For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

पर्यावरण शुद्धि एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए किया यज्ञा

07:15 AM Mar 11, 2024 IST
पर्यावरण शुद्धि एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए किया यज्ञा
नरवाना में आर्य समाज में पर्यावरण शुद्धि एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए हवन-यज्ञ में मौजूद लोग। -निस
Advertisement

नरवाना, 10 मार्च (निस)
आज आर्य समाज नरवाना में पर्यावरण शुद्धि एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए यज्ञ हवन किया गया। आर्य धर्मपाल एवं यशपाल ने भजन एवं गीतों में ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना एवं महर्षि दयानंद सरस्वती ने योग दर्शन में योगाभ्यास से शरीर, मन, मस्तिष्क और आत्मा की शुद्धि एवं समृद्धि का यशोगान किया गया। आर्य समाज प्रधान चंद्रकांत आर्य ने कहा कि आलस्य, प्रमाद एवं नशा प्रवृत्ति से दूर युवा वर्ग को ब्रह्मचर्य, शौच, तप, त्याग,वैराग्य, सदाचार, स्वाध्याय,चिंतन, मननशील संयमित जीवन शैली मे वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन कर बल, बुद्धि, विद्या एवं सत्य ज्ञान विज्ञान प्राप्त करने में सदैव पुरुषार्थ संकल्प और समर्पित भाव से करना चाहिए। वर्तमान समय की वैश्विक परिस्थिति में आर्य युवा इसी जीवन शैली के आधार पर आर्य समाज के नियम और सिद्धांतों के अनुसार समाज राष्ट्र का उद्धार करने में सफल हो सकते हैं। जयपाल सिंह आर्य ने ईश्वर स्तुति,भक्ति में शक्ति आधारित प्रार्थना और उपासना में लीनता से परम कर्तव्य, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने वैदिक ज्ञान प्रमुख तीर्थ है। गंगा एवं यमुना का बहता हुआ पवित्र पानी है। यह हम सब जानते हैं। सांसारिक भोग माया के भवसागर से पार करने के लिए ज्ञान विज्ञान, ईश्वर की भक्ति और महान ऋषि मुनियों प्रेरणास्त्रोत रुपी तीर्थ हैं। वास्तव में विद्या, योग शक्ति और परमात्मा तीर्थ है। वेद विद्या ब्रह्मचर्य आश्रम रहकर ग्रहण करना विद्यास्नातक, 24, 36 और 48 वर्ष तक ब्रह्मचर्य रहते हुए वेद अध्ययन कर ग्रहस्थ आश्रम से समाज निर्माण करना व्रतस्नातक तथा विद्या, ब्रह्मचर्य जीवन परम कर्तव्य धर्मानुसार समाज निर्माण से राष्ट्र निर्माण विद्याव्रतस्नातक की उपाधि का विधान राष्ट्र में रहा है। आचार्य, माता-पिता और अतिथि दुख तारक होने से तीर्थ कहे जाते हैं। ऋषियों ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, शौच, तप त्याग, संयम, स्वाध्याय ईश्वर परणिधान और क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, मोह, लोभ, ईर्ष्या, कामवासना से रहित जीवन को भी तीर्थ माना है। परमात्मा से प्रार्थना है कि इस लोक व शरीर तथा आगामी लोक और जीवन के लिए ज्ञान विज्ञान और संपूर्णता के लिए सम्पूर्ण परोपकारी जीवन तीर्थ हो। पुरोहित मिथिलेश शास्त्री ने कहा कि जीवन में सत्य का आवरण, धन वैभव और शालीनता तथा कीर्ति सफल जीवन का आधार है। मनुष्य को सत्य ज्ञान, धन और बल का मानव और समाज कल्याण के लिए त्यागपूर्वक, परोपकार और सेवाभाव से उपयोग करना चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×