वर्ग ही सेना को चुनता है। अग्निवीर योजना ने इस वर्ग को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। इस योजना पर पुनर्विचार होना आवश्यक है।
सुरेन्द्र सिंह, महम