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अपने से बप्पा

08:28 AM Sep 05, 2021 IST

मोनिका शर्मा

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बप्पा यानी कोई अपना सा। इस संकट में भी इसी अपनेपन को पोषित करने वाले प्रथम पूज्य गणेश घर-घर विराजेंगे। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए गणेश उत्सव सार्वजनिक स्तर पर तो धूमधाम से अभी भी नहीं हो रहा, पर अपने घर-आंगन में श्री गणेश का पूजन-अर्चन करने को लेकर लोग खूब उत्साहित हैं। जैसा कि हर बरस ही होता है। हों भी क्यों नहीं? गजानन ईश्वर हैं पर औपचारिकताओं से परे हैं। वे तो यूं भी घर के सदस्य के समान ही हर बार अपना आशीष देने पधारते हैं। इस तकलीफदेह दौर में गणपति स्थापना की उत्सवीय रौनक और मायने रखती है। साथ ही इस आपदा के समय खुशहाल जिंदगी से जुड़ी उनकी हर सीख को भी समझने की दरकार है।

अपनों की मुस्कुराहटों का उत्सव

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हर बार यह उत्सव खुशियों की सौगात साथ लाता है। कंक्रीट के जंगल बन चुके शहरों में भी मेलजोल का माहौल बन जाता है। बप्पा के पूजन-दर्शन के लिए आस-पड़ोस में न्योते भेजे जाते हैं। आपाधापी के बीच भी लोग इस मेल-मिलाप के लिए समय निकाल ही लेते हैं। पर कोरोना संकट के इस समय में यह त्योहार घर के लोगों के साथ ही मनाये जाने की स्थितियां बनी हुई हैं। तो क्यों न परिवारजनों के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए इस पर्व पर अपनेपन की और रौनक बिखेरी जाये। यूं भी बप्पा की ओर देखना ही चेहरे पर मुस्कुराहट ले आना है। अपनी उलझनें भूल जाने जैसा है। यही वजह है कि बच्चे हों या बड़े, सबके लिए वे अपने से हैं। जैसे सहजता के साथ स्नेह और आनंद बांटता कोई साथी। उनके हाथ में मोदक का होना भी इसी का प्रतीक है। मोदक में ‘मोद’ यानी आनंद और ‘क’ का अर्थ है छोटा-सा भाग। इसीलिए मोदक का मतलब ही है, आनंद का छोटा-सा भाग। जिसका अर्थ यह है कि जीवन में आनंद का एक पल भी अनमोल है। हर पल को जीने की यह अनुभूति ही तन-मन को तनाव और अवसाद से परे रखती है।

सादगीपूर्ण जीवन चुनें

कोरोना संकट के कारण गणेश उत्सव सादगी से मनाया जाएगा। पर सच तो यह है कि बप्पा सादगीपूर्ण जीवन की ही सीख देते हैं। मूषक जैसा छोटा वाहन रखने वाले गणपति बताते हैं कि इंसान को अपनी इच्छाओं और भावनाओं को काबू में रखना चाहिए। दिखावे की संस्कृति के जाल में न फंसकर जिंदगी सहज और सरल ढंग से बितानी चाहिए। आज के समय में अधिकतर लोग तनाव और अवसाद का शिकार केवल इसलिए हैं कि वे इस दिखावे के जाल में उलझ गए हैं। जबकि मन के भार को कम करने के लिए जरूरी है कि हम इच्छाओं की सीमा को समझें। अपने जीवन में बनावटी भाव को कभी न आने दें। दिखावे की सोच इंसान को जरूरी-गैर जरूरी चीजें जुटाने के फेर में उलझा देती है। तन से ही नहीं, मन से भी बीमार बना देती है। कोरोना संकट में हमें कम से कम संसाधनों में भी अपने जीवन को संभाल लेने की सीख मिली है। इस आपदा ने जीवन के प्रति हमारा नजरिया बदला है। हमें हमारी सीमाओं का भान करवाया है। जरूरतों और चाहतों में फर्क करना सिखाया है। इसीलिए सादगीपूर्ण जीवन जीने की बप्पा की सीख आज के समय में वाकई हमारे जीवन में संतुलन लाने का काम कर सकती है।

सजगता और समझ का पाठ

आम भाषा में गणेश का अर्थ होता है ‘आत्म बोध’। यानी स्वयं को जानने का भाव। गणेश का एक अर्थ ‘गणों का समूह’ भी है। दुनियावी मायनों को आधार बनाकर समझा जाए तो ‘गणों’ का अर्थ होता है विभिन्न प्रकार के गुण और ऊर्जा। यानी जो ‘स्व’ के ज्ञान और ऊर्जा के साथ जीवन की बाधाओं को पार करते हुए जीता है, वह गणेश है। यही हम सबके लिए भी मन-जीवन को थामने और साधने का सही मार्ग है। इस आपदा के समय तो यही भाव जीवन को सहेजने के काम आएगा। गणपति बुद्धि और विवेक के देवता हैं। उनसे मिला सजगता का पाठ इस वक्त बहुत अहमियत रखता है।

मन के जुड़ाव समझें

बप्पा विघ्नहर्ता हैं। उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना निराला है, आंतरिक गुण भी उतने ही अनूठे हैं। श्री गणेश लंबे कानों वाले हैं। जिसका एक अर्थ है कि हमें दूसरों की बात धैर्य से सुननी चाहिए। सचमुच, इस मुश्किल भरे समय में किसी का सम्बल बनना, संवेदना भरा व्यवहार करना और मन की सुनने से अच्छा क्या हो सकता है? यूं भी मन से किसी की सुनने समझने की यह सीख परिवार और परिवेश दोनों के लिए जरूरी है। जैसे गणेश उत्सव परिवार और समाज को जोड़ने वाला पर्व है, वैसे ही यह मन के जुड़ाव को दर्शाने वाला मानवीय गुण है। इसीलिए इस पर्व पर हम दिल के अहसासों को समझने का पाठ पढ़ें। साथ रहने और साथ देने के सही मायने समझें। यह सीख इस स्वास्थ्य संकट से जूझने में ही नहीं, जिंदगी भर रिश्तों को सहेजने के काम आएगी।

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