एक सिटिंग में पूरी फिल्म लिखकर उठना
रेणु खंतवाल
हाल ही में तुली अनुसंधान केंद्र द्वारा ‘विश्व का सबसे बड़ा मेला – भारत की सिनेमाई विरासत का सम्मान’ नाम से एक फोटो प्रदर्शनी दिल्ली में दर्शकों के लिए संस्था के अध्यक्ष नेविल तुली द्वारा क्यूरेट की गई। इसमें हिंदी सिनेमा की शुरुआत से लेकर अब तक की महत्वपूर्ण फिल्मों के पोस्टर और फिल्मों के ऑनस्क्रीन व ऑफ स्क्रीन दुर्लभ फोटो शामिल थे। जिसमें साल 1931 में बनी ‘आलम आरा’ से लेकर कोहिनूर, आजाद, भीगी रात, काजल, पाकीजा, महल, देवदास, धरती का लाल, कल्पना, रजिया सुल्तान, फूल और पत्थर, चित्रलेखा, आवारा, कपूर खानदान की दुर्लभ तस्वीरें, से लेकर मंगल पांडे तक शामिल रहीं। इस कार्यक्रम का अगला हिस्सा था कमाल अमरोही के पुत्र ताजदार अमरोही और रिंकी राय की मीना कुमारी और कमाल अमरोही पर चर्चा। यहां पेश हैं ताजदार अमरोही की वे यादें जो उनके पिता कमाल अमरोही और मीना कुमारी के जीवन से जुड़ी हैं –
फिल्मी पृष्ठभूमि से नहीं थे बाबा
ताजदार अमरोही ने चर्चा में बताया कि ‘मेरे बाबा फिल्मी पृष्ठभूमि वाले परिवार से नहीं थे और उस समय फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बने जब कोई इस फील्ड में एंट्री लेने की सोचता भी नहीं था। फिल्म लाइन बहुत ही अलग तरह की लाइन मानी जाती थी। उनके लिए यहां सब कुछ बहुत अलग और नया था। इससे आप समझ सकते हैं कि उनका सफर आसान तो नहीं रहा होगा। लेकिन अपने उसूलों और हुनर के बल पर उन्होंने यहां अपनी अलग जगह बनाई, इज्जत व शोहरत पाई।
भाषा पर था बहुत ध्यान
बाबा यानी कमाल अमरोही का हमेशा से यह रहा कि वे एक-एक शब्द बहुत सोच समझ कर बोलते थे और लिखते भी थे। भाषा पर उनका विशेष ध्यान रहता था। हमारे मुंह से भी अगर कुछ गलत निकल जाए तो वे बहुत नाराज हो जाते थे। वे नहीं चाहते थे कि हम कुछ ऐसा बोलें जो दूसरे को ठेस पहुंचाए। एक दिन मेरा उनके ऑफिस में किसी व्यक्ति से झगड़ा हो गया और मैंने उस व्यक्ति को ऑफिस से बाहर निकाल दिया। यह बात जब उन तक पहुंची तो हम दोनों को बुलाया और पूछा कि क्या हुआ, तुमने इन्हें ऑफिस से क्यों निकाला? मैंने कहा कि ये झूठ बोल रहे थे। तो बाबा कहने लगे कि तुमने इन्हें गाली दी है। मैंने कहा कि मैंने तो कोई गाली नहीं दी। लेकिन वे फिर बोले कि तुम बार-बार इन्हें गाली दे रहे हो। मैंने कहा-बाबा अगर इन्होंने झूठ बोला है, यह झूठे इंसान हैं तो इस बात को मैं कैसे बोलूंगा? वे बोले तुम्हें कहना चाहिए कि यह गलत बोल रहे हैं। तुमने इन्हें झूठा इंसान बोला, यह गाली है।
एक ही बार में स्क्रिष्ट
बाबा का अपने काम में फोकस ऐसा रहता था कि ऐसा बिरले ही लोगों का होता है। उन्होंने जितनी भी फिल्में लिखीं सब एक ही सिटिंग में लिखी। यानी लिखनी शुरू की तो पूरी करके ही उठे। इस समय उन्हें किसी का डिस्टर्ब करना पसंद नहीं था और सबको पता था कि वे लिख रहे हैं तो कोई उस समय उनके पास जाता भी नहीं था।
पैंसिल, रबड़ रखते थे साथ
बाबा हमेशा अपने साथ एक राइटिंग पैड और पैंसिल-रबड़ साथ रखते थे। इसकी वजह यह थी कि वे पैंसिल से ही लिखा करते थे। उनका मानना था कि पेंसिल से लिखकर आप करेक्शन आसानी से कर सकते हो जबकि पेन से लिखकर आप मिटा नहीं सकते। आपको वह लाइनें काटनी पड़ती हैं। उन्हें अपने कागजों में काटपीट बिल्कुल पसंद नहीं थी।
मीना कुमारी थीं पसंद
अभिनेत्री के रूप में उन्हें मीना कुमारी पसंद थीं। उनकी अदाकारी की वजह से भी और दूसरी बात यह थी कि मीना जी का चेहरा बहुत फोटोजनिक था। उनकी आप किसी भी एंगल से कैमरा रखकर फोटो खींच लीजिए बहुत शानदार फोटो निकलकर आती थी। बाबा उस समय ‘अनारकली’ फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे कि अशोक कुमार जी का उन्हें फोन आया कि तुम्हारी अनारकली मिल गई है तुम इस फिल्म में मीना कुमारी को लो। अशोक कुमार जी भी मीना कुमारी के अभिनय को बहुत पसंद करते थे और मेरे बाबा के साथ अशोक कुमार जी के बहुत ही मधुर संबंध भी रहे।