जापान में 13 नवंबर को मिलेगा यंग रिसर्चर अवार्ड
यशपाल कपूर/निस
सोलन, 17 अक्तूबर
डॉ. पंकज अत्री ने इस मिथक को तोड़ा है कि हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की कठिन भौगोलिक एवं शैक्षणिक परिस्थितियों के बावजूद कोई रिसर्च/टीचिंग जैसे मुश्किल पेशे में भी जा सकता है। सिरमौर जिले की पच्छाद तहसील के नैनाटिक्कर के समीप मछाड़ी गांव के डॉ. पंकज अत्री ने आने वाले समय की सुखद आहटों का आभास कर लिया था और यह साबित कर दिया कि परिश्रम व लग्न के आगे कोई भी कठिनाई नहीं टिकती है।
क्यों आए डॉ. अत्री चर्चा में : डॉ. पंकज अत्री वर्ल्ड साइंटिस्ट में एक जाना पहचाना नाम है। चार बार वह वर्ल्ड के टॉप दो फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में आ चुके हैं। वर्ष 2017, 2020 से 2023 तक लगातार तीन वर्षों से वह इस सूची में हैं। डॉ. अत्री का चयन 13 नवंबर, 2023 को एएपीपीएस-डीपीपी यंग रिसर्चर अवार्ड (अंडर-40) के लिए हुआ है। डिविजन ऑफ एप्लाइड प्लाज्मा फिजिक्स में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। इसकी हाल ही में घोषणा की गई है। इससे पिता जगदीश शर्मा, छोटे भाई अंकित अत्री और बहन निताशा अत्री खुश। अब तक डॉ. पकंज के 107 पब्लिकेशन, 10 बुक चैप्टर और 5 पेटेंट हैं।
जन्म और शिक्षा : डॉ. पकंज अत्री का जन्म हरियाणा के कालका में 9 मार्च, 1983 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल नाहन से हुई। जमा दो के बाद डिग्री कॉलेज नाहन बीएससी की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसएससी में प्रवेश लिया। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से वर्ष 2013 में पीएचडी की। इसके बाद उनका चयन साउथ कोरिया की कांगून यूनिवर्सिटी में सहायक प्राध्यापक के रूप में हुआ। यहां सेवाकाल के दौरान 2016 में उनका चयन जापान की प्रतिष्ठित फैलोशिप जेएसपीएस के लिए हुआ। वर्ष 2017 में उन्हें बेल्जियम की प्रतिष्ठित मैरी क्यूरी फैलोशिप फॉर यूरोपियन यूनिवर्सिटी मिली। दो साल के लिए वह बेल्जियम चले गए। उनकी शोध एप्लाइड प्लाजमा का उपयोग कैंसर की लाइलाज बीमारी में भी होता है। दो साल की फैलोशिप के बाद वह दोबारा जापान की क्यूशू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। वर्तमान में वह इसी यूविवर्सिटी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. पंकज अत्री ने बताया कि उनके कई पेटेंट हैं। एक पेटेंट पर यूरोनियन कंपनी से बातचीत चली है। उन्होंने बिना कैमिकल के फर्टिलाइजर तैयार किया है।